न्यूज डेस्क। जी-20 सम्मलेन (G-20 SUMMIT) के लिए देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली तैयार है। दिल्ली को दुल्हन की तरह सजाया गया है। हर तरफ भारतीय संस्कृति की अमिट छाप दिखाई दे रही है। 9 से 10 सितंबर तक होने वाली इस बैठक में पुरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई हैं। 20 स्थायी सदस्य देशों के साथ 9 देशों को अतिथि के तौर पर निमंत्रण दिया गया है। इसके साथ ही यूनाइटेड नेशन (UN) वर्ल्ड बैंक (World Bank), वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) संगठन भी इसका हिस्स बनेगा। भारत प्रगति के पथ पर विकासरत है और ये क्षण हर भारतवासी के अभूतपूर्ण हैं। ऐसे में ये जानना भी जरुरी है कि इससे भारत को फायदा होने वाला है और ये बैठक इतनी जरुरी क्यों है? 

दुनिया में अफरातफरी, भारत स्थिर

गौरतलब है, जर्मनी जैसे देश की इकॉनमी मंदी में जा चुकी हैं। यूक्रेन-रूस युद्ध वॉर के कारण महंगाई चरम पर है। ऐसे में G-20 की मेजबानी के जरिए भारत के पास दुनिया को खुद के आत्मनिर्भर बनने के साथ अपनी शक्ति और सामर्थ्य को प्रदर्शित करने का मौका है। बता दें, दुनिया की GDP में 85 फीसदी हिस्सा जी-20 देशा का है। व्यापार में 75 प्रतिशत हिस्सा इन देशों के पास है। लिहाजा ये समिट पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण हैं। 

शी-जिनपिंग का नहीं आना भारत के लिए अच्छा ?

PM मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी-जिनपिंग की BRICS SUMMIT के दौरान मुलाकात हुई और सीमा विवाद को सुलझाने पर दोनों सहमत हुए। लेकिन कुछ दिनों बाद चीन ने असली रंग दिखाते हुए अपना स्टैंडर्ड मैप जारी किया। जिसमें अरुणाचल प्रदेश (Arunachal pradesh) और अक्साई चिन को चीन का हिस्सा बताया। भारत ने चीन को फटकार लगाई। विदेश मंत्री एस जयशंकर (S.Jaishankar) ने कहा कि गलत दावे करने से कोई क्षेत्र अपना नहीं हो जाता। इसी बीच शि-जिनपिंग ने जी-20 बैठक में हिस्सा लेने भारत आने का फैसला पलट दिया। ये पहली बार है जह 2013 के बाद से वह दूसरी बार जी-2द बैठक में हिस्सा नहीं लेंगे। विश्लेषकों का कहना है, भारत-चीन के तनावपूर्ण रिश्तों के बीच अगर वे भारत आते तो उनके लिए ये अच्छा नहीं होता। साथ ही भारत चीन के मुकाबले वैश्विक मंच पर ज्यादा प्रभाव रखता है। इसलिए जिनपिंग खुद के सामने भारत के प्रभाव को नहीं देखना चाहते। वहीं इस वक्त चीन के अंदरुनी हालात भी ठीक नही हैं।  राजनितिकारों का मानना है, देखा जाएं शि-जिनपिंग का न आना भारत के पक्ष में है, यदि वे आते हो विदेश मीडिया उनकी बॉडी लैग्वेंज से लेकर अमेरिका-चीन के संबंधों को ज्यादा कवर करता और शी-जिनपिंग सेंटर ऑफ एट्रेक्शन रहते। इसलिए भारत के पास खुद के शक्ति दिखाने का मौका है। 

भारत के हित में पुतिन का नहीं आना

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से पुतिन ने सम्मलेनों से दूरी बना ली है। उन्होंने BRICS सम्मेलन में वर्चुअली हिस्सा लिया था। वहीं रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पुतिन ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि वह भारत नहीं आएंगे। जानकारों का कहना है, अगर पुतिन दिल्ली आते तो यूरोपीय देशों के प्रमुख नेताओं का पुतिन से आमना-सामना होता। यूक्रेन मुद्दे पर चर्चा होती और पिछली समिट की तरह ये समिट भी रूस यूक्रेन वॉर पर चर्चा की भेंट चढ़ जाता। वहीं पुतिन के भारत आने पर और बैठक में यूक्रेन की चर्चा होने से भारत पर दबाव बन सकता है। जिससे असहज स्थिति पैदा हो सकती थी। हालांकि पुतिन के नहीं आने से भारत बड़ी परेशानी से निकल गया।

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