17वीं लोकसभा के लिए विपक्ष के पास चुनाव लड़ने का सबसे बड़ा मुद्दा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कुर्सी से हटाना है और न कि खुद सरकार बनाने के लिए भाजपा की नीतियों का विकल्प सामने रखना।
आज 17वी लोकसभा के लिए पांचवें चरण का मतदान हो चुका है। यह साफ भी हो गया है कि केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में प्रचंड बहुमत के साथ फिर से सरकार बनाने जा रही है। लेकिन इन चुनावों में अब समय विपक्ष की भूमिका पर नजर डालने का है। 17वीं लोकसभा के लिए विपक्ष के पास चुनाव लड़ने का सबसे बड़ा मुद्दा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कुर्सी से हटाना है और न कि खुद सरकार बनाने के लिए भाजपा की नीतियों का विकल्प सामने रखना।
सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि संपूर्ण विपक्ष और उसके नेता केवल और केवल एक व्यक्ति नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव को चुनाव न समझते हुए युद्ध की तरह क्यों लड़ रहे हैं। क्यों इतनी कटुता चुनाव प्रचार के दौरान देखने को मिली। क्यों उनका एकमात्र एजेंडा नरेंद्र मोदी को सत्ता से उखाड़ना बन गया है चाहे इसके लिए कोई भी हथकंडा अपनाना क्यों न पड़े। क्यों आज भारत का विपक्ष इतना मूल्य विहीन और मूल हीन हो गया है।
इसकी जड़ में गैर भाजपा दलों की 1989 के बाद उपजी मंडल राजनीति में है। पोस्ट मंडल एरा में सभी गैर भाजपा राजनीतिक दल पारिवारिक दल हो गए और उनका राजनीतिक एजेंडा केवल तीन विषयों में सिमट कर रह गया। नंबर 1 परिवारवाद नंबर 2 अल्पसंख्यक तुष्टिकरण नंबर 3 सत्ता में रहने के लिए सभी का अपवित्र गठबंधन।
इन तीनो एजेंडा का लक्ष्य केवल मात्र एक ही था। देश के संसाधनों को लूट खसूट कर अपने परिवारों को भारतीय राजनीति का सबसे अमीर परिवार बनाना है। फिर चाहे मुलायम सिंह हो मायावती हो चंद्रबाबू नायडू हो या कोई और क्षेत्रीय नेता उन्होंने विगत 25,30 सालों में देश में भयंकर भ्रष्टाचार किया देश के संसाधनों में भयंकर लूट खसूट की और अपने परिवारों को देश के सबसे अमीर परिवारों में लाकर खड़ा कर दिया।
यह सिलसिला बोफोर्स में 64 करोड़ की दलाली खाने से शुरू हुआ और यूपीए के दूसरे कालखंड में 2जी घोटाला, कॉमनवेल्थ गेम घोटाला, खाद घोटाला और हर प्रदेश की सरकारों द्वारा कई अन्य प्रकार के घोटाले।सरकारे बदलती रही किंतु इनकी लूट खसूट जारी रही।
केंद्र में जब अटल बिहारी वाजपेई की सरकार बनी तो उसने देश की दिशा को बदलने का कार्य तो किया। हालांकि गैर भाजपा दलों की इस लूट खसूट को रोकने में वह भी असमर्थ थे क्योंकि कहीं ना कहीं इन भ्रष्ट नेताओं के समर्थन की जरूरत तत्कालीन अस्थिर राजनीति में पड़ने की संभावना बनी रही। लिहाजा, वाजपेई सरकार को भी इनके इस भ्रष्टाचार की अनदेखी करनी पड़ी।
केंद्र में 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी। पूर्ण बहुमत वाली इस सरकार ने पहली बार मोदी के नेतृत्व में इन दलों की लूट खसूट पर प्रहार शुरू हुआ। अरबों खरबों रुपए के भ्रष्टाचार जनता के सामने खोले गए।
पूरे देश की जनता ने देखा कि किस प्रकार इन्होंने पूरे देश के संसाधनों को लूटा। दल भले ही अलग-अलग हैं किंतु लूट के मामले में सब का रिकॉर्ड एक जैसा। मोदी ने देश की जांच संस्थाओं को खुली छूट दी। विपक्ष द्वारा उनकी सरकार गिराने की कोशिश हुई। अविश्वास प्रस्ताव लाए गए किंतु मोदी जी इनके खिलाफ अभियान चलाने में जरा भी टस से मस नहीं हुए।
Last Updated May 6, 2019, 4:07 PM IST