सोमवार का दिन भारत बंद के नाम रहा। कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने महंगाई के मुद्दे पर सरकार का विरोध करने के लिए देशभर में शांतिपूर्ण बंद का आह्वान किया था। इसके अलावा कांग्रेस ने यह भी दावा किया था, कि उसके साथ देश के 21 राजनीतिक दल हैं। लेकिन बंद खत्म होते होते कांग्रेस के शांतिपूर्ण बंद और विपक्षी एकता की कलई खुल गई। आईए बिंदुवार जानते हैं कि आखिर क्या रहा कांग्रेस के भारत बंद का अंजाम-

कांग्रेस ने दावा किया था, उसके भारत बंद को 21 दलों का समर्थन प्राप्त है। लेकिन राजघाट से रामलीला मैदान तक मार्च करने के दौरान उसके साथ महज 16 दलों के नेता दिखे। 

रामलीला मैदान के मंच पर से सपा, बसपा, नेशनल कांफ्रेन्स और तृणमूल कांग्रेस के नेता नदारद थे। 

बीजू जनता दल, तेलंगाना राष्ट्र समिति, अन्नाद्रमुक जैसी पार्टियों ने भारत बंद का विरोध किया। 

यानी सभी बड़े विपक्षी दलों ने कांग्रेस का साथ नही दिया। इसमें अन्नाद्रमुक के 37, टीएमसी के 34, बीजू जनता दल के 19, तेलगू देसम पार्टी के 16, तेलंगाना राष्ट्र समिति के 11, वाईएसआर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के 4-4 सांसद हैं। जो कि कुल मिलाकर 125 होते हैं। कांग्रेस के भारत बंद को इन 125 सांसदों का समर्थन नहीं था। 

कांग्रेस के बंद का समर्थन करने वाली पार्टियों में प्रमुख थीं बसपा, डीएमके, लोजद, मनसे, हम, केरल कांग्रेस, एमडीएमके और फॉरवर्ड ब्लॉक, लेकिन इसमें यह सभी जनता द्वारा नकार दी गई पार्टियां हैं। पिछले चुनाव में इनका एक भी सांसद नहीं जीता। 

कांग्रेस का साथ देने वाली पार्टियों के लोकसभा सांसदों की संख्या मात्र 87 थी। जिसमें कांग्रेस के अकेले 48 सांसद हैं। 

और अब बात करते हैं कांग्रेस के शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दावे की। कांग्रेस ने भारत बंद की घोषणा करते हुए इसे पूरी तरह शांतिपूर्ण ऱखने का आश्वासन दिया था। लेकिन इसकी कलई सुबह ही खुल गई थी- 

महाराष्ट्र पुणे में स्कूली बसों पर पथराव किया गया

बिहार के जहानाबाद में बंद समर्थकों ने एक मासूम बच्ची को अस्पताल नहीं पहुंचने दिया, जिससे उसकी जान चली गई। 

मध्य प्रदेश के उज्जैन में दरगाह मंडी के पास एक पेट्रोल पंप पर तोड़फोड़ की गई। 

बिहार में आरजेडी और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने ट्रेनें रोकी और बसों पर पथराव किया। 

बिहार के ही फारबिसगंज में आगजनी करने का प्रयास करते हुए कांग्रेस नेता नाजिम रजा खुद झुलस गए। 

उधर रामलीला मैदान में मंच पर भाषण देने के दौरान कांग्रेसी खेमे में नेतृत्व का संकट फिर से नजर आया। राहुल गांधी को गठबंधन के सबसे वरिष्ठ नेता के तौर पर पेश करने की कोशिश की गई, लेकिन विरोधाभास साफ नजर आया। यहां तक कि शरद पवार जैसे वरिष्ठ नेता को भी राहुल के नीचे दिखाने की कोशिश की गई। 

कांग्रेस ने सोमवार के इस भारत बंद के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी। अहमद पटेल, अशोक गहलोत, शरद यादव जैसे कई वरिष्ठ नेताओं ने भारत बंद के लिए समर्थन जुटाने में बहुत मेहनत की थी। लेकिन अगर इस बंद को कांग्रेस का शक्ति प्रदर्शन मान लिया जाए। तो इससे साफ हो जाता है कि कांग्रेस अभी बेहद कमजोर है। उसे अगले लोकसभा चुनाव के लिए बहुत ताकत जुटाने की जरुरत है।
 इसके अलावा सबसे बड़ी बात तो ये है कि अभी भी बड़े और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं।