नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के हाथ से झारखंड निकल गया है। राज्य की सत्ता पर झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस सरकार बनाने जा रही है। लेकिन मध्य प्रदेश के बाद अब झारखंड ऐसा राज्य बन गया है जहां सत्ता से बेदखल होने के बाद भी भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ा है। अगर भाजपा के साथ ही झारखंड में सरकार में उसके सहयोगी रहे दलों का भी वोट प्रतिशत बढ़ा है। हालांकि इन सहयोगी दलों ने चुनाव में भाजपा के खिलाफ ही चुनाव लड़ा।

फिलहाल भाजपा की राज्य की सत्ता से बाहर हो चुकी है और इसका मलाल भाजपा के नेताओं को है। लेकिन इस हार के बावजूद भाजपा के लिए झारखंड एक अच्छी खबर भी है। क्योंकि इस चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत भी बढ़ा है। जबकि उसके सहयोगी दलों का भी वोट प्रतिशत बढ़ा है, जिन्होंने गठबंधन न होने के कारण भाजपा के खिलाफ ही चुनाव लड़ा है। हालांकि भाजपा की तरह ये दल भी ज्यादा सीट जीतने में कामयाब नहीं रहे।

हालांकि झारखंड से पहले भाजपा इस स्थिति से मध्य प्रदेश में रूबरू हो चुकी है। मध्य प्रदेश में पिछले साल  हुए चुनाव में भाजपा को कांग्रेस की तुलना में ज्यादा वोट मिले थे, लेकिन सरकार बनाने में भाजपा नाकामयाब रही। अब कुछ ऐसा ही हाल भाजपा का झारखंड में है। झारखंड में 2014 में हुए झारखंड विधानसभा चुनावों में भाजपा को 31.28 फीसदी वोट मिले थे, जबकि इस चुनाव में उसे करीब 33.5 फीसदी वोट मिले हैं।

वहीं राज्य की सत्ता में उसके सहयोगी आजसू के भी वोट फीसदी में इजाफा  हुआ है। जबकि आजसू ने चुनाव से ठीक पहले भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ दिया था। जिसका खामियाजा भाजपा और आजसू को उठाना पड़ा है। आजसू को 2014 के चुनाव में 3.68 फीसदी वोट मिले थे,जबकि इस चुना में उसे 7.98 फीसदी वोट मिले हैं। असल में भाजपा  और उसके सहयोगी दलों के बिखराव का सीधा फायदा कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा का मिला है। अगर भाजपा और सहयोगी दल मिलकर चुनाव लड़ते तो राज्य में आज स्थित कुछ अलग होती।

अभी तक चुनाव परिणाम के मुताबिक राज्य में जेएमएम को इस चुनाव में 18.82 वोट मिले हैं जबकि 2014 के चुनाव में 20.43 फीसदी वोट मिले थे। वहीं कांग्रेस के वोट में इजाफा हुआ है और इस बार उसे 13.83 फीसदी वोट मिले हैं जबकि कांग्रेस को 2014 में 10.46 फीसदी वोट मिले थे। अगर वोट प्रतिशत  के आधार पर देखें तो भाजपा और आजसू के कुल वोट प्रतिशत की तुलना में कांग्रेस, जेएमएम और राजद का वोट प्रतिशत काफी कम है। लेकिन भाजपा के लिए खतरे की घंटी ये है कि सीटों के आधार पर भाजपा की हार और जीत के बीच का मर्जिन काफी ज्यादा है।