भारतीय सेना शांति सेना मिशन (आईपीकेएफ) के तहत श्रीलंका में थी। 29 जुलाई, 1989 को तनीयुत्तु में उग्रवादियों को खत्म करने के लिए घात लगाकर हमले की तैयारी की गई। इसमें राइफलमैन मोहन सिंह एलएमजी (लाइट मशीन गन) संभाल रहे थे। जल्दी ही भारतीय सेना का 60 से 80 उग्रवादियों के बड़े समूह से आमना-सामना हो गया। 

बहादुर राइफलमैन मोहन सिंह ने तुरंत जवाबी कार्रवाई करते हुए कई उग्रवादियों फायरिंग में उलझा लिया। तभी उन्होंने देखा कि कुछ उग्रवादी पास ही दूसरे सेक्शन के घायल सैनिकों से हथियार लूटने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। निजी सुरक्षा की चिंता किए बगैर और अदम्य साहस दिखाते हुए वह अपनी एलएमजी के साथ दौड़े और उग्रवादियों पर भारी गोलीबारी शुरू कर दी। उग्रवादियों को जानमाल का बड़ा नुकसान पहुंचा। हालांकि इस कार्रवाई में मोहन सिंह भी गोलियां लगने से बुरी तरह जख्मी हो गए। अपने साथी जवानों को बचाने के लिए उन्होंने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया।  उनकी इस बहादुरी और साहस के लिए उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र प्रदान किया गया।