नई दिल्ली। कांग्रेस ने सोनिया गांधी को भले ही पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष बना दिया हो। लेकिन सोनिया की असल परीक्षा तीन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव हैं। जहां पार्टी सत्ता में नहीं है और इन राज्यों में पिछले दो महीने से कई नेताओं ने पार्टी का दामन भी छोड़ दिया है। लिहाजा क्या सोनिया अपने दो दशक को पूर्व अनुभवों के आधार पर पार्टी को खड़ा कर सत्ता हासिल कर सकेगी ये सबसे बड़ा सवाल है। यही नहीं इन तीनों राज्यों में पार्टी में गुटबाजी भी चरम पर है।

तीन राज्य हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र में अगले छह माह में चुनाव होने हैं। वहीं करीब एक साल के बाद बिहार के साथ ही दिल्ली में चुनाव होंगे। इन तीन राज्यों में भाजपा की सरकारें है। जबकि इन तीनों राज्यों में कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं ने पार्टी को अलविदा कह दिया है। महाराष्ट्र में तो कांग्रेस को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अलावा चुनाव लड़ने के लिए कोई सहयोगी नहीं मिल रहा है।

वहीं झारखंड में पार्टी के प्रदेश अजय कुमार ने गुटबाजी को देखते हुए इस्तीफा दे दिया है। उधर हरियाणा में पार्टी में कई गुट बन चुके हैं। जिसमें भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और अशोक तंवर की दुश्मनी जगजाहिर है। वहीं किरण चौधरी और कुमारी शैलजा के भी गुट हरियाणा में बने हुए हैं। 

कांग्रेस पिछले दो महीने से अध्यक्ष के नाम पर दोराहे पर खड़ी थी। हालांकि में पहले ये माना जा रहा था कि कोई गैर गांधी परिवार का नेता पार्टी की कमान संभालेगा। लेकिन पार्टी के पुराने दिग्गजों ने सोनिया गांधी पर ही विश्वास जताया। असल में अभी कांग्रेस में दो गुट बन गए हैं। पहला अनुभवी और कमजोर हो चुके नेताओं का और दूसरा युवा और गैर अनुभवी नेताओं का। 

फिलहाल नवंबर में हरियाणा, महाराष्ट्र और जनवरी में झारखंड के विधानसभा का कार्यकाल पूरा हो रहा है। इन तीनों राज्यों में कांग्रेस का संगठन खत्म हो चुका है। इसका हाल पार्टी लोकसभा चुनाव में देख चुकी है। इन तीनों राज्यों में पार्टी कुछ भी कमाल नहीं दिखा पाई। 

पिछले पांच साल में बदल गई है देश की राजनीति
सोनिया ने कांग्रेस की कमान करीब 21 साल तक संभाली। लेकिन पिछले पांच साल में देश की राजनीति में बहुत बदलाव आए हैं। लगातार दो बार सत्ता पर काबिज रह चुकी कांग्रेस के बाद भाजपा ने केन्द्र में सरकार बनाई है और अब फिर से दोबारा सत्ता में आ गई है। भाजपा के पास बूथ स्तर का मजबूत संगठन देश के सभी राज्यों में है।

जहां उसके पास संगठन नहीं है वहां पर वह संगठन खड़ा कर रही है। खासतौर से देश के दक्षिणी राज्यों में। वहीं कांग्रेस का संगठन पिछले पांच सालों में कमजोर हुआ है। कभी सोनिया और राहुल के करीबी रहे नेता भी पार्टी को अलविदा कह चुके हैं। जब सोनिया ने कांग्रेस की कमान संभाली थी पार्टी के 145 सांसद थे और आज पार्टी के लोकसभा में महज 52 सदस्य हैं।