अयोध्या। आज अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर के निर्माण का भूमि पूजन होगा और मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हो जाएगा। वहीं अब भगनान श्रीराम से जुड़ी जानकारियों को अयोध्या शोध संस्थान संजो रहा है और इसके लिए ग्लोबल इनसाइक्लोपीडिया की प्रतियां तैयार करा रहा है। संस्थान का कहना है कि इन्हें विदेशों में मौजूद भारतीय दूतावासों में रखा जाएगा। यानी अब भारतीय दूतावासों में भगवान श्रीराम विराजेंगे। इसके लिए संस्थान केन्द्र सरकार से इन्हें विदेशी दूतावासों में रखने की मांग करेगा।


मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अयोध्या के भव्य राम मंदिर में श्रीराम के विराजने के बाद इन प्रतियों को दूतावासों में भेजने की तैयारी है। इन्हें उन दूतावासों में रखा जहां भगवान श्रीराम या रामायण के अंश मिलते हैं। इसके लिए अयोध्या शोध संस्थान की तरफ से ग्लोबल इनसाइक्लोपीडिया की प्रतियां तैयार कराई जा रही हैं। संस्थान का कहना है कि उन देशों को खोजा रहा है कि जहां भगवान श्रीराम के अंश मिलते हैं या फिर रामायण के या रामायणकालीन अवशेष और परंपराएं मिलती हैं।


संस्थान के निदेश डा. वाईपी सिंह का कहना है कि अयोध्या में भव्य भगवान श्रीराम मंदिर में भगवान श्रीराम के विराजने के बाद इन प्रतियों को दूतावासों को भेजा जाएगा। इसके लिए संस्थान तैयारी कर रहा है और यहां भी श्रीराम या रामायाण के अंश मिलते हैं। उन दूतावासों में इन प्रतियों को भेजा जाएगा। उनका कहना है कि संस्थान की तरफ से ग्लोबल इनसाइक्लोपीडिया की प्रतियों को तैयार किया जा रहा है। इसके लिए संस्थान विदेश मंत्रालय से अनुरोध करेगा और इन प्रतियोंको दूतावासों में रखने की मांग करेगा। उनका कहना है कि पाकिस्तान से लेकर इटली, रूस, मॉरीशस और सूरीनाम में रामायण और श्रीराम जुड़ी तमाम जानकारियां मिलती हैं और हम लोग हर उस देश को खोज रहे हैं। जहां रामायण के या रामायणकालीन अवशेष और परंपराएं मिलती हों। इन देशों में रामलीलाओं के जरिए श्रीराम और रामायण की जानकारी वहां पहुंची हों। 

डॉ़ सिंह ने बताया कि केन्द्री संस्कृति मंत्रालय ने ग्लोबल इनसाइक्लोपीडिया के लिए सभी राजदूतों और हाई कमिशनरों को निर्देश जारी किए हैं कि वह श्रीराम से जुड़े शोध करवाएं। उनका कहना कि इनसाइक्लोपीडिया के साथ ही श्रीराम व रामायण से जुड़े सभी प्रतीकों को भी दूतावासों में रखा जाएगा। डॉ़ सिंह का कहना है कि इराक में भगवान श्रीराम से जुड़े 4000 साल पुराने भित्तिचित्र मिलते हैं वहीं रूस में रामलीलाओं की विशेष परंपरा है। जबकि इटली में पांचवीं शताब्दी ईसापूर्व के समय के चित्र मिलते हैं। वहीं कैलीफर्निया, कंबोडिया, लाओस में भी श्रीराम की कथाओं के अंश दिखते हैं। जबकि लाओस के राजमहल में तो रामलीलाओं का मंचन होता है।