नई दिल्ली। पाकिस्तान चीन के चंगुल में फंसता ही जा रहा है और अब पाकिस्तान की सऊदी अरब के साथ दोस्ती में दरार आ चुकी है और इसके पीछे भी चीन की साजिश अब सामने आ रही है। चीन ने कूटनीतिक तरीके से पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच दूरियां बढ़ा दी हैं, वहीं सऊदी के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने का काम किया है।

असल में चीन में मुस्लिमों को प्रताड़ित करने वाला चीन इस्लामिक देशों के करीब जाना चाहता था और इसके लिए उसने अपने प्यादे पाकिस्तान का बखूबी इस्तेमाल किया। चीन अच्छी तरह से जानता था कि इस्लामिक देशों में प्रभाव बढ़ाने के लिए सबसे पहले सऊदी अरब को साधना होगा। लेकिन यहां उसे असफलता मिली। लिहाजा इसके बाद चीन ने अपनी चाल को बदला और ईरान पर डोरे डाले और कई करार किए। यहां तक चीन ने ईरान को कोरोना संकट काल में महंगी दलों पर उपकरणों को बेचा। वहीं ईरान चीन के जाल में फंस गया।

इसके बाद चीन ने मलयेशिया और पाकिस्तान की सहायता कर इस्लामिक देशों में सऊदी अरब का दबदबा खत्म करने साजिश की। चीन के कहने पर ही मलेशिया ने मुस्लिम देशों की बैठक बुलाई और इस बैठक में पाकिस्तान को बुलाया। हालांकि पाकिस्तान सऊदी अरब के दबाव में मलेशिया नहीं गया। लेकिन सऊदी अरब चीन की चाल को समझ गया। चीन ने सऊदी अरब का प्रभुत्व कम करने की पूरी कोशिश की और इसी रणनीति के तहत चीन ने परोक्ष रूप से मलयेशिया में एक बड़ा इस्लामिक सम्मेलन कराया। इस बैठक में सऊदी अरब को नहीं बुलाया गया। जबकि ज्यादातर मुस्लिम देश इसमें शामिल हुए थे।


वहीं सऊदी अरब को चीन की साजिश की भनक लगी और इसके बाद सऊदी अरब ने पाकिस्तान, मलयेशिया और चीन के प्रति रुख बेहद सख्त अपनाया। ओआईसी में अलग-थलग पड़ चुके पाकिस्तान की कोशिश थी कि वह ओआईसी के सदस्य देशों के जरिए भारत को घेरे। लेकिन सऊदी अरब समेत कई देशों ने पाकिस्तान का साथ नहीं दिया। वहीं पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने सदस्य देशों की बैठक बुलाने की धमकी भी दी। जिसके बाद सऊदी अरब नाराज हो गया और उसमें पाकिस्तान को 3.2 अरब डॉलर का कर्ज चुकाने का आदेश दिया है और साथ ही उसने पाकिस्तान को दिए जाने वाले तेल की आपूर्ति भी बंद कर दी।