उत्तर प्रदेश में तीसरे चरण के मतदान में यादव परिवार का गढ़ कही जाने वाली सीटों में कम मतदान ने सबको चौंका दिया है। यादव बेल्ट में कम वोटिंग ने समाजवादी पार्टी और गठबंधन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। जबकि यूपी में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी एक साथ मिलकर चुनाव लड़ रही हैं। उसके बावजूद इन सीटों पर मतदान कम होना, दोनों के लिए चिंता का विषय है।

लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में उत्तर प्रदेश की 10 सीटों पर मंगलवार को मतदान हुआ। इस चरण में यादव परिवार के मुखिया मुलायम सिंह यादव, एसपी प्रमुख अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेन्द्र यादव और राम गोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव का भाग्य में बंद हो गया है और 23 मई को इसका परिणाम सामने होंगा। लेकिन यादव परिवार की इन सीटों पर हुए कम मतदान ने सबको चौंका दिया है।

यूपी में तीसरे चरण में 10 लोकसभा सीटों एटा, बदायूं, मुरादाबाद, रामपुर, सम्भल, फिरोजाबाद, मैनपुरी, आंवला, बरेली और पीलीभीत में कुल 60.52 फीसदी वोटिंग हुई। लेकिन मैनपुरी, बदायूं और फिरोजाबाद में हुई कम वोटिंग ने एसपी-बीएसपी के रणनीतिकारों के माथे पर सिलवटें ला दी हैं। जबकि इस तीनों सीटों पर समाजवादी पार्टी का कब्जा है। फिरोजाबाद में पिछली बार की तुलना में कम मतदान हुआ है जबकि गठबंधन के नेता मान रहे थे कि बीएसपी के साथ आने के बाद वोटिंग ज्यादा होगी।

यहां पर मौजूदा एसपी सांसद अक्षय यादव चुनाव लड़ रहे है जबकि उनके खिलाफ उनके चाचा प्रसपा के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव मजबूत प्रत्याशी हैं। मैनपुरी में भी कुल 57.80 फीसदी वोट पड़ा। जबकि यहां पर मायावती ने भी चुनाव प्रचार किया और उन्होंने कभी विरोधी रहे मुलायम के लिए वोट मांगे। हालांकि इसका प्रभाव यहां कम कम ही दिख रहा है। बदायूं में भी कुल 57.50 फीसदी वोटिंग हुई। जबकि इसे एसपी का अजेय दुर्ग कहा जाता है।

यहां से धर्मेन्द्र यादव चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन महज 57 फीसदी वोटों ने एसपी और बीएसपी के मुश्किलें बढ़ा दी हैं, जिसके कारण यहां अब दोनों दलों को अपनी रणनीति बदलने के मजबूर होने पड़ रहा है। लिहाजा चौथे से सातवें दौर के लिए गठबंधन के दलों ने आक्रामक तरीके से प्रचार करने की तैयारी कर ली है। क्योंकि मौजूदा सांसदों की सीटों पर वोटिंग कम होने मायने सरकार के खिलाफ नाराजगी तो नहीं हो सकती है। क्योंकि इन सीटों पर काफी समय से समाजवादी पार्टी ही जीतती आयी है।