रविवार को पाकिस्तान के एक प्रमुख उर्दू अखबार ‘डेली दुन्या’ में एक ऐसे शख्स का आलेख छपा, जिसे अमेरिका और भारत पूरी दुनिया मोस्ट वांटेड आतंकवादी के रुप में पहचानती है। वह था हाफिज सईद।

हाफिज सईद का यह आलेख बांग्लादेश के गठन और कश्मीर मुद्दे पर आधारित था। जैसी कि उम्मीद थी उसने इस बौद्धिक प्लेटफॉर्म पर भी अपना आतंकवादी एजेन्डा ही आगे बढ़ाया है। 

2008 में मुंबई आतंकवादी हमलों के बाद अमेरिका ने हाफिज सईद को वैश्विक आतंकी घोषित कर रखा है। सईद पर बढ़ते वैश्विक दबाव को देखते हुए पाकिस्तान ने 2008 में उसे नजरबंद किया लेकिन कुछ महीने बाद उसे रिहा कर दिया गया।आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता के लिए अमेरिका ने सईद के सिर पर 10 लाख अमेरिकी डॉलर का इनाम घोषित किया। 

इसके बावजूद पाकिस्तान के बड़े अखबार हाफिज सईद को ‘प्रोफेसर’ का तमगा देते हुए उससे गेस्ट कॉलमिस्ट के रुप में आलेख लिखवाने के लिए मजबूर हैं। 

हालांकि पाकिस्तानी पत्रकारों का एक बड़ा तबका इस बात का विरोध कर रहा है और वहां इस बात पर बहस शुरु हो गई है कि कैसे एक प्रतिबंधित आतंकी समूह के सरगना को अखबार में अपने विचार प्रकट करने की इजाजत दी गई ।

दरअसल इस सवाल का जवाब जुड़ा हुआ है पाकिस्तान में तहरीके इंसाफ पार्टी के नेता इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने के साथ। 

इमरान खान चार महीने पहले 18 अगस्त को पाकिस्तान के पीएम बने थे। जिसके बाद से पाकिस्तानी मीडिया का दुर्दिन शुरु हो गया था। 

फौज के समर्थन से प्रधानमंत्री बनने के बाद इमरान सरकार ने मीडिया की नकेल कसनी शुरु कर दी थी। पाकिस्तान में आर्थिक तंगी का बहाना करके मीडिया को दी जाने वाली सरकारी मदद बंद कर दी गई। 

ऑल पाकिस्तान न्यूज़पेपर्स सोसाइटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में तहरीके इंसाफ़ के सत्ता में आने के बाद संघीय और प्रांतीय सरकारों की ओर से आने वाले सरकारी विज्ञापनों की संख्या में भारी गिरावट आई है। 

जिसका नतीजा यह रहा कि मीडिया सेक्टर में पत्रकारों की तनख्वाहें रुकने लगीं। वहां का एक बड़ा न्यूज चैनल ‘वक्त न्यूज’ बंद हो गया, जिसकी वजह से सैकड़ों पत्रकार बेरोजगार हो गए। 

यही नहीं इमरान सरकार पर यह भी आरोप लगाया गया कि आर्थिक तंगी के नाम पर सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों को मीडिया संस्थानों से बाहर निकाला जा रहा है। 

इमरान सरकार के शपथ लेने के दो महीने बाद ही अक्टूबर महीने में पाकिस्तान के एक बड़े न्यूज चैनल ‘बोल न्यूज़’ के 200 कर्मचारियों की नौकरी चली गई। 

पाकिस्तान के प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान ‘डॉन’ की वीकली पत्रिका संडे मैगज़ीन भी प्रभावित हुई है। उसके कुछ पन्ने कम कर दिए गए हैं। जिसकी वजह से कई पत्रकारों की नौकरी चली गई। 

इसके अलावा पाकिस्तान के बड़े पत्रकार मातिउल्लाह जान (वक़्त न्यूज़), नुसरत जावीद (डॉन न्यूज़), तलत हुसैन (जियो टीवी) और इम्तियाज़ आलम (जियो टीवी) को नौकरी से हटा दिया गया।
 
जिसके बाद जियो टीवी के इम्तियाज आलम ने 20 नवंबर को ट्वीट करते हुए लिखा था, "मैं एक दिसंबर से जियो टीवी और उसके कार्यक्रम रिपोर्ट का हिस्सा नहीं रहूंगा। सेंसरशिप के साथ काम करना बहुत मुश्किल हो गया है।"

दो अक्टूबर को डॉन अख़बार के संपादकीय में लिखा गया कि "कई मीडिया संस्थानों पर सरकारी संस्थाओं की हां में हां मिलाने का भारी दबाव है और इस दबाव की वजह से अब सेल्फ़-सेंसरशिप एक सामान्य बात हो गई है।"

जाहिर सी बात है कि जब पाकिस्तान का मीडिया इतने बुरे हालातों से गुजर रहा है और इतनी बड़ी संख्या में पत्रकारों को नौकरी से निकाला जा रहा है तो उनकी जगह लेने के लिए हाफिज सईद जैसे आतंकवादी ही सामने आएंगे।