लखनऊ। केन्द्र सरकार ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद राज्य में शांति कायम करने के लिए राज्य की जेलों में बंद और दुर्दांत कैदियों को उत्तर प्रदेश की जेल में ट्रांसफर करने का फैसला किया गया। आखिर केन्द्र की मोदी सरकार ने इसके लिए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की जेलों को ही क्यों चुना।

इस सवाल का जवाब हम देते हैं। असल में मुख्यमंत्री अपनी सख्ती के लिए जाने जाते हैं साथ ही यहां का मौसम भी इसके पीछे एक बड़ी वजह बना। इसके साथ ही योगी की जेलों में अपराधियों का सिक्का चलता है। ऐसे में कश्मीरी पत्थरबाजों के लिए यहां पर शांत रहने की फायदेमंद रहेगा। लिहाजा इस जेलों में पत्थरबाजों को भेज कर राज्य में केन्द्र सरकार शांति बहाल करने में सफल रही है। 

केन्द्र सरकार ने उत्तर प्रदेश की आगरा, बरेली और लखनऊ जेल में कश्मीर की जेलों में बंद कई कैदियों को ट्रांसफर किया है। ये सब राज्य में अनुच्छेद 370 के बाद ही संभव था। इन कैदियों की घाटी में पकड़ है और इनके आका पाकिस्तान में बैठकर इनको आदेश देते हैं। राज्य के अलगाववादी इन पत्थरबाजों को पैसा और सुविधाएं मुहैया कराते हैं। केन्द्र सरकार की रणनीति के तहत इन कैदियों को सबसे पहले राज्य से एयरलिफ्ट कर यूपी की जेलों में भेजा गया।

इन कैदियों की लाने की जानकारी उच्च अधिकारियों के आलावा किसी के पास नहीं थी। इन कैदियों को कड़ी सुरक्षा के बीच एयरफोर्स के विशेष विमान से लाया गया था। असल में यूपी की जेलों में सुविधाएं ज्यादा नहीं जबकि जम्मू कश्मीर में अभी तक इन कैदियों को कई तरह की सुविधाएं मिल रही थी। वहीं इन कैदियों को एक साथ एक ही जगह पर रखा गया और इन पर सीसीटीवी कैमरे के जरिए नजर रखी जा रही है।

इसके साथ ही राज्य का मौसम भी इन कैदियों के लिए अनुकूल नहीं है। यूपी की जेलों में पंखे तक नहीं जबकि ये कैदी ठंडे में रहने के आदी हैं। वहीं यूपी में गर्मी बहुत पड़ रही है और उमस काफी है। ऐसे में इन कैदियों को इस माहौल में रहने से दिक्कत होगी। जो अपने आप में इनके लिए एक सजा है। फिलहाल केन्द्र सरकार की रणनीति इस मामले में सफल हुई है। कश्मीर में ईद पर किसी तरह की हिंसा नहीं हुई और लोगों ने मिलजुल कर ईद मनाई।

फिलहाल राज्य से इन कैदियों को बाहर भेजना का फायदा हुआ है। गौरतलब है कि श्रीनगर की सड़कों जब ये पत्थरबाज सुरक्षा बलों पर पत्थर बरसाते थे तो नियमों में बंधे होने के कारण सुरक्षा बल कुछ नहीं कर पाते थे। राज्य में अलगाववादियों ने सेना को पीछे करने के लिए पत्थरबाजों को ही अपनी ताकत बनाया। लेकिन अब अलगाववादी भी खामोश हो गए हैं। क्योंकि उनके पास अब पत्थरबाज नहीं है।