-कांग्रेस 2009 के प्रदर्शन पर चाहती है सीटों का बंटवारा


आगामी लोकसभा के लिए सपा और बसपा के बीच बनने वाले गठबंधन में कांग्रेस को जगह न मिलने के लिए इन दोनों पार्टियों के नेता कांग्रेस को ही दोषी माना जा रहे हैं। इस गठबंधन में सपा और बसपा के साथ ही रालोद समेत कई छोटे दलों को शामिल किए जाने की संभावना है। लेकिन सपा और बसपा के नेता गठबंधन में कांग्रेस को शामिल न करने के लिए कांग्रेस को ही दोषी मान रहे हैं। सपा और बसपा के नेताओं का कहना है कि कांग्रेस 2009 लोकसभा चुनाव के आधार पर सीटें चाह रही थी। जबकि राज्य में कांग्रेस का जनाधार समाप्ति की कगार है। अब कांग्रेस को चुनाव में सपा और बसपा के गठबंधन के खिलाफ चुनाव लड़ना होगा।

लोकसभा चुनाव 2019 के लिए चुनावी तैयारियां शुरू हो गयी हैं। भाजपा ने संभावित गठबंधन को देखते हुए प्रदेश में पहले से ही चुनावी अभियान शुरू कर दिया है। जहां संगठन की तरफ से बूथ स्तर पर पार्टी को मजबूत किया जा रहा है। वहीं प्रधानमंत्री प्रदेश के लगातार दौरे पर हैं। ऐसा माना जा रहा है कि सपा और बसपा के गठबंधन में सभी भाजपा विरोधी पार्टियों को शामिल किया जाएगा। फिलहाल जानकारी के मुताबिक राज्य से दो सांसदों वाली कांग्रेस पार्टी इस गठबंधन में 20 सीटें चाहती हैं। इसके लिए कांग्रेस का कहना था कि 2009 में उनसे 19 सीटें जीती थी और राज्य में उसका खासा जनाधार है। जबकि सपा और बसपा पिछले लोकसभा और विधानसभा के प्रदर्शन के आधार पर सीटें देने को तैयार थी।

उनका कहना है कि सीटों का बंटवारा 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में मिले वोटों और सीटों के आधार पर किया जाएगा। लिहाजा कांग्रेस को दस से ज्यादा सीटें नहीं दी जा सकता हैं। 2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 7.5 फीसदी वोट मिले थे जबकि सपा को 22 फीसदी और बसपा को 20 फीसदी वोट मिला था। लोकसभा की 80 सीटों बसपा 40 सीटों 30 औऱ अजित सिंह की रालोद 5 सीट और अन्य छोटों दलों के 5 सीटें दी जाएंगी। रालोद भी इस गठबंधन में शामिल होगा।

इसके साथ ही कुछ छोटे दल मसलन पीस पार्टी, निषाद पार्टी समेत कई दल इस महागठबंधन शामिल किए जाएंगे। हालांकि कांग्रेस, सपा और बसपा के मैंनेजरों के बीच बातचीत कर रही है। कांग्रेस के सूत्रों के मुताबिक अगर पार्टी को सम्मानजनक सीटें नहीं मिली तो वह अकेले चुनाव लड़ सकती है। क्योंकि कांग्रेस में टिकट चाहने वालों की लंबी कतार है। लिहाजा नेताओं की मांग को देखते हुए कांग्रेस अकेले ही चुनाव लड़ने का फैसला कर सकती है। हालांकि ज्यादातर कांग्रेस के नेता राज्य में अकेले लड़ने के पक्ष में है। इन नेताओं के तर्क है कि तीन राज्यों में चुनाव के नतीजों के बाद जनता का रूख कांग्रेस की तरफ हुआ है।