भोपाल। मध्य प्रदेश में अपनी सरकार बचाने के लिए मख्यमंत्री कमलनाथ नया खेल खेलने जा रहे हैं। कमलनाथ अभी तक नाराज चल रहे निर्दलीय विधायक, सपा और बसपा विधायकों को राज्य की कैबिनेट में शामिल कर सरकार को सेफगार्ड देने की तैयारी में हैं। इससे एक तरह राज्य में भाजपा का ऑपरेशन लोटस को वह विफल करेंगे वहीं राज्य सरकार को भी मजबूती मिलेगी।

पिछले दिनों कमलनाथ की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार ने भाजपा के दो विधायकों को अपने पाले में कर लिया था। ये भाजपा विधायक पार्टी से नाराज चल रहे थे और कमलनाथ के साथ कई दिनों से संपर्क में थे।

लिहाजा विधानसभा के भीतर एक बिल पर इन दोनों विधायकों ने अपना समर्थन सरकार को दिया। जिसके बाद राज्य में भाजपा का गणित बिगड़ गया। हालांकि भाजपा आलाकमान ने इस बारे में राज्य के नेताओं की जमकर क्लास लगाई थी।

अब कमलनाथ राज्य में नए दांव चल रहे हैं। उन्होंने सरकार को मजबूती देने के लिए निर्दलीयों के साथ सपा और बसपा विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल करने का फैसला किया है। क्योंकि इसके जरिए कमलनाथ इन विधायकों की नाराजगी भी दूर कर सकेंगे।

फिलहाल भारतीय जनता पार्टी की गोवा व कर्नाटक की रणनीति मध्य प्रदेश में फेल हो गयी है। क्योंकि यहां पर पार्टी इसी रणनीति को राज्य में दोहराने की रणनीति पर काम कर रही थी, मगर पिछले दिनों के घटनाक्रमों से भाजपा के इन मंसूबों पर धुंधलका छाने लगा है।

ये बात सही है कि राज्य में कांग्रेस सरकार के पास पूर्ण बहुमत नहीं है। राज्य में सरकार बहुजन समाज पार्टी (बसपा), समाजवादी पार्टी (सपा) और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से चल रही है। लेकिन फिलहाल ये सात विधायक कांग्रेस की सरकार से अपना समर्थन वापस नहीं ले रहे हैं।

लिहाजा कमलनाथ सरकार इन्हें खुश करने के लिए कैबिनेट में शामिल कर रही है। गौरतलब है कि कांग्रेस सरकार ने 24 जुलाई को विधानसभा में दंड विधान संशोधन विधेयक पारित कराने के लिए भाजपा के दो विधायकों नारायण त्रिपाठी और शरद कोल का अपने पक्ष में समर्थन हासिल कर लिया था।

फिलहाल राज्य की 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के पास 114 विधायक हैं। यानी पूर्ण बहुमत से दो कम। जबकि  सरकार को बसपा के दो, सपा के एक और चार निर्दलीय विधायक समर्थन दे रहे हैं। इस आधार पर राज्य सरकार के पास 121 विधायकों का समर्थन है। वही भाजपा के पास महज 108 विधायक हैं।