नई दिल्ली। रंग हमारे जीवन में हज़ारों वर्षों से अपनी जगह बनाए हुए हैं। रंग प्रकाश का गुण है। सूरज की किरणें धरती तक कुल 8 मिनट में आती है. जिसमे एक्स-रे, गामा, अल्ट्रावॉयलेट, माइक्रोवेव तमाम किरणें होती हैं, जिसमें से ज़्यादातर किरणें धरती के वाह्य वातावरण में रुकती हैं. धरती तक सिर्फ सफेद प्रकाश ही पहुंचता है। प्रत्येक रंग का अपना अलग अलग महत्त्व हैं। रंगो को हम अलग अलग तरह से प्रयोग करते हैं। रंगों के (मूलतः) प्राथमिक दो प्रकार के होते हैं- 1.चित्रकारी रंग 2.भौतिक रंग। चित्रकारी रंग में लाल, नीला और पीला और भौतिक जगत में लाल, नीले और हरे को प्राथमिक रंग माना जाता है, वैसे रंगो के सिर्फ पांच (लाल, नीला, और पीला, सफेद और काला) ही रूप होते हैं, जिसमे मूल ३ रंग होते हैं- लाल, नीला, और पीला, सफेद और काला मूल रंग में अपना योगदान देते है। 

आचार्य जैनेन्द्र पांडे के मुताबिक रंग  प्रकृति और प्रवृत्ति को प्रभावित करते हैं, जिसको हम आभास (महसूस) करते है। आभास बोध जैविक व मानवी गुण है, आभास बोध के तीन महत्वपूर्ण अंग हैं-वर्ण, चाक्षुक आभासी, जो कि कई मायनो में जीवन की गति एवं दशा का निर्धारित करते है। जीवन में एक सही वातावरण रंग बनाते है। जैसे अपने पास आने वाले हर प्राणी को भगवान कृष्ण अपने अंदर समेट लेते हैं, वैसे ही काला और नीला रंग में लगभग सभी रंग समाहित ही जाता हैं, इसलिये सांवले कृष्ण के लिए तस्वीर में नीले का प्रयोग होता है और वहीं राधा ने कृष्ण के प्रेम में संसार के हर सुख को छोड़ दिया, यानी सफेद, जिस पर कोई और रंग न चढे। इसीलिए श्री राधा की तस्वीरें गोरा यानी सफेद बनाई जाती हैं। रंग मन से लेकर जीवन शैली में प्रभाव और परिवर्तन करते है। 

आचार्य पांडे बताते हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की चीजें मिलीं, जिस पर मजीठ या मजिष्ठा के जड़ से तैयार रंगों से रंगे हुए बर्तन और मूर्तियाँ मिलीं। विशेषज्ञों के अनुसार मजीठ की जड़ और बक्कम वृक्ष की छाल हजारों वर्षों तक लाल रंग का प्रमुख स्रोत थे। पीपल, गूलर और पाकड़ जैसे वृक्षों पर लगने वाले कृमियों की लाह से महावर रंग तैयार किया जाता था और पीला रंग और सिंदूर हल्दी से प्राप्त किये जाते थे। प्रारंभ में प्राकृतिक रंगों को ही उपयोग में लाया जाता था, वहीं अब कृत्रिम रंगों का उपयोग जोरों पर है। हमारा जीवन प्रकृति और प्रारब्ध के द्वारा संचालित होता है। रंग हमारे आध्यात्मिक स्तर को प्रभावित करते हैं।

अनुसंधान बताते हैं कि शरीर के भीतर सभी एक सौ चौदह चक्रों में से एक सौ बारह चक्र किसी न किसी रंग से संबंधित हैं,इसलिए आध्यात्मिक ऊर्जा के लिए भी अलग-अलग तरह के रंगों का प्रयोग होते हैं। सम्पूर्ण जगत सूक्ष्म अमूर्त स्तर पर तीन सूक्ष्म घटकों से बना है, सत्व, राज और तम। जो लोग सात्विक पथ पर हैं, वो जीवन के तमाम पहलुओं में उलझे हैं, वे सफेद रंग या हल्के रंग पसंद करते हैं। जो लोग साधना पथ में हैं, उनका संबंध सूक्ष्म-घटकों से है, वे गेरुआ, पीला, लाल और काला रंग पसंद करते हैं और जो लोग तमसिक पथ पर हैं, उनका जीवन भोग विलासिता से भरा होगा, यानी आध्यात्मिक अज्ञानता होती हैं, वे रंग बिरंगे और चटक रंग पसंद करते हैं। 

उनका कहना है कि रंग जीवन में सकारात्मक या नकारात्मक आध्यात्मिक कंपन को प्रबल करते हैं, जैसे केसरिया रंग- लाल और पीला मिलने से, हरा रंग - नीला और पीला मिलकर, जामुनी रंग -नीला और लाल मिलने से होता है। यानी केसरिया, पीला रंग साधना को और हरा रंग राज गुन को दर्शायेगा। वहीँ जामुनी रंग आक्रामकता के साथ आंतरिक शांति का परिचय देगा।

जीवन में रंगों की भूमिका 

लाल रंग- ऊर्जा, जुनून, शक्ति, साहस, शारीरिक गतिविधि, रचनात्मकता, गर्मी और सुरक्षा का प्रतीक है। लाल रंग आक्रामकता के साथ जुड़ा हुआ है। यह एक शक्तिशाली रंग है और कम मात्रा में इस्तेमाल किया जाना चाहिए। उपचार में गर्मी लाने के लिए और रोग को जलाने के लिए लाल का प्रयोग होता है। आभा में लाल भौतिकवाद, भौतिकवादी महत्वाकांक्षा और काम सुख का प्रतीक है।         

पीला रंग- बुद्धि, रचनात्मकता, खुशी और अनुनय की शक्ति का प्रतीक है। उपचार में विचारों की स्पष्टता को बढ़ावा देने के लिए पीले रंग का प्रयोग होता है। यह कायरता के साथ भी जुड़ता है। आभा में पीला रंग बौद्धिक विकास का प्रतीक है  

हरा रंग- हरा रंग पैसा, सौभाग्य, समृद्धि, ऊर्जा और प्रजनन क्षमता का प्रतीक है। हरा सभी चिकित्सा स्थितियों में लाभकारी है। यह ईर्ष्या से भी जुड़ता है। आभा में हरा रंग संतुलन, शांति के लिए है।

नीला रंग- आध्यात्मिकता, अंतर्ज्ञान, प्रेरणा और आंतरिक शांति का प्रतीक है। यह उदासी और अवसाद के साथ जुड़ा हुआ है। नीले रंग उपचार में शारीरिक और मानसिक रूप से ठंड और तसल्ली के लिए प्रयोग होता है। आभा में नीला रंग शांति, संतोष और आध्यात्मिक विकास को दर्शाता है।     

बैंगनी रंग- उच्च आध्यात्मिक विकास, दूसरों की मदद करने के लिए एक उच्च स्तर की आत्मा के अवतार से जुड़ा हुआ है। उपचार में बैंगनी मानसिक विकारों और मन-आत्मा एक बनने के लिए प्रयोग किया जाता है।  आभा में बैंगनी शक्ति के साथ सांसारिकता और आध्यात्मिकता दोनों का प्रतीक है।      

काला रंग- ताकत, गंभीरता, बिजली, और प्राधिकार का प्रतिनिधित्व करता है। काला रंग आम तौर पर अज्ञात या नकारात्मक के साथ जुड़ा हुआ है आभा में काला रंग एक रहस्यमय रंग है।        

सफेद रंग रचनात्मकता, शांति, संतोष आध्यात्मिकता प्रेम का प्रतिनिधित्व करता है। उपचार में शारीरिक और मानसिक स्पष्टता को बढ़ावा देने के लिए सफेद रंग का उपयोग करते है। आभा में सफेद रंग शांति, संतोष,  प्रेम का प्रतिनिधित्व और ईश्वरीय आध्यात्मिक विकास को दर्शाता है।

ग्रहो के साथ रंगों की भूमिका - हर ग्रह का अपना एक रंग होता है जिससे धरती प्रभावित होती है। वनस्पतियां, खनिज पदार्थ और प्राजातियों का जन्म ग्रहों के कारण है।

सूर्य ग्रह

सूर्य का रंग नारंगी, रक्त वर्ण और सुनहरा होता है सूर्यमुखी जैसे फूल, गेहूं, सिंह, बंदर, पहाड़ी गाय, कपिला गाय, सोना, तेजफल का वृक्ष आदि सभी सूर्य के तेज से जन्मे हैं। ज्योतिष में सूर्य आक्रामक माना जाता है और लाल रंग भी आक्रामकता के साथ जुड़ता है। लाल रंग को सूर्य का रंग माना गया है। सूर्य के कमजोर होने पर प्रेम, उत्साह और साहस की हो जाती है, जिसे लाल रंग के प्रयोग से प्राप्त कर सकते है।  

चंद्रमा

सूर्य का प्रकाश से चंद्रमा सफेद रंग का दिखाई देता है, क्योंकि उस पर सूर्य का प्रकाश पड़ता है जो रिफ्लेकट होता है। चंद्रमा का असर जल पर सबसे ज्यादा असर होता है। घोड़ा, दूध, सफेद फूल, चांदी, मोती, पोस्त का हरा पौधा और सभी दूध वाले वृक्ष पर चंद्र का ही सबसे ज्यादा असर होता है। चंद्रमा के कमजोर होने पर मन अशांत व अवसाद में रहता है और नकारात्मक विचार ज्यादा गति करते है। सफेद रंग के प्रयोग से मन-आत्मा को शांत और शुद्धता में परिवर्तित किया जा सकता है।

मंगल

मंगल ग्रह दिखने में लाल ही दिखाई देता है। मंगल का प्रभाव धरती पर जितनी भी लाल जगह, शेर, लाल पत्थर, लाल फूल, ऊंट-ऊंटनी, हिरन, ढाक का वृक्ष और लाल चमकीला पत्थर, मूंगा पर रहता है। ज्योतिष में मंगल को पौरुषता से अर्थात कर्म से जोड़ कर देखा जाता है और लाल रंग को ऊर्जा, जुनून, शक्ति, साहस, गर्मी, और सुरक्षा का प्रतीक का रंग माना जाता है। लाल रंग के प्रयोग से शक्ति सुरक्षा प्राप्त किया जा सकता है। लाल रंग का प्रयोग बहुत सोच समझकर करना चाहिए या लाल से मिलता-जुलता कोई रंग उपयोग में ले।

बुध

बुध का रंग हरा है, पर कुछ विशेषज्ञ बुध का रंग श्याम मानते हैं। बुध ग्रह का प्रभाव बकरा, बकरी, भेड़, चमगादड़, केला, पन्ना, चौड़े पत्ते के पौधे या वृक्ष ये सभी  पर रहता हैं। ज्योतिष में बुध संचार, तरलता, पैसा, सौभाग्य, समृद्धि, ऊर्जा और प्रजनन क्षमता के प्रतीक को प्रभावित करता है और हरे रंग का प्रयोग रोमांस में मूड को अच्छा करने के लिए होता है। 

बृहस्पति

बृहस्पति पीला ग्रह है। आमतौर पर यह छह माह उदित और छह माह अस्त होता है। जब उदित रहता है, तो मांगलित कार्य होते हैं। मांगलिक कार्यों में पीले का महत्व रहता है। गुरु पति है, दादा है या पूर्वज, ब्राह्मण है, बब्बर शेर, पीपल, सोना और पुखराज पर इसका असर रहता है। पीले रंग का संबंध जहां वैराग्य पवित्रता और मित्रता से भी है। पीले रंग का प्रयोग कर जीवन को मांगलिक बना सकते है।

शुक्र

शुक्र ग्रह को भोर का तारा कहा जाता हैं,यह चंद्रमा के आसपास ही रहता है। शुक्र ग्रह पर जल की अधिकता है अत: उसमें नीले रंग के साथ सफेद भी मिला है। वह ज्यादा चमकीला दिखाई देता है। ज्योतिष में शुक्र सफेद और गुलाबी रंग का होता है। शुक्र का प्रभाव मिट्टी, मोती, कपास का पौधा, बैल, गाय और हीरा पर रहता है। शुक्र गुलाबी या चन्द्र और मंगल का संयुक्त रंग है। शुक्र के कमजोर होने पर सांसारिक सुख में कमी रहती है, जिसे गुलाबी रंग से भर सकते है।

शनि

शनि का रंग काला कहा जाता है, पर कुछ विशेषज्ञ शनि को कहीं-कहीं नीला भी मानते है, क्योंकि शनि का वलय नीला रंग का  है। शनि का असर गीद्ध, भैंस, भैंसा, लोहा, फौलाद, जूता, जुराब, कीकर, आक, खजूर का वृक्ष और नीलम पर  है। नीला रंग का सम्बन्ध अध्यात्म और भाग्य से होने के कारण सोच समझ कर ही इसका प्रयोग करना चाहिए। शनि के कमजोर रहने पर आध्यात्मिक एकाग्रता काम हो जाती है, जिसे नील रंग से पूर्ण किया जा सकता है, पर सलाह के आधार पर।

राहु

राहु का रंग भी नीला है, लेकिन कहीं-कहीं कुछ विशेषज्ञ काला भी कहते है। राहु का असर कांटेदार जंगली चूहा, नारियल का पेड़, कुत्ता, घास, नीलम, सिक्का, गोमेद पर  होता है। राहु का कमजोर होना अस्थिता को जन्म देता है, जिसे काले रंग से स्थिर कर सकते है, परंतु काला रंग आप ना ही उपयोग करें तो बेहतर है।  काला रंग बहुत ही उपयोगी साबित हो सकता है यदि इसका प्रयोग अच्छे से समझ लें।

केतु

केतु का रंग चमकीला है, लेकिन चितकबरा या दोरंगा अर्थात काला और सफेद एक साथ इसका खास रंग है  केतु का प्रभाव द्विरंगा पत्थर, दुपट्टा, कंबल, ओढ़नी, ध्वज, कुत्ता, गधा, सूअर, छिपकली, इमली का दरख्त, तिल के पौधे और केले पर रहता है। केतु  के कमजोर पड़ने पर शांति व एकाग्रता दोनों भंग हो जाती है, व्यक्ति को कही भी सुकून नही रहता है, जिसे चितकबरा या दोरंगा, काला और सफेद दोनों ही रंगों का समायोजन कर दोष दूर कर सकते है।

धरती

चंद्रमा से पृथ्वी नीले रंग की दिखाती है। पृथ्वी ही हमारे जीवन का प्रमुख आधार है, पृथ्वी पर 70 प्रतिशत जल है, 30% भूमि, जिस पर जीवन चक्र चल रहा है, अर्थात जल और भूमि का संतुलन जब तक बना रहेगा, हम भी सुरक्षित और संवर्द्धित रहेंगे।  पृथ्वी के कमजोर होने पर जीवन का चक्र समाप्त होगा। जिस हम जल संरक्षण और जीवन मे कम से कम 100 वृक्ष लगाकर सभी दोषो को समाप्त कर सकते है। 

आचार्य जैनेन्द्र का कहना है कि रंगों का उपयोग करना जरूर सीखें। आप ऐसा करते हैं तो जीवन बदल जाएगा, क्योंकि रंगों का जीवन में बहुत महत्व होता है। हमारे जीवन में रंग चारो तरफ फैले हुए है, जहा रंग नही, वह जीवन फीका हो जाता है, बस इतना समझे कि रंगों की उपयोगिता कहां कितनी है और किस दिशा में है। रंगों का प्रयोग कपड़ों, मकान, दीवार, बेडरूम, बेडरूम में चादर, पर्दे और मैट, वैवाहिक जीवन किचन और बैठक, घर की फर्श इत्यादि इत्यादि पर हर समय होता रहा है, होता रहेगा। उनका कहना है कि किसी ज्योतिष से पूछकर नीले रंग का सही समय पर और सही तरीके से उपयोग करेंगे तो जीवन में सफलता मिलेगी। पीला, गुलाबी, सफेद, नारंगी, लाल, हरे और आसमानी रंग की अधिकता आध्यात्मिक रंग, सात्विक, राजसिक और काला, गहरा नीला, कत्थई, एकदम चमकीला, बैंगनी, मेहदी, भूरा, मटमेला आदि तामसिक प्रवृति को जन्म दे सकते है। घर के आसपास चंद्र, बुध, गुरु, व शुक्र ग्रहो से संबंधित पौधे और वृक्ष प्रेम, उत्साह साहस, और सुख शांति समृद्धि प्रदान करते है, तो वृक्ष अवश्य लगाए।

आप आचार्य जैनेन्द्र पांडे जी से उनके  ईमेल  jainendrap@gmail.com और मोबाइल नंबर- 9839702939 पर भी संपर्क कर सकते हैं।