राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने कहा, 'संप्रभुता को न तो कमजोर किया जा सकता है और न ही गलत तरीके से परिभाषित किया जा सकता है।'
संप्रभुता से कभी समझौता नहीं किया जा सकता, इस बात पर जोर देते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर के लिए अलग संविधान होना संभवत: एक ‘भूल’थी। डोभाल ने कश्मीर पर यह टिप्पणी ऐसे समय में की है जब सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 35-ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। अनुच्छेद 35-ए के तहत जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासियों को खास तरह के अधिकार और कुछ विशेषाधिकार दिए गए हैं।
देश के पहले उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल पर लिखी एक किताब के विमोचन समारोह को संबोधित करते हुए डोभाल ने कहा कि उन्होंने देश की मजबूत आधारशिला रखने में अहम योगदान दिया। एनएसए ने कहा, 'संप्रभुता को न तो कमजोर किया जा सकता है और न ही गलत तरीके से परिभाषित किया जा सकता है।'
उन्होंने कहा, ‘जब अंग्रेज भारत छोड़कर गए तो संभवत: वे भारत को एक मजबूत संप्रभु देश के रूप में छोड़कर नहीं जाना चाहते थे।’ डोभाल ने कहा कि इस संदर्भ में पटेल ने अंग्रेजों की योजना शायद समझ ली कि वे कैसे देश में विघटन के बीज बोना चाह रहे हैं। उन्होंने कहा कि पटेल का योगदान सिर्फ राज्यों के विलय तक नहीं है, बल्कि इससे कहीं अधिक है। वह देश को एक संप्रभु राष्ट्र बनाना चाहते थे, जहां लोगों की संप्रभुता संविधान में निहित हो। जम्मू-कश्मीर में संविधान खंडित रूप में है। वहां एक अलग संविधान भी अस्तित्व में है, यह एक भूल थी।
डोभाल विचार समूह विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन (वीआईएफ) के एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। वह इस फाउंडेशन के संस्थापकों में से एक रहे हैं।
ब्रिटिश शासन का जिक्र करते हुए डोभाल ने कहा कि उनकी योजना थी कि रियासतों को अपना फैसला खुद करने दिया जाए। उन्हें लगता था कि इससे देश में अराजकता की स्थिति बनी रहेगी। डोभाल ने कहा, 'पटेल एक राष्ट्र की नींव रखने में सफल रहे। एक राष्ट्र, जहां एक कानून, एक संविधान हो। संप्रभुता को बांटा नहीं जा सकता। '
पूर्व खुफिया प्रमुख ने कहा, राष्ट्र निर्माण एक 'एक्जोथर्मिक प्रोसेस' है। इसमें काफी ऊष्मा उत्पन्न होती है। यह तब तक उत्पन्न होती है जब तक पिघलने की स्थिति न आ जाए। इससे अलग-अलग पहचान समाहित होकर एक पहचान बन जाती है।
डोभाल ने कहा, 'संभवतः स्वतंत्रता आंदोलन के समय यह ऊष्मा पर्याप्त रूप में उत्पन्न नहीं हो सकी। ऐसा उस राह के चलते हुए जो अपनाया गया। मैं उसकी आलोचना नहीं कर रहा...यह रास्ता अहिंसा का था। इसके कारण हमारे लोगों ने आजादी की कीमत को वास्तव में नहीं समझा।'
Last Updated Sep 9, 2018, 12:51 AM IST