कांग्रेस और उसके सहयोगी भले ही यह साबित करने का प्रयास कर रहे हैं कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) एक विश्व स्तरीय संगठन है लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र की इस कंपनी की एक और नाकामी ने वायुसेना को निराश किया है। दूसरे शब्दों में कहें तो वायुसेना को लगभग दस साल पीछे पहुंचा दिया है। जल्द ही रक्षा मंत्रालय 3,000 करोड़ रुपये इंटरमीडिएट जेट ट्रेनर (आईजेटी) प्रोग्राम को बंद करने पर फैसला लेने वाला है। इन विमानों का इस्तेमाल पायलटों को प्रशिक्षण देने के लिए होना था। 

सरकार के वरिष्ठ सूत्रों ने 'माय नेशन' को बताया, 'आईजेटी सितारा कार्यक्रम को बंद करने का प्रस्ताव है। रक्षा मंत्रालय में हुई एक उच्च स्तरीय बैठक में इस पर चर्चा हुई है। यह प्रोग्राम एक दशक से ज्यादा समय से चल रहा है। वायुसेना इस जेट के विकास के लिए एचएएल को 4,800 करोड़ रुपये का भुगतान भी कर चुकी है। एचएएल ने इस विमान के 12 प्रोटोटाइप भी विकसित किए हैं लेकिन वायुसेना जैसे विमान चाहती थी, यह उसके अनुरूप नहीं है।'

सरकार एचएएल को बचे हुए 2,100 करोड़ रुपये लौटाने के लिए कह सकती है। साथ ही एचएएल द्वारा विकसित किए गए 12 प्रोटोटाइप को भी मांगा जा सकता है। एचएएल इस कार्यक्रम में निवेश की गई रकम की वसूली के लिए वायुसेना ऐसा कर सकती है। 

एचएएल के हल्के लड़ाकू विमान तेजस को विकसित करने का कार्यक्रम भी काफी देर से पूरा हुआ। साल दर साल की देरी के चलते इसकी लागत बढ़ती रही और इससे वायुसेना की ऑपरेशनल तैयारियों पर विपरीत असर पड़ा। 

सूत्रों का कहना है कि विमान में सुरक्षा उपाय उपलब्ध कराने के लिए सरकारी कंपनी आईजेटी के कुछ और परीक्षण करना चाहती है। 1999 में शुरू हुए इस प्रोजेक्ट को हाल ही में वायुसेना ने छोड़ दिया। 2011 में एयरो इंडिया डिफेंस शो के दौरान इसका एक विमान दुर्घटनाग्रस्त भी हुआ था। 

आईजेटी में सुरक्षा उपाय बढ़ाने के लिए स्टडी करने की खातिर एचएएल ने यूरोपीय डिफेंस कंपनी बीएई सिस्टम्स की सेवाएं भी लीं। ताकि प्रदर्शन भी सुधारा जा सके। लेकिन ये उपाय नाकाफी रहे और विमान कोई सकारात्मक नतीजे नहीं दे पाया। इतने वर्षों से एचएएल देश में सैन्य विमानों का उत्पादन करने वाली एकमात्र सरकारी कंपनी है, लेकिन वह अपने दम पर कोई भी बड़ा उपकरण उपलब्ध नहीं करा सकी है। 

एचएएल पर निर्भरता घटाते हुए और रक्षा क्षेत्र में निजी क्षेत्र को बढ़ाते हुए यूपीए सरकार के समय 56 मालवाहक विमानों के उत्पादन के लिए स्पेन की एयरबस  को साझेदार चुना गया था। इन विमानों से वायुसेना के एवरो एयरक्रॉफ्ट को बदला जाना था। एनडीए सरकार ने यूपीए की इस नीति को जारी रखा। 

वायुसेना को अपने पायलटों को प्रशिक्षण देने के लिए इंटरमीडिएट जेट ट्रेनर की बहुत आवश्यकता है। प्रशिक्षण के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले किरण विमानों को निकट भविष्य में चरणबद्ध तरीके से वायुसेना से हटाया जाना है।