देश में वैकल्पिक ईंधन के रूप में एथेनॉल की उपयोगिता स्थापित हो चुकी है। इसे पेट्रोल में मिलाकर उपयोग में लाया जा रहा है।
 
एथेनॉल उत्पादन चीनी मिलें ही कर सकती हैं। यही वजह है कि एथेनॉल उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए सरकार चीनी मिलों को 7400 करोड़ का अतिरिक्त ऋण देने की तैयारी कर रही है। इसपर ब्याज भी कम लिया जाएगा। सरकार का यह कदम हाल ही में शुरू की गई योजना के तहत है। 

खाद्य मंत्रालय जून में शुरू की गई इस योजना के तहत यह सुनिश्चित करने पर विचार कर रहा है कि गैर-शीरा-आधारित भट्टियां भी नई एथेनॉल निर्माण क्षमता को स्थापित करने और उसका विस्तार करने के लिए सस्ता ऋण लेने में सक्षम हो सकें। 

इस योजना के तहत सरकार ने 4,400 करोड़ रुपये के सस्ता ऋण उपलब्ध कराने की घोषणा की है और पांच साल की अवधि के लिए चीनी मिलों को 1,332 करोड़ रुपये की ब्याज सहायता प्रदान की घोषणा की है। इसमें एक साल की भुगतान नहीं करने की छूट की अवधि भी है। 

बताया जा रहा है कि मंत्रालय को 13,400 करोड़ रुपये के सस्ते ऋण के 282 आवेदन मिले हैं। इसमें से 6,000 करोड़ रुपये की ऋण राशि के 114 आवेदनों को मंजूरी दी जा चुकी है। 

मंत्रालय बाकी 168 आवेदनों के लिए और 7,400 करोड़ रुपये के अतिरिक्त आसान ब्याज वाले ऋण को मंजूरी देने के लिए मंत्रिमंडल की मंजूरी लेने जा रहा है। 
चीनी मिलों में एथेनॉल उत्पादन बढ़ने से देश में पेट्रोलियम का आयात कम किया जा सकेगा। जिससे विदेशी मुद्रा बचेगी और गन्ना किसानों को भी उनकी फसल का अतिरिक्त लाभ मिल पाएगा। भारत फिलहाल अपनी जरुरत का अस्सी फीसदी तेल आयात करता है। 

फिलहाल पेट्रोल डीजल में दस फीसदी इथेनॉल मिलाया जाता है। सरकार इसे बढ़ाकर तीस फीसदी करना चाहती है। देश में इथेनॉल का प्रयोग लगातार बढ़ता जा रहा है।  साल 2013-14 में तेल कंपनियां फिलहाल 38 करोड़ लीटर इथेनॉल खरीदती थीं, जो कि 2017-18 में बढ़कर 150 करोड़ लीटर हो चुका है।