लखनऊ।

देश में चुनावी सरगर्मी और सरहद पर बदले हुए राजनीतिक घटनाक्रम को देखते हुए बसपा प्रमुख मायावती अपनी राजनीतिक साख को बनाये रखने के लिए नयी चुनावी रणनीति बना रही हैं। पुलवामा में हुए आतंकी हमले और भारत की जवाबी कारवाई के बाद, बदले राजनीतिक हालात को देखते हुए, बसपा एक बार फिर अपने सफल फार्मूले ब्रह्मण-दलित समीकरण को जमीन पर उतारने जा रही है।

गौरतलब है कि कुछ महीने पहले तक सपा- बसपा गठबंधन के लिए यूपी में चुनावी  परिस्थिति अनुकूल दिख रही थी। लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देकर और हाल ही में हुए पुलवामा आतंकी हमले के जवाब में वायु सेना के एयर स्ट्राइक के बाद, भाजपा एक बार फिर चुनावी माहोल अपने पक्ष में बनाती नजर आ रही है। साथ ही प्रियंका गांधी की बढ़ती सक्रियता से भी सपा-बसपा गठबंधन के वोट बैंक पर असर पड़ने की आशंका है। सूत्रो के मुताबिक चुनाव में अपनी बढ़त बनाने के लिए  बसपा महासचिव सतीश मिश्रा एक बार फिर मायावती के संकट मोचक बनने जा रहे हैं।

जिस प्रकार उन्होने 2007 यूपी विधान सभा चुनाव में दलित-ब्रह्मण गठजोड़ के सोशल इंजीन्यरिंग फोर्मूले की मदद से 30 फीसदी वोट हासिल कर 206 सीटों के साथ मायावती की सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। हालांकि लोकसभा के चुनाव की परिस्थितियाँ अलग होती हैं। वहीं यूपी में प्रियंका गांधी के मैदान में उतरने के बाद मायावती को भाजपा विरोधी मुस्लिम वोट आसानी से मिलता नजर नहीं आ रहा है। राजनीतिक पंडितों के अनुसार प्रियंका गांधी का अपना एक चार्म है, जिसके के कारण पिछड़ी जाति के युवा और मुस्लिम कांग्रेस की तरफ झुक सकते हैं।

वहीं मुस्लिम वोटर कभी भी बसपा का कोर वोटर नहीं था वो अक्सर सपा-बसपा के बीच में चुनाव करता रहा है, हालांकि इस बार समाजवादी पार्टी उनके साथ गठबंधन में है। वर्तमान राजनीतिक माहोल को समझते हुए बसपा प्रमुख एक बार फिर दलित-ब्रह्मण व अन्य जतियों को साथ लेकर वोटरों को साधने जा रही है। सूत्रों के अनुसार कार्यकताओं और पदाधिकारियों से अब नए सिरे से  हर सीट का आंकलन कर रिपोर्ट माँगी गयी है। उसके बाद लोकसभा उम्मीदवारों का ऐलान होगा जिसमें, ब्राह्मण उम्मीदवारों के पास 9-10 सीटें तथा दलितों के खाते में 10-11 सीटें आने की संभावना हैं। वहीं मुस्लिम उम्मीदवारों के खाते में 7-8 सीटें और राजपूत/भूमिहार को 3-4 टिकट दिया जा सकता है। जबकि ओबीसी उम्मीदवारों कि संख्या 7-8 रह सकती है।

आपको बता दे लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा को यूपी में 42.3 प्रतिशत वोट मिले थे, वहीं सपा-बसपा दोनों को मिलाकर कुल 41.8 प्रतिशत वोट ही मिले थे और काँग्रेस को कुल 7.5 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे। अगर काँग्रेस पिछड़े, दलित और मुस्लिम वोटरों का 2-3 प्रतिशत वोट भी अपनी तरफ खींच पाने में सफल हुई तो इसका नुकसान सपा-बसपा गठबंधन को हो सकता है। दरअसल मायावती के लिए आगामी लोकसभा चुनाव, बसपा को राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में जिंदा रखने का लगभग अंतिम अवसर है। बढ़ती उम्र और स्वस्थ्य के चलते आने वाले दिनों में उनकी सक्रियता और भी कम होने लगेगी। वहीं भाजपा अगर 2019 में केंद्र में दुबारा लौट कर आयी, तो विपक्षी एकता का एकजुट रह पाना भी बहुत मुश्किल होगा।