नई दिल्ली। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने आज राज्यसभा में जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद हटाने का प्रस्ताव पेश किया। संसद से इसकी अनुमति मिलने के बाद इसे राष्ट्रपति को भेजा जाएगा और जिस दिन से उनके हस्ताक्षर होंगे उसी दिन से ये अनुच्छेद राज्य से खत्म हो जाएगा।

असल में भारत और पाकिस्तान के अलग होने के बाद कश्मीर का जब भारत में विलय हुआ तो उस वक्त जम्मू कश्मीर के महाराजा हरी सिंह ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने का प्रस्ताव रखा। जिसके तहत कश्मीर के लोगों को विशेष सुविधाएं मिली।

यहां तक कि भारत सरकार कश्मीर के अंदरूनी मामलों में दखल नहीं दे सकती है। यहीं नहीं कश्मीर के लोगों को इस अनुच्छेद के तहत विशेष अधिकार मिले हैं। कश्मीर के लोग देश भर में कई भी नौकरी कर सकते हैं और जमीन खरीद सकते हैं। लेकिन गैर कश्मीरी लोगों को राज्य में नौकरी नहीं मिल सकती है और न ही वह वहां पर जमीन खरीद सकते हैं।

इस अनुच्छेद के तहत  भारतीय संसद जम्मू-कश्मीर के मामले में सिर्फ रक्षा, विदेश मामले और संचार के लिए कानून बना सकती है। इसके अतिरिक्त किसी भी कानून बनाने के लिए केन्द्र सरकार को राज्य सरकार से मंजूरी लेनी पड़ती है। पूरे देश में एक ही संविधान लागू होता है। लेकिन जम्मू कश्मीर के लिए 1956 में अलग संविधान बनाया गया।

इस अनुच्छेद के खत्म होने से क्या होगा।

इस अनुच्छेद के खत्म होने से जम्मू-कश्मीर की कोई महिला अगर भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर करती है तो उसकी नागरिकता खत्म नहीं होगी।

इसके खत्म होने से महिला अगर पाकिस्तान के किसी व्यक्ति से शादी करती है अब उसके पति को जम्मू-कश्मीर की नागरिकता नहीं मिलेगी।

अब कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानियों मिलने वाली भारतीय नागरिकता खत्म हो जाएगी।

अब राज्य में भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान करने पर वही सजा मिलेगी जो अन्य राज्यों में दी जाती है।

अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले भी राज्य में लागू होंगे।

अब जम्मू-कश्मीर के बाहर के लोग यहां पर जमीन खरीद सकेंगे। 

अब जम्मू कश्मीर में अल्पसंख्यक हिन्दूओं और सिखों को भी आरक्षण मिल सकेगा।

इस अनुच्छेद खत्म होने के बाद राज्य में सूचना का अधिकार भी लागू हो सकेगा।