नई दिल्ली। भारत सरकार के संशोधित एफडीआई नीति पर चीन को मिर्ची लग गई है। चीन ने भारत सरकार के फैसले पर आपत्ति जताई है। भारत ने पिछले सप्ताह अपने एफडीआई नियमों में संशोधन किया। क्योंकि चीन अपनी कंपनियों के जरिए भारत की अर्थव्यवस्था में पकड़ बनाना चाहता था और मौजूदा बाजार में निवेश कर रहा था।

भारत ने पिछले हफ्ते ही भारत की सीमा से जुड़े देशों के लिए एफडीआई नीति में बदलाव किया था। क्योंकि चीन भारत के मौजूदा बाजार में शेयर बाजार के जरिए निवेश कर रहा था। कोरोना वायरस के कारण विश्व के साथ ही बाजार गिरे हुए हैं और कंपनियों के शेयरों की कीमत कम है।  लिहाजा चीन अपने विस्तारवादी रणनीति के तहत भारत की अर्थव्यवस्था पर पकड़ बनाने चाहता था और भारत की कंपनियों में निवेश कर रहा था।  अगर साफ कहें तो चीन एक साजिश के तहत ऐसा कर रहा था।

 क्योंकि भारत  में निवेश कर चीन भारतीय अर्थव्यवस्था में पकड़ बनाना चाहता था और जब चाहे अपने इशारों पर देश की अर्थव्यवस्था को मोड़ सकता था।  लिहाजा केन्द्र की मोदी सरकार ने चीन की इस साजिश को भांपते हुए निवेश के नियमों में बदलाव किया था।  अब चीन ने भारत सरकार के फैसले का विरोध किया है। भारत में चीनी दूतावास के प्रवक्ता काउंसलर जी रोंग ने एक बयान में कहा, "विशिष्ट देशों के निवेशकों के लिए भारतीय पक्ष द्वारा निर्धारित अतिरिक्त अवरोध डब्ल्यूटीओ के गैर-भेदभाव के सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं, और व्यापार के उदारीकरण और सुविधा की सामान्य प्रवृत्ति के खिलाफ जाते हैं।

 असल में पिछले दिनों पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना ने भारत की कंपनी एचडीएफसी में अपनी हिस्सेदारी 0.8 प्रतिशत से बढ़ाकर 1.01 प्रतिशत कर दी।  क्योंकि बाजार में एचडीएफसी के शेयर में गिरावट आई है और कम कीमत पर शेयर मौजूद है। लिहाजा चीनी सरकार अपनी कंपनियों और बैंकों के जरिए भारत में निवेश कर रही हैं।