नई दिल्ली। संसद में कृषि कानून के पारित हो जाने के बाद देशभर में कांट्रेक्ट फार्मिंग को लेकर चर्चा है। किसान इसका विरोध कर रहे हैं। लेकिन पंजाब के मोगा में कांट्रैक्ट फार्मिंग में किसान इसी कांट्रेक्ट फार्मिंग से अपनी किस्मत बदल रहे हैं और किसान अच्छी तरह से जान गए हैं कि इस विधा के जरिए किसानों की किस्मत बदल सकती है। मोगा के गांव इंद्रगढ़ निवासी किसान मनजिंदर सिंह ने वर्ष 2005 में अपनी 20 एकड़ जमीन पर खेती का अनुवंध एक कंपनी के साथ किया और अब वह 100 एकड़ कृषि भूमि के स्वामी बन चुके हैं। कांट्रेक्ट फार्मिंग के जरिए जहां सामान्य किसान जहां प्रति एकड़ 70 से 80 हजाट रुपये तक कमाता है, वहीं मनजिंद डेढ़ लाख रुपये कमा रहे हैं।

असल में पंजाब के किसानों को काफी प्रगतिशील माना जाता है। वहीं मोगा के किसान मनजिंदर सिंह ने एक निजी कंपनियों के साथ करार किया 2005 में जब खेती से निटाशा होने लगी औट कर्ज बढ़ने लगा तो उन्होंने खेती छोड़ने का फैसला कर लिया था।  तब उन्हें कांट्रैक्ट फार्मिंग की जानकारी मिली और  उन्होंने इसके जरिए आखिरी दांव खेला। मनजिंदर  सिंह का कहना है कि इसके जरिए हर साल खेती की नई-नई तकनीकों की जानकारी मिली। उन्हें  नए और उन्नत बीज मिलते गए और उनकी आमदानी बढ़ती गई। उनका कहना है कि जहां सीजन के बाद किसान ट्रैक्टर-ट्रालियां खड़ी कर देते हैं और लेकिन वह इसका इस्तेमाल मशीनरी 12 महीने काम करती।

असल में किसानों के साथ करार करने वाली कंपनी उसे अपने काम के लिए किराए पर ले लेती और इससे जरिए उन्हें अतिरिक्त आमदनी मिल जाती है। वह बताते हैं कि खेती के लिए आम तौट पर मजदूटों को सीजन के हिसाब से पैसे मिलते हैं और वह आधा साल बेरोजगार ही रहते हैं। जबकि उनकी जगह 200 लोगों को पूरे 12 महीने काम मिलता है। यही नहीं उनकी मंडियों पर निर्भरता कम हो गई है और उनका उत्पाद घर से कंपनियां उठा कर ले जाती है। इसके साथ ही तैयारी फसल खेत से  उठा ली जाती है और समय पर पैसा खाते में आ जाता है।

मनजिंदर सिंह का कहना वह साल में तीन फसलें ले रहे हैं और खेत में आलू, धान और सब्जियां अलग से उगाते हैं। दरअसल, वह दो प्रकार से कंपनी के साथ काम क रहे हैं। वह एक तो कांट्रेक्ट खेती कर रहे हैं  वहीं कंपनियों को से बीज लेकर अपने स्तर पर स्वयं कृषि करते हैं।  मनजिंदर सिंह  का कहना है कि कांट्रेक्ट फार्मिंग से उनका लाभ भी मिला है और उनका अनुभव सुखद रहा है । इससे उनका जीवन स्तर बदला है। वह पहले भी अपने खेते के मालिक थे और अब और ज्यादा खेतों के मालिक हो गए हैं। उन्हें संसाधनों की कमी, कर्ज के दलदल और घाटे से मुक्ति मिल गई है।  वहीं फसल कंपनी के कृषि विशेषज़ों की देखटेख में रहती है। कृषि उत्पाद के लिए मूल्य का निर्धाटण भी अपनी श्तों पर करते हैं।