राज्य की नई कांग्रेस सरकार फिलहाल अपने नाराज नेताओं की सरकारी राजनैतिक नियुक्तियों के लिए कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है. पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव के बाद राज्य के खाली पड़े पदों पर अपने नेताओं को नियुक्त करेगी. ताकि इन नेताओं की नाराजगी को दूर किया जा सके. हालांकि पार्टी में नेताओं का एक गुट लोकसभा चुनाव से पहले नाराज नेताओं की नाराजगी को दूर करना चाहता है.

पिछले साल दिसंबर में कांग्रेस ने राज्य की सत्ता संभाली और भाजपा का सत्ता से बेदखल किया. राज्य की सत्ता में आते ही कांग्रेस ने भाजपा सरकार की ओर से की गई राजनीतिक नियुक्तियों को रद्‌द कर दिया. जिसके के बाद भाजपा ने कांग्रेस पर पूर्वाग्रह से ग्रसित होने का आरोप लगाया. हालांकि इन पदों पर कांग्रेस के नेताओं ने लाबिंग करना शुरू कर दिया है. लेकिन राज्य सरकार में इन नियुक्तियों को लेकर दो गुट बने हुए हैं. पहला जो लोकसभा चुनाव से पहले इन नियुक्तियों को चाहता है और दूसरा जो चुनाव के इन नियुक्तियों के पक्ष में है. हालांकि राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी इन नियुक्तियों को लोकसभा चुनाव के बाद चाहते हैं.

क्योंकि अगर कुछ नेताओं को नियुक्त कर दिया तो ज्यादातर नेता बगावती तेवर अपनाएंगे. लिहाजा ऐसा माना जा रहा है कि अब राज्य और जिला स्तरीय आयोगों, निगमों, बोर्ड, समितियों और मंडलों में नए सिरे से तैनाती लोकसभा चुनाव से पहले नहीं होंगी. इसके पीछेकांग्रेस सरकार और संगठन के तर्क हैं कि पहले राजनीतिक नियुक्तियां करने से पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है. इन नेताओं का कहना है कि जिन नेताओं को नियुक्तियां नहीं मिलेंगी, वे लोकसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ काम कर सकते हैं. प्रदेश के विभिन्न बोर्ड, नियम, आयोगों, प्राधिकरणों और निकायों में करीब दस हजार राजनैतिक पद खाली हैं और इनकी नियुक्तियां राज्य सरकार करेगी. इसके साथ ही राज्य में विधानसभा में उपाध्यक्ष और संसदीय सचिव पर भी कांग्रेस सरकार और संगठन को फैसला लेना है.