नई दिल्ली: कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद बीजेपी सत्ता से बाहर विपक्ष में बैठी हुई है और सबसे कम सीटें पाने वाली जेडीएस के एच डी कुमारस्वामी कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बने हुए हैं। लेकिन अब शायद जेडीएस-कांग्रेस सरकार के दिन पूरे हो चुके हैं। पिछले कुछ दिनों से लगातार ऐसे संकेत मिल रहे हैं। जिसे देखकर लगता है कि दक्षिण के द्वार कर्नाटक में सत्ता परिवर्तन होने ही वाला है। 

1.    मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के नजदीकी एच. विश्वनाथ का इस्तीफा

कर्नाटक में सत्तारुढ़ जेडीएस के राज्य प्रमुख एच. विश्वनाथ ने आज(मंगलवार) को इस्तीफा दे दिया। उन्होंने बयान दिया है कि 'मैं हार की नैतिक जिम्मेदारी लेता हूं। इसलिए इस्तीफा दे रहा हूं’। खास बात यह है कि एच. विश्वनाथ काफी समय से पार्टी में अपनी कथित उपेक्षा और पार्टी के महत्वपूर्ण फैसलों के दौरान विश्वास में नहीं लिए जाने की वजह से नाखुश थे। 

वह हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता सिद्धारमैया से सार्वजनिक रुप से उलझ भी गए थे। 

2.    वरिष्ठ कांग्रेसी नेता रामलिंग रेड्डी का असंतोष 

कर्नाटक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रामलिंग रेड्डी ने सार्वजनिक तौर पर अपनी पाटी से विरोध जताया है। उन्होंने राज्य में अपनी ही पार्टी के समर्थन से चल रही सरकार को निशाने पर लिया और कहा कि ‘राज्य मंत्रिमंडल में वरिष्ठ नेताओं को शामिल नहीं किया जाना और कुछ मंत्रियों का खराब प्रदर्शन लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार का कारण बना’। रेड्डी का यह भी कहना था कि मंत्रिमंडल में शामिल किए गए कांग्रेस के कुछ नेता अनुभवहीन हैं।   

उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा कि  'एक पक्ष को मक्खन और दूसरे पक्ष को चूना नहीं लगा सकते। मैंने कभी विपक्ष के लिए लॉबिंग नहीं की. लेकिन पोर्टफोलियो के आवंटन में स्पष्टता होनी चाहिए। अन्याय के खिलाफ आवाज न उठाना भी गलत है इसलिए मैंने अपनी बात रखी।'  रेड्डी का यह बयान कर्नाटक में सत्ता से दूर कांग्रेस विधायकों की बेचैनी को दर्शाता है। 

3.    कांग्रेस खेमे में मची अफरातफरी

कांग्रेस को अच्छी तरह मालूम है कि लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद कर्नाटक सरकार पर जबरदस्त खतरा मंडरा रहा है। इसलिए कांग्रेस के राज्य प्रभारी केसी वेणुगोपाल ने बेंगलूरु स्थित कुमार कृपा गेस्ट हाउस में एक बैठक बुलाई। जिसमें संकट से निपटने के लिए छह मंत्रियों को हटाकर मंत्रिमंडल में नए चेहरों को शामिल करने पर सहमति बनी। इस बैठक में मुख्यमंत्री के कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष दिनेश गुंडू राव, कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मौजूद रहे।  कांग्रेस की यह कवायद दिखाती है कि उसके विधायकों में किस कदर बेचैनी है। जिसे नियंत्रित करने के लिए आपदा प्रबंधन किया जा रहा है। 

4.    पूर्व मुख्यमंत्री एस.एम. कृष्णा का डर 

कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस को सबसे ज्यादा डर पूर्व मुख्यमंत्री एस.एम कृष्णा का है। जो कि अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। खबर है कि एस.एम कृष्णा कई कांग्रेसी विधायकों के संपर्क मे हैं। कांग्रेस को डर है कि कृष्णा कुछ और कांग्रेस विधायकों को तोड़कर बीजेपी में शामिल करा सकते हैं। 
इसी डर से 23 मई को जिस दिन लोकसभा चुनाव के परिणाम आ रहे थे। तब मुख्यमंत्री एच.डी कुमारस्वामी और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया एक दूसरे के साथ बैठक करने के लिए मजबूर हो गए थे। 

5.    मुसलमान नेताओं का बीजेपी की ओर झुकाव 

लोकसभा चुनाव का परिणाम आने से दो दिन पहले यानी 21 मई को कांग्रेस नेता  रोशन बेग ने ऐसा बयान दिया था, जिससे पूरी कांग्रेस पार्टी चिंता में पड़ गई थी। उन्होंने कहा कि मुसलमान जरूरत पड़ने पर बीजेपी से हाथ मिला लें। 

रोशन बेग से पत्रकारों ने सवाल पूछा कि क्या निकट भविष्य में वह कांग्रेस छोड़ सकते हैं तो उन्होंने जवाब दिया कि 'यदि जरूरत हुई तो जरूर।' बेग ने कहा था कि ‘पहले यह नारा लगाया जाता था कि आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा को जिताएंगे। लेकिन नया नारा है हमारा नेता कैसा हो, जिसके बाद पैसा हो। पहले मुस्लिमों को तीन-चार सीटें दी जाती थीं, यहां तक कि क्रिश्चियन को कम से कम 1 सीट दी जाती थी। लेकिन अब हमारे साथ जानवारों जैसा व्यवहार हो रहा है। मैं इसके साथ खड़ा नहीं हो सकता।'

6.    बीजेपी नेता भी लगातार दे रहे हैं सरकार गिरने के संकेत 

पिछले कुछ समय से बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता लगातार संकेत दे रहे हैं कि कर्नाटक की कांग्रेस सरकार में इतने अंतर्विरोध हैं कि वह खुद ही गिर जाएगी। 
केंद्रीय मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने कहा कि यदि कर्नाटक में जदएस-कांग्रेस गठबंधन सरकार खुद से गिरती है तो सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते भाजपा विकल्प देने की कोशिश करेगी। 
बीजेपी महासचिव मुरलीधर राव ने भी इशारा किया है कि इस साल के आखिर तक कर्नाटक सरकार गिर सकती है। राव ने बयान दिया कि 'कर्नाटक की जेडीएस-कांग्रेस सरकार अब अवैध हो गई है और लोगों ने इसे खारिज कर दिया है। तकनीकी रूप से, एक गठबंधन के रूप में कांग्रेस-जेडीएस कह सकते हैं कि उनके पास बहुमत है। लेकिन जनादेश अलग है, बहुमत अलग है, इसलिए आपके पास वैधता नहीं है।'
दरअसल बीजेपी को कांग्रेस-जेडीएस के झगड़े के चरम पर पहुंचने का इंतजार है। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस येदियुरप्पा ने भी पिछले दिनों बयान दिया कि ‘हम कुछ समय तक बिल्कुल शांत रहेंगे। वे (कांग्रेस) एक दूसरे के खिलाफ खुद लड़ेंगे और कुछ भी हो सकता है।’
लेकिन बीजेपी के सभी नेता यह साफ कर रहे हैं कि वह अपनी तरफ से कर्नाटक सरकार को अस्थिर करने की कोई कोशिश नहीं करेंगे बल्कि इस बात का इंतजार करेंगे कि कांग्रेस-जेडीएस के आपसी झगड़े से सरकार खुद ही गिर जाए। 

कर्नाटक विधानसभा में 225 सीटें हैं। यहां सरकार बनाने के लिए 113 सीटें चाहिए। मई 2018 में जब कर्नाटक विधानसभा चुनाव संपन्न हुए थे तो बीजेपी को 105 सीटें मिली थीं। जिसके बाद कर्नाटक बीजेपी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने सरकार भी बना ली। लेकिन बहुमत साबित नहीं कर पाने की वजह से उन्हें तीन दिन में ही इस्तीफा देना पड़ा। 
उधर 2018 के चुनाव में कांग्रेस को 78 सीटें और जेडीएस को 38 सीटें मिलीं। इन्हें एक बसपा विधायक का भी समर्थन हासिल है। राज्य में पहले कांग्रेस के सिद्धारमैया की ही सरकार थी। 
येदियुरप्पा के इस्तीफा देने के बाद कांग्रेस ने फायदा उठाते हुए 38 सीटों वाले कुमारस्वामी को समर्थन देकर मुख्यमंत्री बनवा दिया था। कांग्रेस-जेडीएस के पास कर्नाटक में 116 विधायक हैं, जो कि बहुमत के लिए पर्याप्त थे। लेकिन पहले दिन से दोनों पार्टियों के नेताओं के बीच तकरार की खबरें सामने आती रहीं हैं।लोकसभा चुनाव में बुरी तरह मात खाने के बाद यह झगड़ा और बढ़ गया है।

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