नई दिल्ली। नेपाल पिछले काफी समय से चीन की भाषा बोल रहा है। कालापानी और लिपुलेख को नक्शे में शामिल करने के बाद चीन के शुरू ऐसे लगे हैं कि जो भाषा चीन बोल रहा है उसकी पटकथा बीजिंग में लिखी जा रही है। इसके पीछे  चीन के आर्थिक लाभ होने के साथ ही वहां की सत्ता पर काबिज वामपंथी दलों की स्वार्थ है। जो भारत की तुलना में चीन के प्रति नरम हैं।

कालापानी और लिपुलेख को नक्शे में शामिल करने के बाद पैदा हुए सीमा विवाद के बीच हालांकि नेपाल के सुरों में नरमी आई है। लेकिन नेपाल लगातार भारत को निशाना बना रहा है। नेपाल के प्रधानमंत्री ने कह रहे हैं कि नेपाल में कोरोना संक्रमण भारत से आ रहा है और इससे पहले नेपाल भारतीय सीमा को अपना बता चुका है। जबकि नेपाल अच्छी तरह से जानता है कि नेपाल में जाने वाले सामान 90 फीसदी भारतीय सीमा से जाता है। यही नहीं भारत ने हमेशा ही नेपाल का साथ दिया। जब नेपाल में भूकंप आया था तो सबसे पहले ही भारत ने नेपाल की मदद की थी।

लेकिन नेपाल की सत्ता पर काबिज वामपंथी दलों का झुकान चीन की तरफ है और पिछले कुछ सालों में नेपाल के चीन के साथ अच्छे रिश्ते बने हैं। जब से नेपाल में राजशाही का अंत हुआ है  देश में प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर वामपंथी दलों का दखल नेपाल में रहा है और इसी के जरिए चीन ने नेपाल के साथ अपने रिश्तों को  बेहतर बनाया है। हालांकि चीन अब भारत को घेरने के लिए नेपाल को साध  रहा है और चीन नेपाल के जरिए भारत पर निशाना साध रहा है।

हालांकि अब नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली ने कहा कि नेपाल का भारत के करीबी रिश्ता है औऱ लिपुलेख और कालापानी का मुद्दा बातचीत के जरिए सुलझाया जाएगा। हालांकि भारत की तरफ से पहले ही साफ कर दिया गया है कि ये दोनों हिस्से भारत के अभिन्न अंग हैं और किसी दूसरे देश का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं जाएगा। हालांकि नेपाली सरकार द्वारा ये कहना है कि इस मुद्दे को द्विपक्षीय बातचीत से सुलझाया जा सकता है। इसके जरिए नेपाल इसे विवादित बना रहा है और इसके पीछे पूरा दिमाग चीन का है। गौरतलब है कि रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने आठ मई को उत्तराखंड में लिपुलेख पास को धारचुला से जोड़ने वाली  80 किलोमीटर लंबी सड़क का उद्घाटन किया और  इसके बाद से ही नेपाल तिलमिलाया हुआ है और नेपाल के विरोध जताने के पीछे चीन की ही रणनीति है। क्योंकि ये मार्ग नेपाल के साथ ही तिब्बत को भारत से जोड़ता है।