नई दिल्ली। कांग्रेस पार्टी की मुश्किलें बढ़ गई है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस पार्टी और चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के बीच बीजिंग में सात अगस्त 2008 को हुए करार को लेकर सख्त टिप्पणी की है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने दायर याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया और याचिका को हाईकोर्ट में जाने की सलाह दी। फिलहाल इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस पार्टी और इस करार पर सख्त टिप्पणी करते हुए याचिकाकर्ता को पहले उच्च न्यायालय जाने को कहा। इस मामले में याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस मामले की जांच सीबीआई और एनआईए द्वारा कराए जाने की मांग की थी। 

मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कांग्रेस और चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के बीच करार पर हैरानी जताई थी। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से इस मामले को उच्च न्यायालय में ले जाने को कहा। इसी दौरान कोर्ट ने इस डील पर हैरानी जताते हुए कहा, 'किसी विदेशी सरकार द्वारा किसी राजनीतिक दल के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करने के बारे में कभी नहीं सुना। असल में सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली के वकील शशांक शेखर झा और गोवा के एक मीडिया हाउस के संपादक सेवियो रोदरिग्यूज ने यह याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि ये करार देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर चिंता पैदा करता है और यूएपीए कानून के तहत इस डील के लिए एनआईए या सीबीआई को इसकी जांच करनी चाहिए।

ताकि देश के सामने इस करार के बारे में जानकारी सामने आनी चाहिए। याचिकाकर्ता ने दावा किया गया ये समझौता तब हुआ था जब देश में 2008 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार सत्ता में थी। इस करार में उच्च-स्तरीय जानकारी, सहयोग का आदान-प्रदान करने की बात कही गई है। याचिककर्ता ने इस मामले में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, कांग्रेस पार्टी और केंद्र सरकार को प्रतिवादी बनाया था। इस करार पर कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी ने सोनिया गांधी की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए थे और उस वक्त मौजूदा चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग चीन के उपराष्ट्रपति थे