कश्मीर पैंथर पार्टी की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि ये क़ानून असंवैधानिक और मनमाना है, इसके चलते राज्य की सुरक्षा को खतरा हो गया है। केंद्र सरकार ने भी याचिकाकर्ता का समर्थन किया है।
जम्मू कश्मीर के पुनर्वास क़ानून को चुनौती देने वाली याचिका पर चीफ जस्टिस ने पूछा है कि आखिर विभाजन के दौरान पाकिस्तान जा चुके लोगों के वंशजों को कैसे भारत में फिर से रहने की इजाज़त दी जा सकती है। कोर्ट ने जम्मू कश्मीर से पूछा है कि राज्य में पुनर्वास के लिए अभी तक कितने लोगों ने अप्लाई किया है।
ये क़ानून विभाजन के दौरान 1947- 54 के बीच पाकिस्तान जा चुके लोगों को हिंदुस्तान में पुनर्वास की इजाज़त देता है।
इसके खिलाफ कश्मीर पैंथर पार्टी की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि ये क़ानून असंवैधानिक और मनमाना है, इसके चलते राज्य की सुरक्षा को खतरा हो गया है
केंद्र सरकार ने भी याचिकाकर्ता का समर्थन किया है। कोर्ट में सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार पहले ही कोर्ट में हलफनामा दायर कर ये साफ कर चुका है कि वो विभाजन के दौरान सरहद पार गए लोगों की वापसी के पक्ष में नहीं है। वही जम्मू कश्मीर सरकार ने सुनवाई टालने की मांग की। राज्य सरकार का कहना है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट आर्टिकल 35 A को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला नहीं दे देता, तब तक इस पर विचार न हो।
इस मामले में अगली सुनवाई जनवरी के दूसरे हफ्ते में होगी। इससे पहले सुप्रीन कोर्ट 2016 में संकेत दे चुका है कि ये मामला विचार के लिए संविधान पीठ को सौंपा जा सकता है।
Last Updated Dec 13, 2018, 2:59 PM IST