तीनों सेनाओं ने अपने सबसे बेहतरीन विमानों और नवीनतम तकनीक को एएन-32 का पता लगाने के लिए इस्तेमाल किया। हवाई सर्च के लिए वायुसेना ने जहां सी-130जे एयरक्रॉफ्ट, सुखोई-30एमकेआई लड़ाकू विमान, एमआई-17 हेलीकॉप्टर की मदद ली, वहीं नेवी ने अपने लंबी दूरी वाले पी8आई विमानों का इस्तेमाल किया।
एक लंबे सर्च अभियान के बाद भारतीय वायुसेना ने अपने लापता एएन-32 विमान के मलबे का पता लगा लिया। यह विमान 3 जून को असम के जोरहाट से उड़ान भरने के आधे घंटे बाद अरुणाचल प्रदेश में लापता हो गया था। एएन-32 विमान अरुणाचल के मेचुका स्थित एडवांस लैंडिंग ग्राउंड जा रहा था। इसमें चालक दल के 8 सदस्यों समेत 13 लोग सवार थे। विमान के मलबे का पता लगने के बाद सबसे पहली प्राथमिकता विमान में सवार लोगों और ब्लैक बॉक्स खोजने की है। इससे पता चल सकेगा कि विमान के साथ आखिरकार हुआ क्या था। नौ दिन तक चली लंबी जद्दोजहद के बाद वायुसेना ने एमआई-17 हेलीकॉप्टर ने एएन-32 विमान के मलबे को खोज लिया। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि विमान की लोकेशन खोजने में इतना समय क्यों लगा।
इतना समय की क्यों लगा विमान को खोजने में?
भारतीय बलों ने एएन-32 विमान का पता लगाने के लिए अपनी सभी नवीनतम तकनीकों का इस्तेमाल किया। लेकिन तमाम संसाधन झोंकने के बावजूद विमान की लोकेशन ढूंढने में नौ दिन लग गए। हालांकि इसका एक बड़ा कारण खराब मौसम और इस इलाके की भौगोलिक स्थिति रही। अधिकारियों के मुताबिक, लगातार भारी बारिश और घने बादलों के चलते हवाई खोज के काम में दिक्कतें आईं। कई बार तो खराब मौसम के चलते सर्च अभियान को रोक देना पड़ा।
विमान का पता लगाने में आई दिक्कतों में एक बड़ा कारण इस पर्वतीय इलाके में घने जंगलों का होना भी है। यह इलाका निर्जन क्षेत्र है। ऐसे में यहां क्रैश के बारे में कोई जमीनी सूचना मिलना काफी कठिन था। शनिवार को वायुसेना ने विमान के बारे में किसी भी तरह की जानकारी देने वाले के लिए पांच लाख रुपये के ईनाम का ऐलान किया था। अधिकारियों के मुताबिक, एएन-32 की ओर से ऐसे कोई संकेत भी नहीं दिया गया जो उसकी लोकेशन का पता लगाने में मददगार होता। अगर विमान का आपातकालीन बीकन सिस्टम काम कर रहा होता तो इससे घटना वाली जगह पर पहुंचने में मदद मिलती।
सभी संसाधन झोंक दिए गए एएन-32 की तलाश में
तीनों सेनाओं ने अपने सबसे बेहतरीन विमानों और नवीनतम तकनीक को एएन-32 का पता लगाने के लिए इस्तेमाल किया। हवाई सर्च के लिए वायुसेना ने जहां सी-130जे एयरक्रॉफ्ट, सुखोई-30एमकेआई लड़ाकू विमान, एमआई-17 हेलीकॉप्टर की मदद ली, वहीं नेवी ने अपने लंबी दूरी वाले पी8आई विमानों का इस्तेमाल किया। इस खोज अभियान में एडवांस लाइट हेलीकॉप्टरों (एएलएच), चीता हेलीकॉप्टरों की भी मदद ली गई। वायुसेना के सुखोई 30 और नौसेना के पी8आई विमान ऐसी रडार तकनीक से लैस हैं, जो घने जंगलों में भी किसी ऑब्जेक्ट का पता लगा सकते हैं। पी8आई विमान में सिंथेटिक अपरचर रडार और इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल और इंफ्रारेड सेंसर लगा है। लापता विमान की लोकेशन का पता लगाने के लिए सैटेलाइट फोटोग्राफी की भी मदद ली गई। कार्टोसैट और आरआईसैट जैसे उपग्रह भी पूरे इलाके की तस्वीरें ले रहे थे। वायुसेना ने इस पूरे इलाके में सर्च अभियान में अपने ड्रोन को भी लगा रखा था। इसके अलावा सेना की जमीनी टीम भी विमान के मलबे की खोज में जुटी थी। इस अभियान में चार एमआई-17 हेलीकॉप्टर, तीन एएलएच (दो सेना और एक वायुसेना), दो सुखोई-30एमकेआई, एक सी-130जे, दो चीता हेलीकॉप्टर, एक ड्रोन और नौसेना के एक पी8आई विमान को लगाया गया था।
क्या है एएन-32 एयरक्रॉफ्ट?
एएन-32 दो इंजन वाले हल्का ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट है। वायुसेना के लिए इस विमान का उत्पादन यूक्रेन की एनटोव डिजाइन ब्यूरो द्वारा किया जाता है। यह विमान एक बार ईंधन भरे जाने के बाद चार घंटे तक लगातार उड़ान भर सकता है। पिछले कई वर्षों में एएन-32 को उन्नत किया गया है। वायुसेना द्वारा इस विमान का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। यह वर्षों से वायुसेना के लिए भरोसेमंद विमान बना हुआ है। इसका डिजाइन सैन्य और असैन्य दोनों तरह के ऑपरेशन के अनुरूप है। यह ऊबड़खाबड़ एयरफील्ड और कच्चे रनवे से भी उड़ान भर सकता है। यह बेहद गर्म हालात और ट्रॉपिकल एवं पर्वतीय इलाकों में दिन-रात अपनी सेवाएं दे सकता है।
Last Updated Jun 11, 2019, 7:31 PM IST