समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव मंगलवार को अपने घर से निकले। वह दोपहर को अपने भाई शिवपाल सिंह यादव के एक कार्यक्रम में पहुंचे। शिवपाल ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बनाई है। जिसके लिए छह लाल बहादुर शास्त्री मार्ग पर कार्यक्रम चल रहा था। 

वहां जाकर मुलायम सिंह यादव ने बीस मिनट तक भाषण दिया। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक मुलायम ने शिवपाल के मंच से अखिलेश की पार्टी की तारीफ करनी शुरु कर दी।  

थोड़ी देर तक तो शिवपाल ने इसे बर्दाश्त किया। लेकिन उनसे रहा नहीं गया तो उन्होंने मुलायम को याद दिलाया कि ‘आप सपा नहीं बल्कि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के मंच पर है’। 

इसपर मुलायम सिंह यादव ने अनजान से बोले, 'अच्छा! पार्टी का नाम बदल गया है।' शिवपाल ने फिर कहा ' नेताजी! यही असली समाजवादी है और आपको इसका अध्यक्ष बनना है।' 

इसपर मुलायम ने जवाब दिया 'जरूरी कदम था। राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाओ।' 

यानी मुलायम सिंह यादव और उनके बेटे अखिलेश यादव के विरोध में जिस राजनीतिक दल का गठन हुआ, मुलायम ने उसे ही जरुरी कदम करार दिया और उसका राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाने की मांग की। 

बात यहीं तक रुक जाती तो फिक्र की कोई बात नहीं थी। जब मुलायम शिवपाल के यहां से उनकी पार्टी के उद्घाटन समारोह से निकलने के बाद सीधा पहुंचे अखिलेश यादव के यहां। 

मुलायम ने कहा कि समाजवादी पार्टी के कार्यालय पर कार्यकर्ता उन्हें सुनना चाहते हैं।  उन्होंने गाड़ी सपा कार्यालय की ओर मुड़वा दी। 

वहां अखिलेश यादव पहले से ही मौजूद थे। उन्होंने मुलायम को ले जाकर अपनी कुर्सी पर बिठाया। पार्टी पदाधिकारियों से थोड़ी देर चर्चा के बाद मुलायम ने लोहिया सभागार में कार्यकर्ताओं को संबोधित किया और किसानों, नौजवानों, महिलाओं की लड़ाई के जरिए सपा को मजबूत बनाने की कार्ययोजना बताई। 

खास बात यह है कि अखिलेश और शिवपाल दोनों ने अपने अपने रास्ते अलग कर लिए हैं। दोनों एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोंक रहे हैं। 

लेकिन मुलायम दोनों की पीठ ठोंक रहे हैं। क्या माना जाए कि समाजवादी पार्टी के इस झगड़े को मुलायम का समर्थन हासिल है। या फिर सच यह है कि मुलायम पर उम्र ने अपना असर दिखाना शुरु कर दिया है। 

शिवपाल की पार्टी के कार्यालय में मुलायम ने जो बातें कीं, उन्होंने पूछा कि ‘पार्टी का नाम बदल दिया है’ उससे साफ जाहिर होता है कि मुलायम सिंह यादव की याददाश्त अब पहले जैसी नहीं रही। 

या फिर इस वयोवृद्ध समाजवादी पुरोधा इन कोशिशों में लगा हुआ है कि उनका परिवार किसी भी तरह एक बार फिर से एकजुट हो जाए। 

हालांकि कुछ लोगों का यह भी कहना है कि शिवपाल और अखिलेश दोनों की पीठ ठोंकना भी मुलायम का एक राजनीतिक दांव है। वह दोनों ही गुटों में अपने विश्वासपात्रों के लिए जगह बनाए रखना चाहते हैं। 
मुलायम दोनों से संबंध रखना चाहते हैं, जिससे कि अखिलेश और शिवपाल दोनों ही उनकी बात काट नहीं पाएं।