नई दिल्ली—भारत में बाल विवाह के खिलाफ चलाए जा रहे जागरुकता अभियान का असर दिखने लगा है। देश में बाल विवाह की संख्या में तेजी से कमी आई है। इसका सबसे बड़ा कारण समाज में शिक्षा के प्रसार और आर्थिक स्थिति में सुधार है। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, झारखंड में इसमें उल्लेखनीय सुधार नजर आ रहा है।

सुधार के मामले में उत्तर प्रदेश बाकी राज्यों से काफी आगे है। यहां 15 से 19 साल की उम्र में सिर्फ 6.4 फीसदी लड़कियों की ही शादी हो रही है। बाल विवाह के मामले में बंगाल में स्थिति चिंताजनक है। इसका सबसे बड़ा कारण अवैध धुसपैठ और धर्मांतरण है।

बाल विवाह की दर में ज्यादातर राज्यों में कमी आई है लेकिन कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां अन्य राज्यों की तुलना में सुधार अपेक्षाकृत कम है। नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 (2015-16) के अनुसार, देश में बाल विवाद की औसत दर 11.9% है। हिमाचल प्रदेश और मणिपुर में आंकड़ों में कुछ वृद्धि जरूर दर्ज की गई है।

एनएफएचएस 3 (2005-06) के आंकड़ों से एनएफएचएस-4 (2015-16) के आंकड़ों में उत्तर प्रदेश के आंकड़ों में काफी सुधार हुआ है। उत्तर प्रदेश में 29 फीसदी से दर कम होकर सिर्फ 6.4 फीसदी ही रह गया है। पश्चिम बंगाल में भी सुधार हुआ है, लेकिन अपेक्षाकृत कम है। बंगाल में 34 फीसदी से यह दर कम होकर 25.6 फीसदी रह गई है। 

बाल विवाह का दुष्प्रभाव कम उम्र में गर्भधारण के रूप में है। 15 से 19 की उम्र में शादी होनेवाली लड़कियों में हर तीन में से एक लड़की कम उम्र में ही मां बन जा रही है। इस उम्र में शादी होनेवाली लड़कियों में से एक चौथाई 17 साल की उम्र तक मां बन जाती हैं और 31% 18 की उम्र तक मां बन जाती 

बाल विवाह को लेकर शहरों की स्थिति गांवों से बेहतर है और इसी तरह आर्थिक आधार भी बाल विवाह रोकने के लिहाज से अहम फैक्टर है। शहरों में बाल विवाह का औसत 6.9 फीसदी और गांवों में 14.1 फीसदी है। कुछ राज्य ऐसे हैं जहां शहरों में बाल विवाह के आंकड़े आपको चौंका सकते हैं। शहरी क्षेत्र में बाल विवाह में पहला नंबर हरियाणा का है और दूसरे नंबर पर तमिलनाडु है। तीसरे नंबर पर मणिपुर है।