अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने कहा है कि भारत की कर नीति में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) एक महत्वपूर्ण सुधार है लेकिन इसके कर ढांचे को और सरल बनाए जाने की जरूरत है। आईएमएफ के मुताबिक, कई कर ढांचे होने के चलते इसके अनुपालन और प्रशासनिक प्रबंधन की लागत बढ़ सकती है। 

अपनी वार्षिक रिपोर्ट में आईएमएफ ने कहा है कि भारत में जीएसटी को अधिक सरल बनाने के लिए इसमें दोहरे कर ढांचे की व्यवस्था पर विचार किया जाना चाहिए। यह दोहरा कर ढांचा एक निचली मानक दर और कुछ चुनिंदा सामानों पर ज्यादा कर लगाकर तैयार किया जा सकता है। यह प्रगति और राजस्व के लिहाज से बेहतर कदम साबित हो सकता है। 

भारत में जीएसटी पहली जुलाई 2017 से शुरु हुआ था। आईएमएफ के इंडिया मिशन चीफ रानिल सलगादो के मुताबिक, जीएसटी ने भारत को एकीकृत राष्ट्रीय बाजार बनाया है, जिससे पहली बार देश के भीतर बिना किसी बाधा के व्यापार मुमकिन हो सका है। आईएमएफ का कहना है कि जीएसटी का ढांचा काफी जटिल है। इसमें कई स्लैब हैं। ऐसे में जरूरी है कि मौजूदा जीएसटी को और बेहतर बनाए रखने के लिए इसके ढांचे को सरल बनाया जाए। ताकि इसका अनुपालन आसान हो और इसकी प्रशासनिक लागत भी कम की जा सके।  

भारत पांच देशों के उन देशों में शामिल हैं, जहां जीएसटी की दरें चार या उससे ज्यादा हैं। भारत में 0, 5, 12, 18 और 28 फीसदी का टैक्स स्लैब है। जीएसटी में स्पेशल लो रेट भी हैं, जिनमें जेम्स एंड ज्वैलरी पर 3 फीसदी, कच्चे हीरे पर 0.25 फीसदी टैक्स है। इसके अलावा डीमेरिट गुड्स पर जीएसटी उपकर का भी प्रावधान है। वैश्विक स्तर पर अप्रत्यक्ष कर का ढांचा देखें तो करीब 115 देशों में वैट, 49 में एक समान दर और 28 में दो कर स्लैब हैं। 

रिपोर्ट कहती है कि इस टैक्स से अर्थव्यवस्था के औपचारिक क्षेत्रों में चल रही आर्थिक गतिविधियों में बढ़ोत्तरी होगी। इससे गुणवत्ता सुधरेगी और ज्यादा भरोसेमंद नौकरियां मिलेंगी। सलगादो ने कहा, 'इसके परिणामस्वरूप जीएसटी को उत्पादकता बढ़ानी चाहिए और संभावनाशील मध्यम विकास को बढ़ावा देना चाहिए। इसके साथ ही सरकार को बेहद जरूरी सामाजिक एवं आधारभूत ढांचे पर खर्च बढ़ाना चाहिए।'