मुंबई।  मुंबई में जेलों तक कोरोना का कहर देखने को मिल रहा है। लिहाजा अब राज्य सरकार जेलों से कैदियों को छोड़ने की रणनीति तैयार कर रही है। महाराष्ट्र सरकार द्वारा नियुक्त एक उच्चस्तरीय समिति ने कोरोना महामारी के मद्देनजर राज्य  की जेलों में बंद 50 फीसदी कैदियों को अस्थायी तौर पर रिहा करने की सिफारिश की है। हालांकि जेल अधिकारियों का कहना है कि कैदियों को रिहा करने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं है।

पैनल ने कहा कि भारतीय दंड संहिता  तहत गंभीर आरोपों में दोषी ठहराए गए या आरोपित किए गए और मकोका, यूएपीए(UAPA0)और पीएमएलए(PMLA) जैसे कड़े कानून प्रावधानों की सजा काट रहे कैदियों को रिहा या पैरोल नहीं दी जानी चाहिए। असल में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस एए सैयद, राज्य के गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव संजय चांडे और महाराष्ट्र के महानिदेशक जेल एसएन पांडे को  समिति में शामिल किया गया था।

क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जेलों में बंद कैदियों में कोरोना फैल सकता है और इसलिए जेल में बंद कैदियों को अस्थायी तौर रिहा कर देना चाहिए। वहीं अब राज्य की जेलों में कोरोना का संक्रमण फैल गया है।  मुंबई की जेलों में सैकड़ों कैदी कोरोना के संक्रमण की गिरफ्त में आए गए हैं। इसके बाद राज्य सरकार की समिति ने राज्य भर की जेलों से लगभग 50 प्रतिशत कैदियों को अस्थायी जमानत या पैरोल पर रिहा करने की सिफारिश की है।

समिति ने रिहाई के लिए कोई समय सीमा नहीं बताई, लेकिन कहा कि जेल प्रशासन कैदियों को रिहा करने से पहले कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करेगा। वर्तमान में महाराष्ट्र की जेलों में 35,239 कैदी हैं। समिति ने ये फैसला मध्य मुंबई में आर्थर रोड जेल के 100 से अधिक कैदियों और स्टाफ के कोरोना संक्रमित होने के बाद लिया है। समिति ने कहा कि केवल उन्हीं कैदियों को रिहा किया जाएगा जिनके खिलाफ मामले चल रहे हैं या फिर सात साल तक की सजा काट रहे हैं।