नई दिल्ली | सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि आधुनिक तकनीक के मद्देनजर आईटी अधिनियम के तहत शक्तियां आवश्यक है क्योंकि अब डेटा को एनक्रिप्टेड (जिसे कोई नहीं पढ़ सकता) फॉर्म में भेजा जा रहा है. इसके अलावा निजता के अधिकार की रक्षा के लिए पर्याप्त सुरक्षा कानून मौजूद हैं और इसकी मदद से अपराधों का पता लगाया जा सकेगा.

सरकार ने यह भी कहा कि यह नया कदम अवैध निगरानी को प्रतिबंधित करता है। इस हलफनामे में उन्होंने कहा कि 20 दिसंबर को जारी की गई अधिसूचना यही है। जिसमें कहा गया था कि जांच एजेंसियां किसी के भी कंप्यूटर को चेक कर सकती है। इस हलफनामे में सरकार ने कंप्यूटर व इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस के मामले पर अपना पक्ष रखा है। 

उन्होंने कहा है कि कंप्यूटर और फोन पर मेल, मैसेज, डेटा इंटरसेप्ट करने के लिए एजेंसियों को कोई ब्लैंकेट परमिशन नहीं दी गई। हलफनामे में सरकार ने यह भी साफ कर दिया है कि नया कदम अवैध निगरानी को प्रतिबंधित करता है। इसने उन एजेंसियों की पहचान करके अस्पष्टता को हटा दिया है जो डाटा को इंटरसेप्ट कर सकती है। 

सरकार का कहना है कि अधिसूचना में निजता के अधिकार की रक्षा के लिए पर्याप्त सुरक्षा कानून मौजूद है। इसके चलते अपराधों का पता लगाया जा सकेगा।

गृह मंत्रालय ने दिसंबर में एक अधिसूचना जारी की थी जिसके जरिए देश की 10 केंद्रीय एजेंसियों को किसी के भी कंप्यूटर की तलाशी का अधिकार दिया गया था।  सरकार ने कहा था कि इसके लिए उन्होंने इस नियम में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित सुरक्षा उपाय शामिल हैं। 

सरकार के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट के वकील मनोहर लाल शर्मा सहित कई अन्य लोगो ने चुनौती दे रखी है।उनकी ओर से दायर की गई याचिका में कहा गया है कि 20 दिसंबर को सरकार की ओर से जारी किया गया आदेश लोगों की निजता का उल्लंघन है.