रांची: झारखंड  की राजधानी से लगभग 32 किलोमीटर दूर ओरमांझी प्रखंड है। यहां के दो गांव आरा और केरम गांव के लोगों ने एक अभिनव प्रयोग किया है। जिसकी वजह से पूरे इलाके में पानी का संकट खत्म हो गया। उनके इस सार्थक प्रयास के लिए खुद पीएम मोदी ने मन  की बात कार्यक्रम में इन दोनों गांव के लोगों की तारीफ की है। 

मोदी ने कहा कि आरा और केरम गांव के ग्रामीणों ने जल प्रबंधन को लेकर जो हौसला दिखाया है, वो हर किसी के लिए मिसाल बन गया है। 

खुद प्रधानमंत्री से तारीफ मिलना इन दोनों गांव के लोगों के लिए कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। लेकिन इन लोगों ने कारनामा ही ऐसा किया है, जिसे सुनकर आप भी वाह कर उठेंगे। दरअसल इस गांव में पहाड़ों से एक झरना गिरता था। जिसका नाम था 'डंभा झरना'। बहुत समय से यही झरना गांव वालों के लिए जल का स्रोत था। लेकिन इस झरने का पानी तभी गांव वालों के काम आता था, जब तक प्रकृति की इच्छा होती थी। 

लेकिन गांव वालों ने प्रकृति के वरदान डंभा झरने को अपने मुताबिक ढालने को सोचा और उन्होंने इसके लिए तीन महीने तक लगातार सामूहिक रुप से श्रमदान किया। इसी का नतीजा है कि आज डंभा झरना उनकी मर्जी के मुताबिक हर वक्त उन्हें सुख और समृद्धि का वरदान देता है।  

दरअसल आरा और केरम गांव के लोगों ने जल संचयन की पुरानी तकनीक का इस्तेमाल किया। उन्होंने बहते पानी को चलना और चलते पानी को रेंगने के लिए मजबूर कर दिया। जिसकी वजह से उनके खेतों में अब सालों भर सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध रहता है। 

इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए पहाड़ से उतरने वाले डंभा झरना को बोल्डर स्ट्रक्च र से जगह-जगह पर उसकी गति को धीमा किया गया। बोल्डर स्ट्रक्चर के अलावे गांव की परती भूमि पर खंदकें खोदकर पानी का संचय किया गया। जिसमें उन्होंने बारिश का पानी संचय करके भूमिगत जल स्तर में भी वृद्धि कर दी है। जिससे पूरे इलाके को फायदा हो रहा है। उनके इसी प्रयास की सराहना पीएम मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में की थी। 

अभी हाल की ही बात है इसके पहले आरा और केरम गांव के लोग साल भर पहले तर रांची या ओरमांझी में दैनिक मजदूरी करने जाते थे। लेकिन अब यहां के लोगों के पास अपने खेतों से समृद्धि बटोरने से ही फुर्सत नहीं है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए 150 ग्रामीणों ने तीन महीने तक श्रमदान किया। इस दौरान ग्रामीणों ने पहाड़ी के बीच नाली में जगह-जगह छोट-बड़े पत्थरों से 600 कल्भर्ट बनाए। इससे बारिश के जल का ठहराव होने लगा। अब ये पानी खेतों में सिंचाई के काम आता है और भूमिगत जल में वृद्धि हो रही है।

यहां की 50 एकड़ भूमि में 300 से ज्यादा ट्रेंच कम बेड (बड़ा गड्ढा) की व्यवस्था बनाई गई है जो बहते पानी को रोकने में कारगर हो रहा है। यह सारी व्यवस्था ग्रामीणों ने श्रमदान करके की है। आज भी यहां के लोगों द्वारा महीने में दो दिन श्रमदान किया जाता है, जिससे व्यवस्था को बनाए रखा जा सके और उसे ज्यादा बेहतर किया जा सके। 

लेकिन आरा और केरम गांव के लोग मात्र समृद्धि की सीढ़ियां ही नहीं चढ़ रहे हैं। उन्होंने अपनी पुरानी कुरीतियों को भी पीछे छोड़कर एक नए इतिहास का निर्माण कर रहे हैं। यह दोनों ही गांव पूरी तरह शराबमुक्त हैं और यहां के खेतों में रासायनिक खादों का इस्तेमाल नहीं किया जाता। 

आरा और केरम गांव अब आदर्श गांव बन चुके हैं। अब देश के बाकी गांवों को मात्र उनके दिखाए रास्ते का अनुकरण करना है।