लोकसभा चुनाव में एक तरह से कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया है। यहां तक कि कांग्रेस से लोकसभा में एक बार फिर विपक्ष के नेता का पद छिन गया है। जबकि पिछली बार भी कांग्रेस इसके लिए जरूरी सांसदों का आंकड़ा भी एकत्रित नहीं कर पायी थी। हालत ये है कि गांधी परिवार का गढ़ माने जाने वाले अमेठी में राहुल गांधी हार गए हैं और रायबरेली में सोनिया गांधी की जीत का अंतर भी कम हो गया है। हालांकि इसके लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ ही उनकी टीम जिम्मेदार मानी जा रही है।
लोकसभा चुनाव में दूसरी बार कांग्रेस पार्टी की बड़ी हार हुई है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी स्वयं अमेठी सीट से हार गए हैं जहां पर उनकी बहन प्रियंका गांधी ने प्रचार का पूरा जिम्मा लिया था। लेकिन पार्टी यूपी में महज एक सीट पर ही सिमट कर रह गयी है। वहीं लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की पूरी टीम फ्लॉप साबित हुई है। लेकिन इस सबके बावजूद पार्टी के महासचिव मुकुल वासनिक पार्टी के लिए संकट मोचक साबित हुए हैं। जिन्होंने अकेले तमिलनाडू और केरल में 24 सीटों पर कांग्रेस की जीत को सुनिश्चित किया है।
लोकसभा चुनाव में एक तरह से कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया है। यहां तक कि कांग्रेस से लोकसभा में एक बार फिर विपक्ष के नेता का पद छिन गया है। जबकि पिछली बार भी कांग्रेस इसके लिए जरूरी सांसदों का आंकड़ा भी एकत्रित नहीं कर पायी थी। हालत ये है कि गांधी परिवार का गढ़ माने जाने वाले अमेठी में राहुल गांधी हार गए हैं और रायबरेली में सोनिया गांधी की जीत का अंतर भी कम हो गया है।
हालांकि इसके लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ ही उनकी टीम जिम्मेदार मानी जा रही है। कांग्रेस अध्यक्ष ने कुछ समय पहले अपनी टीम की घोषणा की। जिसमें प्रियंका गांधी को महासचिव के साथ ही पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी नियुक्त किया था जबकि पश्चिम उत्तर प्रदेश का प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया को बनाया था। सिंधिया को पार्टी का महासचिव भी नियुक्त किया था।
लेकिन सिंधिया मध्य प्रदेश की गुना से भी अपनी सीट बचाने में नाकामयाब रहे। असल में कांग्रेस में जिन भी नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी थी, वह जमीन पर काम करने में विफल रहे। ज्योतिरादित्य सिंधिया पश्चिम उत्तर प्रदेश की जगह ज्यादा समय मध्य प्रदेश में ही रहे। लिहाजा इसका खामियाजा उत्तर प्रदेश में पार्टी का उठाना पड़ा था। पार्टी ने कुछ समय पहले अंबिका सोनी को जम्मू-कश्मीर का प्रभारी नियुक्त किया।
लेकिन वह वहां पर कुछ भी करिश्मा दिखाने में सफल न हो सकी और इस बार तो पार्टी का वहां खाता भी नहीं खुला है। कुछ इसी तरह से पार्टी ने पंजाब का प्रभारी आशा कुमारी को नियुक्त किया था। आशा कुमारी हिमाचल प्रदेश में विधायक हैं। लेकिन संगठन के मामले में उनका अनुभव कम है। लिहाजा इसका असर पंजाब में देखने को मिला।
वहीं रजनी पाटिल को हिमाचल प्रदेश का प्रभारी बनाया गया था, लेकिन वहां पर बीजेपी के सामने पार्टी चारों सीटों पर हार गयी। हालांकि पीसी चाको दिल्ली में आप के साथ चुनावी गठबंधन के पक्ष में थे, लेकिन शीला दीक्षित के सामने उनकी एक नहीं चली और कांग्रेस को अकेले चुनाव लड़ना पड़ा। लिहाजा पार्टी सातों सीटों पर चुनाव हार गयी।
राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश के निवासी अविनाश पांडे को राजस्थान का प्रभारी नियुक्त किया था, लेकिन उनके राजनैतिक अनुभव को पार्टी का कोई फायदा वहां नहीं मिला और पार्टी वहां पर खाता भी नहीं खोल पायी। जबकि दीपक बाबरिया भी मध्य प्रदेश में प्रभारी रहते हुए कांग्रेस को जीत नहीं दिला सके। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को विधानसभा के चुनाव में जीत दिलाने वाले पीएल पुनिया भी लोकसभा चुनाव में कोई करिश्मा नहीं दिखा सके और पार्टी वहां पर दो सीटों में सिमट गयी।
सबसे बड़ी हार को कांग्रेस के महाराष्ट्र के प्रभारी वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को देखने को मिली। जो खुद कर्नाटक से चुनाव हार गए और महाराष्ट्र पार्टी को एक ही सीट मिली है। कुछ ऐसा ही हाल झारखंड के प्रभारी महासचिव आरपीएन सिंह का है जो कुशीनगर से लोकसभा चुनाव हार गए हैं और वहां पर पार्टी को एक ही सीट मिली है जबकि पहले कहा जा रहा था कि झारखंड में पार्टी अच्छा प्रदर्शन करेगी।
फिलहाल इस मामले में अच्छी किस्मत तमिलनाड के प्रभारी मुकुल वासनिक की रही। वहां पर पार्टी ने 9 सीटें जीती है। इसके साथ ही केरल का भी प्रभार उनके पास था जहां पर पार्टी ने 15 सीटों पर जीत हासिल की है। फिलहाल वासनिक पार्टी के लिए बड़े संकट मोचक बने हैं। कांग्रेस ने चुनाव 52 सीटों पर जीत हासिल की है जबकि इन दो राज्यों में उसे 24 सीटें मिली हैं।
उधर दो बार उत्तराखंड के सीएम रहे हरीश रावत भी लोकसभा चुनाव हार गए और वह असम के प्रभारी थे। लेकिन वहां पर पार्टी को महज तीन सीटें मिली।
Last Updated May 24, 2019, 5:55 PM IST