नई दिल्ली: प्याज की भूमिका किसी भी भोजन में बेहद अहम होती है। इसलिए प्याज की कीमतें ज्यादा होने पर आम जनता भड़क जाती है। 

इस साल लगातार बढ़ रहे हैं प्याज के दाम 

इस साल फिर से प्याज की कीमतों के आसमान पर पहुंचने का खतरा मंडरा रहा है। क्योंकि भले ही प्याज पूरे देश में खाया जाता है लेकिन उसका उत्पादन केवल तीन राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में ही होता है। लेकिन यह तीनों ही राज्य इन दिनों सूखे की समस्या से जूझ रहे हैं। जिसकी वजह से प्याज के उत्पादन पर असर पड़ा है। यही वजह है कि प्याज की कीमतें लगातार चढ़ रही हैं।  

देश में 90 फीसदी लोग करते हैं प्याज का इस्तेमाल 

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में प्रति एक हजार लोगों में से 908 लोग रोज के खाने में प्याज का उपयोग करते हैं। पूरे देश के लोगों तक प्याज पहुंचाने का काम तीस छोटी बड़ी सब्जी मंडियां करती हैं। जिसमें सबसे बड़ी मंडी महाराष्ट्र के लासलगांव की है। लेकिन यहां अभी जून के महीने में प्याज के दाम तीस फीसदी उपर जा चुके हैं। 

सरकार ने शुरु कर दी है तैयारी

सरकार प्याज का किसी तरह का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी तय नहीं करती है। लेकिन प्याज की उपज मे गिरावट आने की वजह से सरकार की चिंता बढ़ गई है। एहतियात के तौर पर सरकार ने 50 हजार टन प्याज की खरीदारी करने और बफर स्टॉक जमा करने का फैसला किया है। 
क्योंकि भारत में कितनी ही मजबूत सरकार हो जब प्याज के दाम बढ़ने लगते हैं तो उसे खतरा महसूस होने लगता है। क्योंकि इतिहास गवाह है कि प्याज हमेशा से सरकारों की मुसीबत का कारण बनता आया है। 

प्याज के चलते ही गिरी थी जनता पार्टी की सरकार 

आज से 42 साल पहले सन् 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी थी। तब भी प्याज उसकी मुसीबत का कारण बना था। उस समय भी प्याज की कीमतें अचानक बढ़ने लगी थीं। जिसे कांग्रेस पार्टी ने मुद्दा बना लिया था। प्याज की बढ़ती कीमतों की तरफ ध्यान खींचने के लिए कांग्रेस के नेता सीएम स्टीफन संसद में प्याज की माला पहन कर चले गए थे। 
कांग्रेस ने प्याज के मुद्दे पर इतनी जबरदस्त राजनीति की, कि जनता पार्टी की सरकार दो साल बाद ही गिर गई। हालांकि इसकी कई वजहें थीं लेकिन इसकी मुख्य वजह प्याज मानी गई। 

अटल बिहारी वाजपेयी को भी प्याज ने रुलाया

अभी से कोई 21 साल पहले साल 1998 में जब अटल बिहारी वाजपेयी ने सरकार बनाई तब भी प्याज की कीमतें नाटकीय रुप से उपर चढ़ने लगी थीं। 
तब अटल जी को इसमें कांग्रेसी षड़यंत्र नजर आया था। उन्होंने बयान दिया था कि ‘जब कांग्रेस सत्ता में नहीं रहती तो प्याज परेशान करने लगता है’। 
उस समय दिल्ली प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और विधानसभा चुनाव सिर पर थे। तब प्याज की महंगाई से जनता को बचाने के लिए सरकार ने हर संभव कोशिश की थी। लेकिन इसका ज्यादा असर नहीं दिखा था। जब चुनाव हुआ तो मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज के नेतृत्व वाली भाजपा बुरी तरह हार गई। 

दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी हुई थीं  प्याज से परेशान 

सुषमा स्वराज के बाद शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन 15 साल बाद प्याज ने उन्हें भी रुला दिया। अक्तूबर 2013 को प्याज की बढ़ी कीमतों पर सुषमा स्वराज की टिप्पणी थी कि यहीं से शीला सरकार का पतन शुरू होगा। वही हुआ। भ्रष्टाचार के साथ प्याज की महंगाई का भी मुद्दा चुनाव में उठाया गया। जिसके बाद शीला दीक्षित की तीन बार की सरकार चली गई। 

शायद इसी वजह से इस बार मोदी सरकार ने किसी तरह का खतरा नहीं उठाते हुए जून के महीने में ही प्याज का बफर स्टॉक तैयार करना शुरु कर दिया है। क्योंकि भले ही यह पूर्ण बहुमत की सरकार हो, लेकिन जनता के मूड का कोई भरोसा नहीं।