पटना। बिहार में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में गठबंधनों की शुरूआत हो गई है। जहां अभी तक संभावना है कि भाजपा और जदयू मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ेंगे वहीं कांग्रेस और राजद के मिलकर चुनाव लड़ने की उम्मीद की जा रही है। लेकिन राज्य में एक और नए गठबंधन ने राजद और कांग्रेस की मुश्किलों को बढ़ा दिया है। राज्य में असदुद्दीन ओवैसी और जीतनराम मांझी ने विधानसभा चुनाव के लिए गठजोड़ किया है। जो सीधेतौर पर मुस्लिम और दलित वोटों में सेंध लगाएगा।

राज्य में हुए विधानसभा उपचुनाव में ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने एक सीट जीत थी। जिसके बाद ओवैसी ने राज्य में पार्टी के विस्तार की योजना बनाई है। इसी के तहत ओवैसी ने जीतन राम मांझी की अगुवाई वाली हम के साथ आगामी विधानसभा चुनाव के लिए गठजोड़ किया है। वहीं नागरिकता कानून के खिलाफ ओवैसी ने सीमांचल एक विशाल रैली की घोषणा की है। ताकि राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी को स्थापित किया जा सके।

बिहार के पड़ोसी राज्य झारखंड में नई सरकार का गठन हो चुका है और अब बिहार में चुनाव की तैयारियां शुरू हो गई हैं। बिहार में 2020 में विधानसभा चुनाव होने हैं और इसी के लिए ओवैसी ने मांझी की पार्टी के गठजोड़ किया है। ये एक तरह से मुस्लिम और दलित वर्ग का गठजोड़ है। क्योंकि मांझी की पार्टी की राज्य के दलितों में खासी पैठ मानी जाती है जबकि ओवैसी बिहार में मुस्लिमों के बीच पैठ बना रहे हैं। हालांकि माना जा रहा है कि इससे सीधा नुकसान राजद और कांग्रेस को होगा।

हालांकि ओवैसी कांग्रेस के धुरविरोधी माने जाते हैं और भविष्य में उनके कांग्रेस और राजद की अगुवाई में बनने वाले गठबंधन में शामिल होने की कम ही उम्मीद है। जबकि मांझी कुछ दिन पहले ही बिहार में बने महागठबंधन से अलग हो चुके हैं। ओवैसी की पार्टी किशनगंज में 29 दिसंबर को रैली करने जा रही और इसमें जीतनराम मांझी भी मौजूद रहेंगे। फिलहाल ओवैसी और मांझी के इस गठबंधन ने सियासी गर्मी बढ़ा दी है।

हालांकि राजद ने इस गठबंधन को गलत बताया है और वह ओवैसी को आरएसएस का ऐजेंट बता रहे हैं। हालांकि कुछ दिन पहले मांझी ने लोकसभा चुनाव के लिए बने गठबंधन से अलग होने का फैसला किया था और उन्होंने राजद नेता तेजस्वी के नेतृत्व पर भी सवाल उठाए थे। फिलहाल इस गठबंधन की वजह से राजद के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगेगी।