आम आदमी लगातार अपनी कोशिशें जारी रखें तो बड़ी सफलता हासिल कर सकता है। कुछ ऐसी ही खबर आई है छत्तीसगढ़ से। यहां के बिलासपुर जिले में रहने वाले किसान कचरे से खाद बनाकर हर साल 15 लाख की कमाई करने में सफल हो रहे हैं।
बिलासपुर: आदिवासी राज्य छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में एक गांव है लाखासर। जहां किसान प्रमोद शर्मा रहते हैं। उन्हें मास्टर ट्रेनर की उपाधि दी गई है। क्योंकि वह किसानों को गोबर और कचरे से जैविक खाद बनाना सिखाते हैं। यही नहीं वह खाद बेचकर हर साल 15 लाख रुपए की हर साल अतिरिक्त कमाई भी करते हैं।
वह कचरे और गोबर से जैविक खाद बनाकर खेती से हर साल 15 लाख रुपये तक कमाते हैं। उनके इस सफल प्रयास को राज्य सरकार प्रदेश के दूसरे किसानों तक ले जाने की तैयारी कर रही है। इसके लिए उन्हें 'मास्टर ट्रेनर' बनाया गया है। अब वह राज्य के दूसरे किसानों को अपने सफल प्रयोग के बारे में सिखाएंगे।
बिलासपुर जिले के लाखासर गांव में रहने वाले प्रमोद शर्मा ने बीकॉम की पढ़ाई पूरी करने के बाद खेती-किसानी की तरफ रुख किया। वह जैविक खेती करना चाहते थे। लेकिन उसके लिए जैविक खाद का इंतजाम करना उनके सामने बड़ी चुनौती थी।
लेकिन जल्दी ही उन्होंने देखा कि गांव के लोग अपनी बूढ़ी व अनुपयोगी गायों को खुले में छोड़ दिया करते थे। उन्होंने अपनी खाली पड़ी जमीन पर गोशाला खोली और गाय पालने वाले लोगों से आग्रह किया कि वे बूढ़ी गायों को खुले में छोड़ने के बजाय उनकी गोशाला में भेजें।
उनके आग्रह पर गांव वाले अपनी अनुपयोगी गायों को उनकी गोशाला में भेजने लगे। कुछ ही दिनों में उनकी गोशाला में गायों की संख्या पौने तीन सौ हो गई। इन गायों से प्रतिदिन लगभग तीन क्विंटल गोबर मिल जाता है. इतना गोबर उनकी जरूरत के लिए पर्याप्त था। इस तरह शर्मा की एक बड़ी समस्या का हल हो गया। वह कचरे और गोबर से जैविक खाद बनाने लगे।
प्रमोद हर साल 200 टन जैविक खाद तैयार करते हैं, जिसमें से 150 टन खाद तो उनके खेतों में उपयोग हो जाती है और 50 टन जैविक खाद को बेच देते हैं।
पढ़े-लिखे किसान प्रमोद शर्मा रासायनिक खाद के स्थान पर जैविक खाद के उपयोग से 3000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से बचत कर लेते हैं।
शर्मा के जैविक खाद बनाने के सफल प्रयोग को देखकर राज्य सरकार इस तरकीब को अपने के लिए प्रेरित कर अन्य किसानों की जिंदगी में बदलाव लाना चाहती है।
शर्मा ने बताया कि वह गोबर को वर्मी कम्पोस्ट टंकी में पानी और कई तरह के दूसरे कचरों के साथ डाल देते हैं। उसमें पानी डालकर एक हफ्ते तक छोड़ दिया जाता है। इसके बाद ऊपर से गोबर का घोल डाल दिया जाता है। इसके बाद इसमें केंचुआ मिला दिया जाता है। अगले तीन माह में जैविक खाद बनकर तैयार हो जाती है।
प्रमोद ने बताया कि 'मैंने शुरुआत में केंचुआ क्यूबा से मंगाया, उसके बाद अपने यहां केंचुआ का उत्पादन करने लगे। आज हाल यह है कि मैं प्रतिदिन 10 क्विंटल केंचुए की आपूर्ति करने लगा हूं'।
प्रमोद शर्मा के खेतों में पैदा होने वाली जैविक फसलों जैसे गेहूं, चना व धान की बाजार में काफी मांग है। उनके पेड़ों के अमरूद भी खूब बिकते हैं। क्योंकि रासायनिक खेती से दूर होने के कारण उनकी फसलों का स्वाद ही अनूठा होता है।
Last Updated Jul 6, 2019, 8:18 AM IST