लोकसभा चुनाव 2019 में देशभर में सबसे ज्यादा नोटा का प्रयोग बिहार की जनता ने किया है। बिहार के 8.17 लाख मतदाताओं ने इस बार नोटा यानी 'इनमें से कोई नहीं' का बटन दबाया। चुनाव आयोग की वेबसाइट के अनुसार, बिहार में 40 लोकसभा सीटों पर हुए कुल मतदान में दो फीसदी लोगों ने नोटा को विकल्प के तौर पर चुना।

इसके अलावा, दमन और दीव में 1.7 फीसदी, आंध्र प्रदेश में 1.49 फीसदी, छत्तीसगढ़ में 1.44 फीसदी मतदाताओं ने नोटा का चयन किया। भारत में उम्मीदवारों की सूची में नोटा को 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शामिल किया गया था। इससे मतदाताओं को एक ऐसा विकल्प मिला कि अगर वह अपने क्षेत्र के किसी उम्मीदवार को पसंद नहीं करते हैं तो वह अपना मतदान नोटा पर कर सकते हैं। 

यह भी पढ़ें - पश्चिमी यूपी में खुद को 'झटके' से बचाकर भाजपा ने तोड़ा महागठबंधन का चक्रव्यूह

16वीं लोकसभा के चुनाव में 2014 में पहली बार संसदीय चुनाव में नोटा की शुरुआत हुई। इसमें करीब 60 लाख मतदाताओं ने नोटा के विकल्प को चुना। यह लोकसभा चुनाव में हुए कुल मतदान का 1.1 फीसदी था। वहीं 17वें लोकसभा चुनाव में बिहार के गोपालगंज में सबसे ज्यादा 51,660 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया। कुल 5.04 फीसदी मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया जो देश में सबसे ज्यादा था। पश्चिम चंपारण में (4.51 फीसदी), नवादा (3.73 फीसदी) और जहानाबाद (3.37 फीसदी) में मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया।

मध्यप्रदेश में 3,40,984 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया। राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय की वेवसाइट पर जारी चुनाव परिणाम के मुताबिक यह कुल मतदान का 0.92 प्रतिशत है। 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में 3,91,837 मतदाताओं ने नोटा का उपयोग किया था, जो कुल मतदाताओं को 1.32 प्रतिशत था। इस साल अप्रैल-मई में हुए लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में वर्ष 2014 के मुकाबले 0.40 प्रतिशत कम लोगों ने नोटा को वोट दिया। मध्यप्रदेश में नोटा चौथे नंबर पर रहा। इससे अधिक प्रतिशत मत केवल तीन दलों भाजपा (58 प्रतिशत), कांग्रेस (34.50 प्रतिशत) एवं बसपा (2.38 प्रतिशत) को मिले।

राजस्थान में दो चरणों में हुए लोकसभा चुनाव में राज्य के 3.27 लाख मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया। राज्य में नोटा में डाले गए मत सीपीआई, सीपीएम और बसपा के उम्मीदवारों को मिले वोटों से ज्यादा रहे हैं। यह राज्य की 25 लोकसभा सीटों में डाले गए कुल मतों के 1.01 प्रतिशत के बराबर है।साल 2014 के लोकसभा चुनावों में भी लगभग इतने ही, 327902 मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया था। नोटा का सबसे अधिक उपयोग आदिवासी बहुल बांसवाड़ा में किया गया है। यहां नोटा का इस्तेमाल 29962 मतदाताओं ने किया जो कुल मतदाताओं का 2.08 प्रतिशत है।

हरियाणा में 41,000 से अधिक लोगों ने नोटा का विकल्प चुना। यहां भाजपा ने सभी 10 सीटों पर जीत दर्ज की है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार हरियाणा में हुए कुल मतदान में से 0.68 प्रतिशत लोगों ने नोटा चुना। सबसे अधिक अंबाला में 7,943 और सबसे कम भिवानी-महेंदरगढ़ में 2041 लोगों ने नोटा पर बटन दबाया। अन्य आठ निर्वाचन क्षेत्रों फरीदाबाद 4,986, गुड़गांव 5,389 , हिसार में 2,957, करनाल में 5,463 , कुरुक्षेत्र में 3,198, रोहतक में 3001, सिरसा में 4339 और सोनीपत में 2646 लोगों ने नोटा के विकल्प को चुना।

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 2019 के आम चुनाव में 45000 से अधिक मतदाताओं ने नोटा विकल्प को चुना जो 2014 के आम चुनाव में इस श्रेणी में डाले गये मतों से 6,200 अधिक है। नोटा के तहत डाले गए वोट कुल वोटों का 0.53 फीसद है। उत्तरी पश्चिम (आरक्षित) सीट पर सबसे अधिक 10,210 नोटा वोट डाले गए। इस सीट पर कम से कम उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे जबकि यहां सबसे अधिक मतदाता हैं। जीत में सबसे अधिक अंतर वाले निर्वाचन क्षेत्र पश्चिम दिल्ली में नोटा के तहत 8,937 वोट पड़े जो इस श्रेणी का दूसरा सबसे बड़ा आंकड़ा है। चांदनी चौक, पूर्वी दिल्ली और दक्षिण दिल्ली लोकसभा क्षेत्रों में नोटा के तहत क्रमश: 5,133, 4,920 और 5,264 वोट पड़े। 

 लोकसभा चुनावों में पंजाब के 1.54 लाख से अधिक मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया। यह कुल पड़े मतों का 1.12 प्रतिशत है। आंकड़ों के मुताबिक, 13 लोकसभा सीटों में से फरीदकोट सीट पर सबसे ज्यादा मतदाताओं ने उम्मीदवारों को खारिज किया। फरीदकोट में कुल 19,246 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया। आनंदपुर साहिब में 17,135 मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना जबकि फिरोजपुर में 14,891 मतदाताओं ने किसी उम्मीदवार के पक्ष में वोट नहीं डाला। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, पंजाब में लगभग सभी सीटों पर नोटा पांचवें स्थान पर रहा।