दिल्ली की सत्ता पर लगातार 15 साल तक राज करने वाली पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और कांग्रेस की दिग्गज नेता का निधन हो गया है। शीला गांधी परिवार की दो पीढ़ियों की खास रणनीतिकार मानी जाती थी। शीला जितनी करीबी राहुल गांधी की थी उतनी ही करीबी उनकी मां सोनिया गांधी और उनके पिता राजीव गांधी की भी। गांधी परिवार में उनकी बात और सलाह को कभी नकारा नहीं गया। लिहाजा आज पार्टी ने न सिर्फ एक दूरदर्शी नेता तो खोया बल्कि गांधी परिवार ने एक भरोसेमंद साथी को भी खो दिया है।

दिल्ली में कांग्रेस की 15 साल तक सरकार बनाने वाली शीला दीक्षित कांग्रेस के रणनीतिकारों में रही हैं। खासतौर से दिल्ली की सियायत उनके नाम के बगैर पूरी नहीं हो सकती है। शीला राजीव गांधी की भी करीबी नेताओं में मानी जाती है और सोनिया गांधी की भी। क्योंकि उनकी कांग्रेस की राजनीति में एंट्री गांधी परिवार के कारण ही हुई।

जब उनके पति विनोद दीक्षित का निधन हो गया था तो उनके ससुर उमा शंकर दीक्षित ने ही शीला को गांधी परिवार के कहने राजनीति में जाने की इजाजत दी। लिहाजा गांधी परिवार से शीला का नाता कई दशकों का है। शीला राहुल गांधी के खास रणनीतिकारों में से एक रही थीं। राहुल गांधी भी उन्हें पूरे सम्मान देते थे।

लोकसभा चुनाव में शीला की जिद पर दिल्ली में आम आदमी पार्टी का कांग्रेस से गठबंधन नहीं हो सका था। जबकि सभी नेता इसके पक्ष में थे। लेकिन राहुल गांधी ने शीला की सलाह को तवज्जो दी। यही नहीं हार के बावजूद राहुल गांधी के आदेश पर शीला को दिल्ली के सभी जिलों का पर्यवेक्षक नियुक्त कर दिया गया।

शीला की गांधी परिवार से नजदीकी इसी बात से समझी जा सकती है कि 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें पहले मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया था। हालांकि बाद में कांग्रेस का सपा के साथ गठबंधन हुआ। राहुल गांधी शीला द्वारा की किसी बात को नहीं नकारते थे।

शीला दीक्षित शुरू से ही यह कहती रही कि आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस को अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ना चाहिए। लिहाजा राहुल गांधी ने पूरी दिल्ली को उन्हीं के हवाले किया था और शीला विधानसभा की तैयारियों में लगी थी।

शीला राजीव गांधी कैबिनेट में मंत्री रही और उसके बाद उनकी राजनीति सोनिया गांधी के साथ शुरू हुई। दिल्ली में कांग्रेस की सरकार नहीं थी तो उन्हें कांग्रेस ने राज्यपाल बनाकर भेजा। हालांकि शीला नहीं जाना चाहती थी। लेकिन गांधी परिवार का आदेश मानते हुए उन्हें इसमें हामी भर दी।