जासूसी की दुनिया के इतिहासकार टी. रिचल्सन ने अपनी किताब ‘डिफ्यूजिंग आर्मागडन’ में जिक्र किया है कि अमेरिका के पास न्यूक्लियर इमरजेंसी सर्च टीम है, जो ज्वाइंट स्पेशल ऑपरेशन कमांड यानी साथ एटमी जखीरे पर कब्जे का साझा ऑपरेशन कर सकते हैं। ऐसे ऑपरेशन की दो तरह की रणनीति संभव है। एक एटमी हथियारों को नष्ट करने की है। दूसरी, एटमी हथियारों पर कब्जा करने की है। दरअसल, एटमी हथियारों को नाकाम करने के लिए जरूरी नहीं है कि भारी-भरकम हथियार को तबाह किया जाए, एटमी हथियार के ट्रिगर या उसकी चिप को नाकाम कर या उसे कब्जे में ले कर भी उसे बेकार किया जा सकता है।
पाकिस्तान के बालाकोट के आतंकी शिविर पर पिछले महीने भारत के हवाई हमले ने पाकिस्तान के एटमी कार्यक्रम के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी मिली। कुछ समाचार संस्थानों को प्राप्त हुए उपग्रह चित्रों से ये भी पता चलता है कि भारत के हवाई हमले के बाद पाकिस्तान के एटमी हथियार भंडारण और मिसाइल लांच केंद्रों में शायद कोई दुर्घटना या अनपेक्षित घटना हुई है। सामान्य तौर पर ऐसी घटनाओं की जानकारी बहुत कम ही सार्वजनिक की जाती है और वास्तव में हुआ क्या है यह जानने का संभवत: एकमात्र विश्वसनीय स्रोत उपग्रह चित्र ही होते हैं।
इस घटना की तफसील आनी अभी बाकी है। लेकिन पाकिस्तान का आतंकवाद महज उसके पड़ोसी देशों के लिए चिंता का सबब है, मगर पाकिस्तान का एटमी कार्यक्रम तो सारी दुनिया के लिए सिरदर्द का कारण है जैसे बंदर के हाथों में उस्तरा। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन ने पाकिस्तान के एटमी हथियारों के जिहादियों के हाथों में जाने की आशंका जताई थी। क्लिंटन ने कहा था कि यह ‘एक खतरनाक स्थिति’ होगी।
द न्यूयार्क टाइम्स ने डेमोक्रेटिक पार्टी के कंप्यूटरों से हैक हुए 50 मिनट के एक ऑडियो क्लिप का हवाला दिया था। इसमें बताया गया है कि पूर्व विदेश मंत्री ने कहा था, ‘पाकिस्तान भारत के साथ जारी अपने तनाव के मद्देनजर टैक्टिकल एटमी हथियार बनाने में तेजी से काम कर रहा है। लेकिन हमें आशंका है कि वहां एक तख्तापलट हो सकता है और जिहादी सरकार पर कब्जा जमा सकते हैं, वे एटमी हथियार हासिल कर सकते हैं और आपको फिदायीन एटमी हमलावरों से जूझना पड़ेगा।’
पाकिस्तान के एटमी हथियार सारी दुनिया और खासकर अमेरिकी प्रशासन के लिए सिरदर्द बन गए है। उन्हें आशंका है कि पाकिस्तान के एटमी हथियार कहीं आंतकवादियों के हाथ तो नहीं पड़ जाएंगे ? यह मुद्दा अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार अभियान का प्रमुख मुद्दा बन गया था। हिलेरी से पहले अमेरिका के आगामी राष्ट्रपति चुनाव के लिए रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार बनने की दौड़ में शामिल वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बहस में कहा कि अगर पाकिस्तान अस्थिर हो जाता है तो अमेरिका को उसके एटम बम छीन लेने चाहिए। ट्रंप ने कहा कि भारत को भी ऐसी योजना में शामिल करना चाहिए। ट्रंप के अलावा भी कई अमेरिकी नेता इस तरह की आशंका जता चुके हैं।
चिंताजनक तो यह भी है कि पाकिस्तान ने कई एटमी हथियारों का पहले इस्तेमाल करने की धमकी दी है। मगर ज्यादा खतरा उसके पहले इस्तेमाल का नहीं है जितना उसके एटमी हथियार आतंकवादियो के हाथ पढ़ने का है। दरअसल पाकिस्तान ने बहुत शौक से एटमी हथियार तो बना लिए मगर उनकी सुरक्षा करना उसके बस की बात नहीं है। इस कारण पाकिस्तानी एटमी हथियार उसके और सारी दुनिया के लिए सिरदर्द बन गए है। कुछ तो उसे एटमी टाइम बम कहते हैं जो अभी भले टिक-टिक कर रहा हो, मगर कभी भी फट कर इस दुनिया को एटमी विभीषिका की आग में झोंक सकता है। हमारे पडोसी पर लगनेवाले विशेषणों में ग़लत कुछ भी नहीं है।
यह बात दिन के उजाले की तरह साफ है कि पाकिस्तान इस्लामी कट्टरपंथियों और आतंकवादियों का स्वर्ग बन चुका है। पाकिस्तान के बहुत बडे हिस्से पर इस्लामी आतंकवादियों का दबदबा चल रहा है। लेकिन इससे भी ज्यादा थर्रा देने वाली हकीकत यह है कि पाकिस्तान के एटमी हथियारों पर खूंखार आतंकवादियों का कभी भी कब्जा हो सकता है।
जानकार सूत्रों के मुताबिक अमेरिका के पास सचमुच ऐसा सीक्रेट प्लान है। अमेरिकी मीडिया उस सीक्रेट प्लान का खुलासा करता रहता है, लेकिन यह भारत की सक्रिय भूमिका के बिना मुमकिन नहीं है।
सबसे बुरी बात यह है कि पाकिस्तान के पास न केवल एटमी हथियार हैं वरन एफ-16 जैसे विमान और हत्फ पांच जैसी मिसाइलें हैं। जिनके जरिए वह करीब 2500 किलोमीटर की दूरी तक कहीं भी एटमी हथियार गिरा सकता है।
पाकिस्तान में आतंकवादियों के बढते असर के कारण पश्चिमी देशों को लगने लगा है कि यह तो बंदर के हाथ में उस्तरा पडने की तरह है। इसने कई साल पुरानी बहस को फिर जिंदा कर दिया है कि क्या अमेरिका पाक के एटमी जखीरे पर कब्जा कर सकता है? जिसका मकसद पाकिस्तान में अस्थिरता के हालात में उसके एटमी हथियारों को छीन लेना है।
'स्नैच एंड ग्रैब' नाम के इस प्लान की अमेरिका ने कभी पुष्टि नहीं की, लेकिन इससे जुड़ी खबरों को कभी नकारा भी नहीं।
एक और खतरनाक बात यह है कि एक तरफ दिनोंदिन पाकिस्तान के एटमी हथियार असुरक्षित होते जा रहे हे हैं दूसरी तरफ पाकिस्तान का एटमी जखीरा बढ़ता जा रहा है । पाकिस्तानी विदेश सचिव ने अमेरिका में कहा कि हमने भारत की कोल्ड-स्टार्ट डॉक्ट्रिन और हमले के खतरे से निपटने के लिए छोटे एटमी हथियार विकसित कर लिये हैं। उनके बयान के एक दिन बाद ही 'न्यूक्लियर बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइंटिस्ट' की न्यूक्लियर नोटबुक रिपोर्ट के हवाले से यह खबर छपी कि पाकिस्तान के पास 110-130 परमाणु हथियारों का जखीरा है। 2011 में इसकी संख्या 90-110 थी।
इस स्थिति से रिपोर्ट में दावा किया गया है कि, 2025 तक पाकिस्तान दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बन सकता है। न्यूक्लियर नोटबुक पाकिस्तान की परमाणु जानकारी को सामने लाने का सबसे प्रामाणिक स्रोत है। एटमी हथियारों के मामले में पाकिस्तान फिलहाल अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन से पीछे है। मगर पाकिस्तान के पास भारत से ज्यादा एटमी हथियार हैं।
पाकिस्तान के एटमी हथियारों की सुरक्षा को लेकर सवाल पिछले सालों से उठाये जा रहे हैं। इस दौरान पाकिस्तान में जैसी घटनाएं हुईं, उन्होंने ये आशंका मजबूत की है कि पाकिस्तान के एटमी हथियार सुरक्षित नहीं हैं। आतंकी गुट पाकिस्तानी फौज के उन ठिकानों को निशाना बनाने में कामयाब हो चुके हैं, जो परमाणु बेस कहे जाते हैं। अगस्त 2012 में पाकिस्तानी पंजाब के कमरा में मिनहास एयरबेस पर आतंकियों ने हमला कर कई विमानों को नुकसान पहुंचाया था। मिनहास एयरबेस को पाकिस्तान का प्रमुख एटमी ठिकाना माना जाता है।
मई 2011 में कराची में नेवल एयर बेस पीएनएस मेहरान पर हमला हुआ, जहां से एटमी बेस महज 15 किलोमीटर दूर था। अक्टूबर 2009 में आतंकी रावलपंडी में सेना के हेडक्वार्टर पर भी आतंकी हमला कर चुके हैं। 18 सितंबर 2015 को आतंकी पेशावर के एयरफोर्स बेस पर भी हमला कर चुके हैं।
पाकिस्तान के ऐबटाबाद में ओसामा बिन लादेन को मारने के लिए की गई कमांडो कार्रवाई से ये साबित हो चुका है कि अपने हितों की रक्षा के लिए अमेरिका किस हद तक जा सकता है। लिहाजा संकट के क्षणों में पाकिस्तान के एटमी जखीरे पर कब्जे की योजना मौजूद है, इससे इंकार भी नहीं किया जा सकता है।
साल 2009 और 2011 में इस योजना से तब पर्दा उठ गया था, जब अमेरिकी मीडिया ने बताया कि एक स्पेशल ग्रुप है-जो एटमी जखीरे पर कब्जे की योजना पर लंबे वक्त से काम कर रहा है। यह योजना एक तेज फौजी ऑपरेशन के जरिए पाकिस्तान के करीब एक दर्जन परमाणु बेस पर पहुंच कर एटमी हथियारों को नाकाम करने या उनके ट्रिगर को कब्जे में ले लेने की है।
कई रक्षा विशेषज्ञों और पाकिस्तानी मामलों के जानकारों को लगता है कि उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रांत, बलूचिस्तान और एफएटीए में आतंकवादी इतने हावी हो चुके हैं कि उन पर काबू पाना पाकिस्तानी सरकार के बस की बात नहीं रही। आतंकवादी और उग्र इस्लामी राजनीतिक दलों का इस इलाके पर राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित हो गया है। उन्हें सेना और आईएसआई के कुछ तत्वों का समर्थन मिल सकता है।
देश में जिस तरह की राजनीतिक अस्थिरता, प्रतिद्वंद्विता और भ्रम की स्थिति है उसमें इस्लामी आतंकवादी और उग्रवादी ताकतें मौके का फायदा उठा कर सत्ता पर काबिज होने में कामयाब हो सकती है।
अमेरिका और पश्चिमी देशों की मुख्य चिंता यह है कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाए? इराक और पाकिस्तान में हस्तक्षेप करना उनके लिए बहुत जोखिम भरा हो सकता है। पाकिस्तान जैसे विशाल देश में ढहती सरकार को स्थिर करने और आतंकवादियों का सफाया करने के लिए दस लाख सैनिकों की लंबे समय तक ज़रूरत होगी। मगर एटमी हथियारों वाले पाकिस्तान को भाग्य के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। पश्चिमी देशों की सबसे बड़ी चिंता यही है कि एटमी हथियारों का आतंकवादियों और उग्रवादियों की सरकार के हाथों में पड़ना तो सबसे खतरनाक होगा।
अमेरिकी मीडिया ‘स्नैच एंड ग्रैब’ योजना का हवाला देकर कहता है कि अमेरिका पाकिस्तान से बम छीन लेगा। लेकिन कई बार ऐसा लगता है अमेरिकी मीडिया अमेरिका की क्षमता पर कुछ जरूरत से ज्यादा विश्वास करता है। हकीकत ये भी है कि एटम बम बनानेवाले पाकिस्तान ने हिफाजत का भी इंतजाम किया होगा।
अमेरिका पर आतंकी हमले के सूत्रधार ओसामा बिन लादेन को मारने के लिए हुए ऑपरेशन में अमेरिका ने अपने मकसद को आसानी से पा लिया था। अयमान जवाहिरी पर भी उसने हमले किए मगर वह बच गया। लेकिन एटमी हथियारों के लिए ऑपरेशन के दौरान किसी एक ठिकाने पर नहीं बल्कि उन तमाम ठिकानों पर एक साथ कमांडो ऑपरेशंस करना पड़ेगा जहां पाकिस्तान के सौ से ज्यादा परमाणु वॉरहेड रखे हों।
जासूसी दुनिया के इतिहासकार टी. रिचल्सन ने अपनी किताब ‘डिफ्यूजिंग आर्मागेडन’ में जिक्र किया है कि अमेरिका के पास न्यूक्लियर एमरजेंसी सर्च टीम है, जो ज्वाइंट स्पेशल ऑपरेशन कमांड यानी साथ एटमी जखीरे पर कब्जे का साझा ऑपरेशन कर सकते हैं। ऐसे ऑपरेशन की दो तरह की रणनीति संभव है। एक एटमी हथियारों को नष्ट करने की है। दूसरी, एटमी हथियारों पर कब्जा करने की है। दरअसल, एटमी हथियारों को नाकाम करने के लिए जरूरी नहीं है कि भारी-भरकम हथियार को तबाह किया जाए, एटमी हथियार के ट्रिगर या उसकी चिप को नाकाम कर या उसे कब्जे में ले कर भी उसे बेकार किया जा सकता है।
लेकिन अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इसमें भारत की कितनी बड़ी भूमिका की उम्मीद अमेरिका करता है। क्योंकि पिछले 70 सालों में यही तो होता आया है कि भारत हर बार पाकिस्तान में होनेवाली उथल-पुथल से सीधे और सबसे ज्यादा प्रभावित होता है, लेकिन हमारी भूमिका केवल मूक दर्शक की रहती है।पर अब मोदी का जमाना है। हमारी भी सक्रिय भूमिका हो सकती है।
सतीश पेडणेकर
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं। दक्षिण एशिया, आतंकवाद और मजहबी कट्टरपंथ जैसे विषयों पर उन्हें विशेषज्ञता प्राप्त है।)
डिस्क्लेमर- आलेख में प्रस्तुत किए गए विचार और आंकड़े लेखक के हैं जरुरी नहीं है कि वह माय नेशन की संपादकीय नीति का स्पष्ट प्रकटीकरण करते हों।
Last Updated Apr 4, 2019, 2:26 PM IST