जयपुर। राजस्थान के एक शुष्क, बंजर पहाड़ी क्षेत्र में जन्मे और पले-बढ़े लाल सिंह ने कभी नहीं सोचा था कि वे मिर्च की खेती करके अच्छी कमाई करेंगे। वह पिछले लगभग चालीस साल से राज्य के उदयपुर भीलवाड़ा जिले के सिंघटवाड़ा गाँव में पारंपरिक खेती कर रहे थे और मक्का और गेहूं उगा कर परिवार का पेट पाल रहे थे। लेकिन उन्होंने कभी ये नहीं सोचा की मिर्च से वह अपनी आय को बढ़ा सकते हैं।

उनका कहना है कि वह कभी भी अपनी डेढ़ एकड़ ज़मीन से 3,000 से 4,000 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक कमाने में सफल नहीं हो सके। लेकिन अब कड़ी मेहनत से लाख कमाने के लिए मल्चिंग और ड्रिप सिंचाई तकनीकों का उपयोग करते हुए वह शुष्क क्षेत्र में मिर्च की खेती कर रहे हैं और इससे अधिक आय को प्राप्त कर रहे हैं। उन्होंने दो सीजनों में लगभग 2.5 लाख रुपये की कमाई की। साल में लगभग 580 मिमी बारिश होती है और बंजर भूमि के कारण बारिश का अधिकांश पानी पहाड़ी ढलानों से निकल जाता है। वह बताते हैं कि पिछले एक साल में उन्होंने मिर्च बेचकर 2.5 लाख रुपए कमाए।  

वह बताते हैं पहले जहां वह पारंपरिक खेती करते थे वहीं अब वह मिर्च की खेती कर रहे हैं।  किसान लाल सिंह कहते हैं, '' मेरा परिवार सदियों से यहां बसा हुआ है और लगभग 3,500 लोगों के हमारे गांव ने कभी किसी नई फसल के साथ प्रयोग नहीं किया। लेकिन 2017 में कृषि विकास में मदद करने वाले एक धर्मार्थ संगठन ने उनका मदद की और उन्हें ड्रिप सिंचाई और मल्चिंग तकनीक सहित खेती के नए तरीके सिखाए। क्योंकि उनके इलाके में सबसे बड़ी समस्या पानी की थी।अपनी खेती के तौर-तरीकों को बदलने और बेहतर कमाई करने की जरूरत महसूस करने के बाद  उन्होंने अजमेर के बंधनवाड़ा में प्रशिक्षण लिया।

उनका कहना है कि 2018 में उन्होंने पहली बार आधा एकड़ जमीन में लाल मिर्च की खेती करने का फैसला किया। लेकिन मुझे विश्वास नहीं था कि जमीन पर ये फसल होगी। लेकिन मुझे सफलता मिली। उनका कहना है कि खर्च और सभी  तरह के लागत को लगाने के बाद लाभ के रूप में उन्होंने पहली ही फसल में 1.5 लाख रुपये कमाए। हालांकि खेती के लिए उन्होंने जैव-उर्वरकों और जैव-कीटनाशकों के साथ, फसल की खेती के लिए जैविक तरीकों का इस्तेमाल किया। ड्रिप इरिगेशन से थोड़े पानी के साथ फसल उगाने में मदद मिली। मल्चिंग ने मिट्टी में नमी बनाए रखने में मदद की, जिससे पानी की आवश्यकता कम हो गई।

उनका कहना है कि यह उनके जीवन का पहला मौका था जब उन्होंने बंपर पैदावार देखी, वह भी परंपरागत फसल से अलग। वह बताते हैं कि ये सफलता आसान नहीं थी। फसल लगाने से पहले पौध को 30-35 दिनों के लिए नर्सरी में लाया और पोषित किया जाना था। प्लास्टिक की चादरों और ड्रिप लाइनों के साथ मल्चिंग रखी गई थी। छह दशक को पार कर चुके लाल सिंह कहते हैं कि मुझे एहसास हुआ कि इस तरह के परिणाम लाने के लिए एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण की आवश्यकता थी। वह कहते हैं कि पहली सफलता के बाद उन्होंने इस साल पूरे क्षेत्र में हरी और लाल मिर्च लगाई है।" वहीं वह गांव के अन्य किसानों के लिए प्रेरणा बन गए हैं। गाँव के एक किसान शंकर मीणा भी लाल सिंह की सफलता से प्रेरित हुए हैं और वह भी मिर्च की खेती कर रहे हैं।  वहीं अब लगभग दस और किसानों ने गांव में लाल सिंह की सफलता को दोहराने का फैसला किया है।