नई दिल्ली--छठ का पर्व पूरे उत्तर भारत में बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। चार दिन तक चलने वाले इस ब्रत की शुरुआत 11 नवंबर को नहाय-खाय के साथ हुआ। यह पर्व उत्तर-पूर्वी भारत में प्रमुख रुप से  बिहार, यूपी, झारखंड में बड़ी आस्था से मनाया जाता है।

छठ की पूजा में साफ-सफाई और शुद्धता का विशेष ध्‍यान रखा जाता है साथ ही पूजा में उपयोग होने वाली कुछ सामग्री ऐसी होती है जिनके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। 

छठ पूजा के चार दिवसीय अनुष्ठान में पहले दिन नहाय-खाए दूसरे दिन खरना और तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य व चौथे दिन उगते हुए सूर्य की पूजा की जाती है। नहाए-खाए के दिन नदियों में स्नान करते हैं। इस दिन चावल, चने की दाल इत्यादि बनाए जाते हैं।

कार्तिक शुक्ल पंचमी को खरना बोलते हैं। पूरे दिन व्रत करने के बाद शाम को व्रती भोजन करते हैं। षष्ठी के दिन सूर्य को अर्ध्य देने के लिए तालाब, नदी या घाट पर जाते हैं और स्नान कर डूबते सूर्य की पूजा करते हैं। सप्तमी को सूर्योदय के समय पूजा कर प्रसाद वितरित करते हैं।

छठ पूजा में प्रयोग की जाने वाली सामाग्री

छठ की पूजा में बांस की टोकरी का विशेष महत्‍व होता है। बांस को आध्यात्म की दृष्टि से शुद्ध माना जाता है। छठ पूजा में ठेकुए का प्रसाद सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। गुड़ और आटेको मिलाकर ठेकुए का प्रसाद बनाया जाता है।

इसके बिना छठ की पूजा अधूरी मानी जाती है। छठ की पूजा में गन्ने का भी विशेष महत्व है। अर्घ्य देते समय पूजा की सामग्री में गन्ने का होना जरूरी है। कहा जाता है कि यह छठी मैय्या को बहुत प्रिय है। केला छठी मैय्या की पूजा में बहुत जरूरी है। इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। नारियल छठ पूजा में बहुत जरूरी है इसका भोग लगाने से छठी मैय्या बहुत प्रसन्न रहती है। 

छठ मैय्या को डाभ नींबू भी अर्पित किया जाता है। यह विशेष प्रकार का नींबू होता है जो बाहर से पीला और अंदर से लाल होता है। चावल के लड्डू छठी मैय्या को खूब प्रिय है। इन लड्डुओं को विशेष चावल तैयार किया जाता है जो धान की कई परतों से तैयार होते हैं।

भगवान सूर्य की होती है पूजा

छठ अवसर पर सूर्य भगवान की पूजा होती है। इसमें अस्त होते और उगते हुए भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। छठ पूजा के मौके पर नदियां, तालाब, जलाशयों के किनारे पूजा की जाती है जो सफाई की जाती है।

यह पर्व नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने का प्रेरणा देता है। सूर्योपासना का यह पर्व सूर्य षष्ठी को मनाया जाता है, लिहाजा इसे छठ कहा जाता है। यह पर्व परिवार में सुख, समृद्धि और मनोवांछित फल प्रदान करने वाला माना जाता है।

ऐसी मान्यता है कि छठ देवी भगवान सूर्य की बहन हैं, इसलिए लोग सूर्य की तरफ अर्घ्य दिखाते हैं और छठ मैया को प्रसन्न करने के लिए सूर्य की आराधना करते हैं। ज्योतिष में सूर्य को सभी ग्रहों का अधिपति माना गया है। सभी ग्रहों को प्रसन्न करने के बजाय अगर केवल सूर्य की ही आराधना की जाए और नियमित रूप से अर्घ्य (जल चढ़ाना) दिया जाए तो कई लाभ मिल सकते हैं।

पुराण में छठ पर्व

एक कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनायी गयी खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परन्तु वह मृत पैदा हुआ।

प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गये और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त ब्रह्माजी की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूँ। हे! राजन् आप मेरी पूजा करें तथा लोगों को भी पूजा के प्रति प्रेरित करें। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।