साल 2019 के महासमर का बिगुल बज गया है। सभी राजनीतिक दलों ने अपने-अपने समीकरणों को लगभग तय कर लिया है। पार्टियों की चुनावी मशीनरी सक्रिय हो चुकी है। इस बार का लोकसभा चुनाव सबसे रोमांचक होने जा रहा है। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाला एनडीए है, वहीं दूसरी तरफ तमाम विरोधाभासों के बावजूद 'साथ' दिख रहे विरोधी दल। सीटों को लेकर भी सियासी रस्साकशी चल रही है। साल 2014 का चुनाव जहां हर लिहाज से ऐतिहासिक था, वहीं 2019 एक नई दिशा देने वाला हो सकता है। 

सभी दलों की कोशिश ज्यादा से ज्यादा सीटें लाकर अपने-अपने गठबंधन में स्थिति मजबूत करने की होगी। सीटों के लिहाज से पांच बड़े राज्य काफी अहम हो जाते हैं। इन राज्यों में से तीन में पिछली बार भाजपा ने प्रचंड सीटें जीती थीं, लेकिन शेष दो राज्यों में वह बस मौजदूगी ही दर्ज करा सकी थी। हालांकि इस बार परिस्थिति बदली हुई है। विपक्षी दल जहां साथ आकर भाजपा को उसके मजबूत गढ़ में घेरने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं भाजपा पूर्वी और दक्षिण भारत में जोर लगा रही है। 

भारत - साल 2014 

उत्तर प्रदेश (80 सीटें) 

कहा जाता है कि दिल्ली की गद्दी का रास्ता यूपी से होकर जाता है। यह कहावत साल 2014 में पूरी तरह सही साबित हुई। भाजपा ने अप्रत्याशित प्रदर्शन करते हुए यूपी में 80 में से 71 सीटें जीतीं। दो सीटों पर उसकी सहयोगी अपना दल भी कामयाब रही। सूबे की दो धुरंधर पार्टियां सपा और बसपा को सबसे बड़ा झटका लगा। सपा जहां पांच सीटों पर सिमट गई वहीं बसपा का खाता भी नहीं खुला। कांग्रेस अपने दो सियासी गढ़ रायबरेली और अमेठी को ही बचा सकी। भाजपा ने 2014 का चमत्कार 2017 में दोहराकर सियासी खेमों में हड़कंप मचा दिया। भाजपा ने 312 सीटें जीतकर यूपी विधानसभा चुनाव में तीन-चौथाई बहुमत प्राप्त किया। वहीं सपा-कांग्रेस गठबंधन को 54 और बसपा को 19 सीटों से ही संतोष करना पड़ा।

हालांकि इसके बाद हुए उपचुनाव में सपा-बसपा-रालोद साथ आए और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर, उपमुख्यमंत्री केशवप्रसाद मौर्य की फूलपुर और कैराना लोकसभा सीट जीतकर सभी दलों के लिए उम्मीदें जगा दीं। इस बार भाजपा और उसके सहयोगी दलों को संयुक्‍त विपक्षी उम्‍मीदवारों से जूझना पड़ सकता है। एसपी 37 सीट, बीएसपी 38 और आरएलडी 3 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। दो सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ी गई हैं। हालांकि कांग्रेस के इस गठबंधन के साथ आने को लेकर स्थिति अब भी साफ नहीं है। भाजपा के लिए सबसे राहत की बात यह है कि पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान के बालाकोट में की गई एयर स्ट्राइक से पीएम मोदी की लोकप्रियता बढ़ी है। वह एक मजबूत पीएम के तौर नजर आ रहे हैं। 

महाराष्‍ट्र (48 सीटें) 

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने महाराष्ट्र की 48 सीटों में से 41 पर जीत दर्ज की थी। इसके अलावा एनसीपी को 5 तथा कांग्रेस को दो सीटें मिली थीं। लंबे विवाद के बाद 2019 लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा और शिवसेना के बीच सीटों का बंटवारा हो गया है। भाजपा 25 और शिवसेना 23 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। सीटों के बंटवारे से यह साफ हो गया है कि शिवसेना को सूबे में पिछले चुनावों की तुलना में अधिक सीटें मिली हैं। एनडीए में शामिल आरपीआई को एक भी सीट नहीं मिली है। इससे उसके नेता रामदास आठवले नाराज हैं। हालांकि चुनाव से ठीक पहले शिवसेना के साथ आ जाने के बाद भाजपा राहत महसूस कर रही है। उधर, कांग्रेस और एनसीपी के बीच अभी सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बन पाई है। दोनों दलों के बीच 20-20 सीटों के लिए सहमति है लेकिन 8 सीटों पर पेंच फंसा है। इनमें पुणे और अहमदनगर सीट भी शामिल है। भाजपा-शिवसेना को घेरने के लिए कांग्रेस महाराष्‍ट्र में बसपा को दो तो एसपी को एक लोकसभा सीट का ऑफर दे सकती है। इससे यूपी में समीकरण सधने की उम्मीद है।
 
पश्चिम बंगाल (42) 

लोकसभा चुनाव में इस बार पश्चिम बंगाल का चुनाव काफी दिलचस्प होने जा रहा है। भाजपा ने यहां ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। पार्टी को अंदेशा है कि लखनऊ और दूसरे हिंदी भाषी राज्यों से घटने वाली सीटों की भरपाई यहां से की जा सकती है। उधर, राज्‍य में सत्तारूढ़ टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ज्‍यादा से ज्‍यादा सीटें जीतकर पीएम पद के लिए अपना दावा मजबूत करना चाहती हैं। राज्य में इन दोनों दलों के बीच ही मुख्य मुकाबला माना जा रहा है। दोनों ही दल राज्‍य में अकेले ही चुनावी मैदान में उतर सकते हैं। पश्चिम बंगाल में वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी को 34, भाजपा 2, सीपीएम 2 और कांग्रेस को 4 सीटें मिली थीं। इस बार सीपीएम और कांग्रेस के बीच गठबंधन लगभग तय माना जा रहा है।  खास बात यह है कि राष्ट्रीय परिदृश्य में मोदी के खिलाफ संयुक्त मोर्चा बनाने की कोशिश करने वाली ममता पश्चिम बंगाल में कोई गठबंधन नहीं करना चाहती। उनकी इस जिद में भाजपा भी अपने लिए मौका देख रही है। राज्य में पिछले कुछ समय में भाजपा और टीएमसी कार्यकर्ताओं के बीच तीखी हिंसक झड़पें हुई हैं। भाजपा राज्य में हिंदुत्व के उभार को भुनाना चाहती है। 

बिहार (40 सीटें) 

बिहार में एनडीए के दलों के बीच सीटों का बंटवारा तय हो चुका है। भाजपा और जेडीयू 17-17 सीटों पर और एलजेपी 6 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इस बंटवारे में सबसे ज्यादा फायदा एलजेपी को हुआ है। पार्टी को एक राज्यसभा सीट का भी ऑफर दिया गया है।  2014 में 22 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली भाजपा इस बार महज 17 सीटों पर ही चुनाव लड़ेगी। साल 2014 में भाजपा, एलजेपी और आरएलएसपी के गठबंधन को 31 सीटें मिली थीं। इसके अलावा आरजेडी को 4, कांग्रेस को दो, जेडीयू को दो और एनसीपी को एक सीट पर जीत हासिल हुई थी। इसके बाद राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में जेडीयू और आरजेडी मिलकर लड़े। हालांकि यह गठबंधन कुछ समय बाद टूट गया। नीतीश फिर एनडीए में लौट आए हैं। फिलहाल एनडीए सीटों का बंटवारा होने से बढ़त में दिख रहा है। वहीं विपक्षी महागठबंधन बनने से पहले ही दरकता दिख रहा है। बिहार में राज्य की 40 सीटों पर अब तक कोई सहमति नहीं बन पाई है। आरजेडी और दूसरे सहयोगियों ने कांग्रेस से 13 मार्च तक स्थिति साफ करने को कहा है। 40 सीटों पर आरजेडी, कांग्रेस के अलावा मुकेश सहनी, उपेंद्र कुशवाहा, जीतन मांझी, शरद यादव की पार्टी भी महागठबंधन में चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी थीं। लेकिन सीटों के बंटवारा फंस गया। कांग्रेस 12 सीटें मांग रही है जबकि आरजेडी 10 सीटें से ज्यादा देने को तैयार नहीं है। 

तमिलनाडु (39 सीटें) 

दक्षिण में सीटों के लिहाज से सबसे बड़े राज्य तमिलनाडु पर भी सबकी नजरें हैं। द्रविड राजनीति की दो बड़ी शख्सियतों जयललिता और करुणानिधि की मौत के बाद हो रहे लोकसभा चुनाव काफी दिलचस्प होने का अनुमान है। यहां सत्तारूढ़ ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कझगम (एआईएडीएमके) और भाजपा के बीच गठबंधन हो गया है। तमिलनाडु की 39 और पुडुचेरी की एक सीट में से भाजपा 15 जबकि एआईएडीएमके 25 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। भाजपा अपने हिस्से की सीटों में से 8 पर चुनाव लड़ेगी। 4 सीट पीएमके, 3 सीट डीएमडीके को दी जाएगी। वहीं दूसरी तरफ एआईएडीएमके अपनी 25 सीटों में से जीके वासन की टीएमसी, एन रंगास्वामी की एनआरसी और के कृष्णास्वामी की पीटी जैसी पार्टियों को एडजस्ट करेगी।  उधर, डीएमके और कांग्रेस एक साथ लोकसभा चुनाव में उतर रहे हैं। दोनों के बीच सीट बंटवारे को लेकर सहमति बन गई है। डीएमके ने तमिलनाडु की नौ और पुडुचेरी की एक लोकसभा सीट कांग्रेस को दी है। तमिलनाडु में 39 लोकसभा सीटें हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में राज्य की 39 लोकसभा सीटों में से एआईएडीएमके को 37 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं विपक्षी दल डीएमके को एक भी सीट नहीं मिली थी। यही वजह है कि इस बार डीएमके लोकसभा चुनाव में सत्ताधारी दल को घेरने के लिए कांग्रेस से गठबंधन करने जा रहा है।