भोपाल लोकसभा सीट पर कड़े मुकाबले को देखते हुए कांग्रेस के प्रत्याशी और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के खिलाफ अपना संत कार्ड खेल दिया है। दिग्विजय सिंह जहां मंदिरों के दर्शन कर अपने को हिदू बताने की कोशिश कर रहे हैं वहीं उन्होंने शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती को आगे कर संत कार्ड खेल दिया है। 

असल में शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती को कांग्रेस का करीबी माना जाता है और वह अकसर कांग्रेस के पक्ष में प्रचार करते नजर आते हैं। अब कांग्रेस ने उन्हें आगे कर अपना संत कार्ड खेल दिया है। कांग्रेस ने साध्वी के भोपाल में बढ़ते जनाधार और उसके अन्य सीटों पर होने वाले प्रभाव को रोकने के लिए ये कार्ड खेला है। दिग्विजय सिंह ने अपने नामांकन से पहले स्वरूपानंद सरस्वती से आशीर्वाद लिया। हालांकि सरस्वती ने प्रज्ञा के साध्वी होने पर भी सवाल उठा दिये। हालांकि कांग्रेस बी यही चाहती थी कि शंकराचार्य साध्वी के बारे में कुछ कहें।

हालांकि इससे साध्वी को ज्यादा असर नहीं होगा। लेकिन कांग्रेस ने संत कार्ड के जरिए उन्हें घेरने की कोशिश जरूर की है। शंकराचार्य ने कहा कि साधु-साध्वी अपने नाम के आगे उपनाम नहीं लगाते हैं जबकि प्रज्ञा ठाकुर लगाती हैं। यही नहीं दिग्विजय सिंह अपने प्रचार के दौरान गऊशाला, मंदिर में जाना नहीं भूल रहे हैं जबकि उन्होंने मस्जिदों और दरगाहों से दूरी बनाई हुई है। यही नहीं उनके प्रचार में टोपी लगाए हुए मुस्लिम नेता नहीं दिखाई दे रहे हैं। असल में कांग्रेस इस बात को अच्छी तरह से समझ रही है कि साध्वी प्रज्ञा के कारण राज्य की कई सीटों पर ध्रुवीकरण होगा।

कांग्रेस के रणनीतिकार ये मान रहे हैं कि भोपाल के साथ ही उससे साथ लगने वाली चार सीटों पर तो इसका सीधा असर होगा वहीं प्रज्ञा के कारण चंबल और भिंड में भी असर होगा। क्योंकि वह वहां की रहने वाली हैं और पिछले कुछ सालों में हिंदुत्व का बड़ा चेहरा बन गयी हैं। वहीं बीजेपी साध्वी इफेक्ट को राज्य की अधिकतम सीटों पर उसे भुनाने के फिराक में है।

इससे बीजेपी को फायदा होता भी दिख रहा है। बीजेपी साध्वी के असर को अब बुंदेलखंड और मालवा की सीटों पर बढ़ाने की योजना बना रही है। पार्टी वहां पर साध्वी के दौरों को कराएगी। ताकि जनता को हिंदुत्व के इस चेहरे को भुनाया जा सके।