लखनऊ-- फेसबुक, टि्वटर, मोबाइल गेम्स, इन्स्टाग्राम आदि सोशल मीडिया की लत के शिकार हो रहे किशोरों और युवाओं को इससे छुटकारा दिलाने के लिए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में स्थित किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के मानसिक रोग विभाग में एक विशेष क्लीनिक खोलने की योजना पर काम किया जा रहा है।

सोशल मीडिया और टेक्नोलॉजी के ज्यादा इस्तेमाल से अकेलापन और मानसिक रोगों का शिकार हो रहे लोगों के इलाज के लिए बेंगलुरु के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइसेंस (निमहेंस) में चार वर्ष पहले सर्विस फॉर हेल्दी यूज ऑफ टेक्नॉलजी (एसएचयूटी) नाम से एक क्लीनिक शुरू किया गया था।

यहां आने वाले मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी और इससे हो रहे फायदों को देखते हुए केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग ने भी इसी तरह का क्लीनिक खोलने का फैसला किया है। 

केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग के प्रमुख प्रो. पी के दलाल ने बताया कि यह क्लीनिक टेक्नोलॉजी के ज्यादा इस्तेमाल से बीमार हो रहे लोगों के लिये काफी मददगार साबित होगा। यहां आने वाले लोगों को काउंसलिंग करके सोशल मीडिया के कम से कम इस्तेमाल के लिए प्रेरित किया जाएगा। 

प्रो. दलाल ने कहा, 'आज मध्यमवर्गीय परिवारों के अधिकतर बच्चे मोबाइल के आदी हो चुके हैं। वह मोबाइल पर सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते हैं, गेम खेलते हैं और साथ ही ऐसी सामग्री भी देखते हैं, जो उन्हें नहीं देखना चाहिए। इन आदतों का उनकी पढ़ाई और आंखों पर तो असर पड़ता ही है, साथ ही वह अकेले रहना पसंद करने लगते हैं और चिड़चिड़े हो जाते हैं। मना करने पर वह छिपकर मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं।' 

उन्होंने बताया कि निमहेंस के डायरेक्टर प्रो. बीएन गंगाधर ने लखनऊ में चल रही इंडियन सायकैट्रिक सोसायटी की नेशनल कॉन्फ्रेंस में सुझाव दिया कि सोशल मीडिया से उत्पन्न समस्याओं से प्रभावित किशोरों और युवाओं के लिये 'शट क्लीनिक' देश के सभी बड़े और प्रमुख चिकित्सा संस्थानों में खोला जाएगा। इस बारे में उन्होंने स्वास्थ्य मंत्रालय से भी चर्चा की है। इसी सलाह पर लखनऊ के केजीएमयू में भी ऐसा क्लीनिक खोलने की योजना पर काम किया जा रहा है । 

प्रो दलाल ने बताया कि निमहेंस की तर्ज पर हम जल्द ही केजीएमयू में भी ऐसा एक क्लीनिक खोलने की योजना बना रहे हैं। लेकिन इसका नाम शट क्लीनिक के बजाय कुछ और होगा। उन्होंने बताया कि निमहेंस बेंगलुरु में पहले शट क्लिनिक सप्ताह में एक बार खुलता था, लेकिन यहां आने वाले लोगों की बढ़ती संख्या को देखते हुए इसे हफ्ते में दो बार खोलने का फैसला किया गया। प्रो दलाल का सुझाव है कि स्कूल-कॉलेजों में टेक्नोलॉजी के दुष्प्रभाव पहचानने के लिए काउंसलिंग सेंटर शुरू किए जाने चाहिए।