नई दिल्ली। देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने वोट के बदले नोट के प्रकरण में सांसदों और विधायकों को आपराधिक मुकदमे से छूट देने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि संसदीय विशेषाधिकार के तहत रिश्वतखोरी की छूट नहीं दी जा सकती है। जिसके बाद अब सांसदों और विधायकों को वोट के बदले रिश्वत लेने के मामले में मुकदमे से मिली राहत छिन सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने इस छूट पर अपनी असहमति जताते हुए वर्ष 1998 में दिए अपने ही पिछले फैसले को पलट दिया है। 

सीजेआई की अध्यक्षता वाली 7 जजों की पीठ ने की सुनवाई
शीर्ष अदालत ने वोट के बदले नोट के मामले में सांसदों और विधायकों को आपराधिक मुकदमे से छूट देने से 03 मार्च को इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसदीय विशेषाधिकार के तहत रिश्वतखोरी की छूट नहीं दी जा सकती। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 7 जजों की संविधान पीठ ने इस मामले पर अपना फैसला सुनाया। सीजेआई के अलावा संविधान पीठ में जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस जेपी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे।

संविधान पीठ ने पीवी नरसिम्हा राव मामले के फैसले पर जताई असहमति
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पीठ के सभी जज इस मुद्दे पर पीवी नरसिम्हा राव मामले मे दिए फैसले से असहमत हैं। नरसिम्हा राव मामले में अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों और विधायकों को वोट के बदले नोट लेने के मामले में मुकदमे से छूट देने का फैसला सुनाया था। चीफ जस्टिस ने कहा कि सांसदों और विधायकों को मिली छूट यह साबित करने में विफल रही है कि उनको अपने विधायी कार्यों में इस छूट की अनिवार्यता है। सीजेआई ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 में रिश्वत से छूट का प्रावधान नहीं है, क्योंकि रिश्वतखोरी आपराधिक कृत्य है। यह सदन में भाषण देने या वोट देने के लिए जरूरी नहीं है। पीवी नरसिम्हा राव मामले में दिए फैसले की जो व्याख्या की गई है, वो संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 के विपरीत है। 

मुकदमे से छूट के विरोध में केंद्र सरकार ने दी थी दलील
संविधान पीठ ने 1998 के झामुमो रिश्वतकांड पर दिए अपने फैसले पर पुनर्विचार के संबंध में सुनवाई पूरी कर 5 अक्तूबर 2023 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। तब केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रिश्वत के बदले वोट के मामले में मिले विशेषाधिकार का विरोध किया था। सरकार ने तर्क दिया था कि रिश्वतखोरी कभी भी मुकदमे से छूट का विषय नहीं हो सकती। संसदीय विशेषाधिकार का मतलब किसी सांसद या विधेयक को कानून से ऊपर रखना नहीं है।  

संसद या विधानसभा भवन के अंदर की बयानबाजी के प्रकरण को किया खारिज
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान संसद या विधानसभा में अपमानजनक बयानबाजी को अपराध मानने के प्रस्ताव पर भी चर्चा हुई। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान ही खारिज कर दिया था। 

सुप्रीम कोर्ट ने सीता सोरेन मामले के फैसले पर किया पुनर्विचार
झारखंड की विधायक सीता सोरेन पर साल 2012 में राज्यसभा चुनाव में वोट के बदले रिश्वत लेने के आरोप के मामले में पुनर्विचार किया। सीता सोरेन ने अपने खिलाफ चल रहे मामले को रद्द करने की मांग की थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने 1993 के घूसकांड पर 1998 में दिए 5 जजों की संविधान पीठ के एक फैसले की 7 जजों की पीठ द्वारा समीक्षा करने का फैसला किया था।

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