नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस को जबरदस्त तरीके से निशाने पर लिया। उन्होंने दो दिन पहले यानी सोमवार को झारखंड के चाईबासा की जनसभा में चुनौती दी कि
 'मैं नामदार के परिवार और उनके रागदरबारियों, चेले चपाटों को चुनौती देता हूं आज का चरण तो पूरा हो गया, आगे के दो चरण बाकी हैं, अगर हिम्मत है तो कांग्रेस के वह पूर्व प्रधानमंत्री, जिन पर बोफोर्स के भ्रष्टाचार के आरोप हैं, उनके मान-सम्मान के मुद्दे पर आइए मैदान में। देखिए, खेल कैसे खेला जाता है। अगर आपमें हिम्मत है, दिल्ली में अभी चुनाव बाकी है, आपके उस पूर्व प्रधानमंत्री के, जिनको लेकर आप दो दिनों से आंसू बहा रहे हो तो आओ चुनाव मैदान में।' 


लेकिन कांग्रेस पार्टी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस चुनौती को स्वीकार करने की स्थिति में नहीं है। इसकी दो खास वजहें हैं। दरअसल लोकसभा चुनाव के सात में से पांच चरण समाप्त हो चुके हैं और अब मात्र दो चरण का चुनाव बाकी है। 

खास बात यह है कि छठे चरण 12 मई और आखिरी चरण 19 मई को मतदान क्रमश: मध्य प्रदेश के भोपाल और उसके आस पास के इलाकों तथा पंजाब में होने वाले हैं। 

पंजाब और भोपाल इन दोनों ही स्थानों पर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम पर लोग भड़क सकते हैं। इसके संकेत दिखने भी लगे हैं। 

1.    भोपाल के लोग स्व. राजीव गांधी से हैं बेहद नाराज
दरअसल 3 दिसंबर, 1984 को भोपाल में यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से भयानक गैस रिसाव हुआ था। जिसमें 4,000 लोगों की जान चली गई और अनगिनत लोग जीवन भर के लिए विकलांग हो गए थे। 
जब यह हादसा हुआ था तब केन्द्र में राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे जबकि मध्य प्रदेश में अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री थे। लेकिन इन दोनों ही दिग्गज कांग्रेसी नेताओं ने भोपाल गैस पीडितों का दर्द नहीं समझा। 
बल्कि क्रूर मजाक यह रहा कि यूनियन कार्बाइड के मालिक वारेन एंडरसन को सजा दिलाने की बजाए उसे देश से भगा दिया गया। इसलिए भोपाल और उसके आस पास के इलाकों के लोग आज भी राजीव गांधी के नाम पर भड़क उठते हैं। 

इस बात का पता इससे भी चलता है कि भोपाल गैस कांड के पीड़‍ितों के संगठन ने राष्‍ट्रपति को पत्र लिखकर वारेन एंडरसन को भगाने जाने में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और मध्‍य प्रदेश के तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री अर्जुन सिंह की भूमिका की जांच कराने की मांग की है।

लोगों की इस नाराजगी को देखते हुए कांग्रेस कभी भी भोपाल में राजीव गांधी के नाम को मुद्दा बनाकर चुनाव में उतरने की हिमाकत नहीं कर सकती है। खास बात यह भी है कि मध्य प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री कमलनाथ स्व.राजीव गांधी के निकट सहयोगी माने जाते थे। उनकी भूमिका सिख दंगा मामले में संदिग्ध है। यह भी एक वजह है कि कांग्रेस भोपाल में राजीव गांधी को मुद्दा बनाने का साहस नहीं कर पाएगी। 

2.    पंजाब में राजीव गांधी मुद्दा बने तो कांग्रेस को हो सकता है भारी नुकसान
पंजाब में आखिरी चरण यानी 19 मई को मतदान होने वाले हैं। यहां की सभी 13 सीटों पर एक साथ चुनाव होगा। यहां तो माहौल कुछ ऐसा है कि अगर राजीव गांधी के नाम पर चुनाव लड़ा गया तो शायद वह कांग्रेस को इतना भारी पड़ेगा जिसकी राहुल गांधी ने कल्पना भी नहीं की होगी। 
दरअसल स्व. राजीव गांधी पर उनके राजनीतिक जीवन पर सबसे बड़ा आरोप है कि जिसमें इंदिरा गांधी की हत्या के बाद फैले सिख दंगों के दौरान उन्होंने कहा था कि ‘जब एक बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है’। 
स्व. राजीव गांधी का यह असंवेदनशील बयान आज भी सिख संगठन याद करते हैं। जो कि 1984 के सिख दंगे के आरोपियों को सजा दिलाने के लिए जूझ रहे हैं। 
यही वजह है कि राजीव गांधी का नाम सामने आते ही अकाली दल ने विरोध शुरु कर दिया। 
अकाली दल की प्रमुख नेता हरसिमरत कौर ने ट्विट किया कि 'आज जब गांधी परिवार राजीेव गांधी के लिए उदास है तो क्‍या वे सोचते हैं ‍कि उनके समय में हजारों सिखों का कत्‍लेआम हुआ?  आप उस व्‍यक्ति को क्‍या कहेंगे जो सिखों  की हत्‍याएं करवाता है ओर चुनाव जीतने के लिए इसे सही करार देता है? रुकें राहुल गांधी आपका कर्म आपका इंतजार कर रहे है’। 

पंजाब में सिख संगठन राजीव गांधी से इतने नाराज हैं कि उन्होंने राजीव गांधी की मूर्ति पर कालिख पोत दी और प्रतीकात्मक रुप से उनके हाथ लाल कर दिए। 

यह सभी घटनाएं इस बात का संकेत देती हैं कि कांग्रेस पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम पर भले ही कितनी भी राजनीति कर ले। लेकिन वह उनके नाम पर चुनाव लड़ने की हिम्मत कतई नहीं कर सकती। खास तौर पर पंजाब या भोपाल में तो कतई नहीं।