जम्मू-कश्मीर के सभी स्कूल-कॉलेजों में गीता और रामायण पढ़ाने का आदेश विरोध के वाद वापस ले लिया गया है। पहले जारी आदेश में कहा गया था कि सभी स्कूलों, कॉलेजों अथवा लाइब्रेरी को भगवद् गीता और रामायण की उर्दू प्रतिलिपियां उपलब्ध कराई जाएंगी।

 22 अक्टूबर को जारी आदेश में कहा गया था कि उच्च शिक्षा विभाग, कॉलेजों के निदेशक, लाइब्रेरी और संस्कृति निदेशक यह सुनिश्चित करेंगे कि सर्वानंद कौल प्रेमी द्वारा लिखित श्रीमद भागवत - गीता और रामायण की उर्दू में संकलित प्रतिलिपियां राज्य के सभी स्कूलों, कॉलेजों में उपलब्ध हों।

यह फैसला राज्यपाल सत्यपाल मलिक के एक सलाहकार की अध्यक्षता में 4 अक्टूबर को हुई एक उच्च स्तरीय बैठक में लिया गया था। सरकार का यह फैसला इसलिए महत्वपूर्ण माना जा रहा था क्योंकि घाटी में बढ़ते कट्टरवाद की वजह से युवा उसकी तरफ आकर्षित हो रहे हैं। यह फैसला उन युवाओं को मुख्यधारा में लाने की एक कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा था। लेकिन इसका तुरंत विरोध शुरू हो गया। 

सरकारी आदेश आने के बाद इस फैसले पर विपक्ष ने राज्यपाल प्रशासन को घेरना शुरू कर दिया था। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि सिर्फ रामायण और गीता ही क्यों ? उन्होंने कहा कि अगर स्कूलों कॉलेजों और सरकारी लाइब्रेरी में कोई धार्मिक पुस्तक लगानी है तो उनका चुनाव धर्म के आधार पर क्यों किया जा रहा है। बाकी धर्मों को क्यों नजरअंदाज किया जा रहा है।

निर्दलीय विधायक इंजीनियर रशीद ने सरकार के इस फैसले को संघ से प्रेरित बताया। उन्होंने कहा कि अगर सरकार शिक्षण संस्थानों में भगवद् गीता और रामायण को बढ़ावा देना चाहती है तो कुरान को क्यों नहीं। इंजीनियर रशीद ने सरकार से इस फैसले को जल्द से जल्द वापस लेने की अपील की। विवाद बढ़ने के बाद फैसला वापस ले लिया गया।