लखनऊ। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा दस जनवरी को वाराणसी स्थित बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी यानी बीएचयू जा रही हैं। प्रियंका नागरिकता संसोधन कानून बन जाने के बाद पहली बार बनारस जा रही हैं। हालांकि पिछले साल ही वह बनारस गई थी और वहां पर उन्होंने काशी विश्वनाथ के दर्शन किए थे। लेकिन अब प्रियंका गांधी का बीएचयू जाना उनकी रणनीति का हिस्सा है। जिसके जरिए वह युवाओं और छात्रों को कांग्रेस से जोड़ रही हैं। इससे पहले प्रियंका जामिया और जेएनयू के छात्रों को समर्थन दे चुकी हैं।

देशभर के कई विश्वविद्यालयों में नागरिकता संसोधन कानून को लेकर विरोध हो रहा है और प्रियंका इन प्रदर्शनों में हिस्सा लेने वालों को समर्थन दे रही हैं। जामिया में हुई हिंसा के बाद दिल्ली के इंडिया गेट पर विरोध के लिए बैठे छात्रों को समर्थन देने के लिए प्रियंका गांधी वहां पर पहुंची थी। जबकि इसके बाद प्रियंका गांधी चार दिन पहले जेएनयू में हुई हिंसा में घायल छात्रों से मिलने के लिए पहुंची थी। हालांकि प्रियंका ने वामदल समर्थित घायल छात्रों से ही मुलाकात की थी।

लेकिन इस रणनीति के तहत अब प्रियंका गांधी वाड्रा वाराणसी के बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में जा रही हैं। जहां छात्रों के एक गुट ने नागरिकता संसोधन कानून का विरोध किया था। वाराणसी पीएम नरेन्द्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है। लिहाजा प्रियंका छात्रों के जरिए पीएम मोदी को निशाना बना सकती है। प्रियंका अपनी रणनीति के तहत युवाओं और छात्रों पर फोकस कर रही हैं और युवाओं से जुड़े मुद्दों को उठा रही हैं। क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को युवाओं और छात्रों ने जमकर वोट दिया था और जिसके कारण भाजपा सत्ता में काबिज हुई थी। लिहाजा अब प्रियंका गांधी भी इस फार्मूले के तहत भाजपा के खिलाफ कांग्रेस के संगठन को मजबूत कर रही हैं। वाराणसी में प्रियंका सीएए का विरोध करने पर जेल गए लोगों से मुलाकात करेंगी।

हालांकि कुछ दिन पहले ही प्रियंका गांधी ने कहा था कि वाराणसी में धारा 144 लगी हुई है। इसके जरिए वह सीधे तौर पर पीएम मोदी को घेरना चाहती थी। पिछले एक साल से प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में काफी सक्रिय हो रही हैं। जिसके कारण राज्य की भाजपा सरकार के साथ ही बसपा और सपा की मुश्किलें बढ़ी हुई हैं। पिछले लोकसभा चुनाव से पहले प्रियंका गांधी सक्रिय राजनीति में उतरी थी और उन्होंने लखनऊ में रोड शो किया था। लोकसभा चुनावों में प्रियंका गांधी  कांग्रेस की स्टार प्रचारक थी, लेकिन उसके बावजूद राज्य में कांग्रेस की सीटों में इजाफा नहीं हो सका। यहां तक कि कांग्रेस अपनी परंपरागत सीट अमेठी को भी हार गई थी।