सरकारी क्षेत्र की कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड लंबित प्रोजेक्टों के चलते वायुसेना को लड़ाकू विमानों की आपूर्ति समय पर करने में नाकाम रही है। कुछ समय पहले दिल्ली में वायुसेना के दो दिन के वरिष्ठ अधिकारियों के सम्मेलन में इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा हुई थी। 

सूत्रों ने 'माय नेशन' को बताया, इस कांफ्रेंस में एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ, सात ऑपरेशनल कमांडर और एचएएल के शीर्ष अधिकारी शामिल हुए थे। सरकारी क्षेत्र की इस कंपनी के प्रदर्शन को लेकर एक प्रस्तुतिकरण भी दिया गया था। इसमें विस्तार से  बताया गया कि कैसे एचएल के कई प्रोजेक्ट देरी से चल रहे हैं। 

एचएएल में कई प्रोजेक्टों की रफ्तार बहुत धीमी है। सुखोई-30 प्रोजेक्ट तीन साल, जगुआर डरिन III प्रोजेक्ट छह साल, मिराज 2000 अपग्रेड कार्यक्रम दो साल और हल्के लड़ाकू विमान तेजस का प्रोजेक्ट अपने निर्धारित समय से पांच साल पीछे चल रहा है। 

वायुसेना की घटते जंगी बेड़े की कमी को पूरा करने के लिए विमानों से जुड़े प्रोजेक्ट काफी अहम हैं। वायुसेना के पास इस समय जंगी जहाजों के 31 बेडे़ हैं, जबकि उसके पास 42 बेड़े होने जरूरी हैं।

वायुसेना एचएएल की सबसे बड़ी खरीदार है। उत्पादन, मेंटीनेंस और सभी विमानों के ओवरहॉल से संबंधति सभी प्रोजेक्ट में ये पीएसयू शामिल है।

एचएएल के काम की धीमी रफ्तार और उन्नत लड़ाकू विमानों के उत्पादन के लिए नॉलेज बढ़ाने की खातिर विशेषज्ञता हासिल करने में कमी के चलते भारत को अपने लड़ाकू विमानों के बेड़े में आधुनिक विमानों को शामिल करने के लिए बाहर से आयात करना पड़ रहा है। इनमें फ्रांस से खरीदे जा रहे राफेल विमान भी शामिल हैं।

तेजस फाइटर जेट में हो रही देरी के चलते वायुसेना को पिछले कुछ वर्षों में अलग-अलग जगहों से 80 अतिरिक्त सुखोई विमान खरीदने पड़े। हालांकि एचएएल को कुछ महीने पहले हुए मेगा अभ्यास गगनशक्ति में उच्च ऑपरेशनल स्तर को बनाए रखने  के लिए वायुसेना की प्रशंसा भी मिली थी। सभी तरह के लड़ाकू विमानों में से 70 प्रतिशत से अधिक की ऑपरेशनल मेंटीनेंस में एचएएल मदद करता है।